जानिए दिल्ली में क्यों आ रहे बार-बार भूकंप NAINITAL NEWS
शोध वैज्ञानिक का दावा है कि देश की राजधानी छोटी व सामान्य प्लेट्स के बीच घर्षण के कारण 45 दिन के भीतर 11 बार डोल चुकी है।
दीप सिंह बोरा, अल्मोड़ा। दिल्ली में भूकंपीय झटकों का किसी बड़े भूकंप से कोई वास्ता नहीं है। ना ही ये झटके किसी बड़ी भूगर्भीय हलचल का संकेत हैं। शोध वैज्ञानिक का दावा है कि देश की राजधानी छोटी व सामान्य प्लेट्स के बीच घर्षण के कारण 45 दिन के भीतर 11 बार डोल चुकी है। उत्तराखंड के धारचूला व मुनस्यारी में 2.5 से 3.5 रिएक्टर के झटके आते रहते हैं। मगर इन छोटे झटकों के बाद बड़ा भूकंप आएगा ही, पूर्वानुमान या दावा नहीं किया जा सकता। फिलहाल दुनिया में ऐसी कोई तकनीक अभी तक विकसित नहीं की जा सकी है, जिससे पता लग सके कि बड़ा भूकंप कब आएगा।
दुनिया में तमाम भूकंपों के बाद देश की राजधानी में एक माह 15 दिन में 11 भूकंपीय झटकों पर अध्ययन कर रहे हंबोल्ड फैलोशिप व राष्ट्रीय भूविज्ञान अवार्डी वरिष्ठ भूगर्भीय वैज्ञानिक प्रो. बहादुर ङ्क्षसह कोटलिया ने जागरण से बातचीत में कहा है कि दिल्ली के इन छोटे झटकों का बड़े भूकंप से कोई वास्ता नहीं है। उन्होंने छोटे भूकंपों के बाद बड़े झटकों की आशंका को सिरे से खारिज कर दिया। स्पष्ट किया कि बड़े भूकंप तभी आते हैं जब बड़ी प्लेट््स की फॉल्ट लाइन लंबी हो। इन बड़ी प्लेट््स के अंदर भी छोटी छोटी असंख्य प्लेट््स मौजूद रहती हैं। कब कहां कंपन होगा, यह बड़ा रहस्य है। ऐसे में छोटे झटकों के बाद बड़ा भूकंप आने वाला है या कब आएगा, सटीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता। यह भी कहना उचित नहीं रहेगा कि छोटे झटकों से धरती में दबी ऊर्जा बाहर निकलेगी यानी एनर्जी रिलीज होगी। उन्होंने दोहराया कि दिल्ली में छोटी प्लेट््स में कंपन से बार बार झटके आ रहे। इससे डरने वाली बात नहीं। प्रो. कोटलिया कहते हैं कि पूरे विश्व में इसी पर शोध चल रहा कि भूकंप आने से पहले सूचना कैसे मिल सकती है। कैसे पता लगाया जा सकता है कि बड़ा भूकंप कब कहां कितने रिएक्टर तक आने वाला है। ताकि जनधन की क्षति को कम किया जा सके।
तब आफ्टर शॉक्स 20 दिन में आता है बड़ा भूकंप
वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक प्रो. कोटलिया यह भी कहते हैं कि अक्सर बड़े भूकंप से पहले व बाद आने वाले झटके हमें सचेत भी करते हैं। पड़ोसी देश नेपाल का जिक्र करते हुए कहा कि वहां बड़ी प्लेट््स की लंबी फॉल्ट लाइन में मौजूद प्लेट््स में घर्षण से छोटे छोटे झटकों यानी आफ्टर शॉक्स के बाद 20 दिन बाद प्रलयंकारी भूकंप आया। हालांकि यह तभी संभव है जब फॉल्ट लाइन लंबी हो। दिल्ली की स्थिति भिन्न है।
हिमालय में मेन सेंट्रल थ्रस्ट है खतरनाक
बकौल प्रो. कोटलिया, हिमालयी क्षेत्र (उत्तराखंड) में मौजूद मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) सबसे अतिसंवेदनशील है। अगर हिमालय में बड़ी भूगर्भीय हलचल होती है तो इसके लिए यही एमसीटी जिम्मेदार होगा। धारचूला व मुनस्यारी में आए दिन छोटे छोटे झटके एमसीटी में हलचल का नतीजा है। इसके ठीक नीचे नॉर्थ अल्मोड़ा थ्रस्ट गुजर रहा। यह भी भूकंपीय लिहाज से खतरनाक है। मगर दिल्ली के लिए राहत की बात है कि वहां किसी बड़ी प्लेट्स या लंबी फॉल्ट लाइन नहीं बल्कि छोटी प्लेट््स में हलचल के कारण झटके आ रहे।
कौन हैं प्रो. कोटलिया
पिछले 10 हजार वर्षो में हिमालयी राज्यों में कब किन कारणों से जलवायु परिवर्तन हुआ। क्या बड़े बदलाव आए, इन पर गहन शोध के जरिये बड़े खुलासे पर जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली। प्राकृतिक झीलों व शिवङ्क्षलगों के बनने की प्रक्रिया तथा उनकी उम्र का पता लगा देश दुनिया में पहले शोध का श्रेय वरिष्ठ भूगर्भ वैज्ञानिक प्रो. बहादुर ङ्क्षसह कोटलिया को ही जाता है। सेंटर ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन जियोलॉजी विभाग (कुमाऊं विवि) में तैनात यूजीसी शोध वैज्ञानिक प्रो. कोटलिया जलवायु विज्ञान एवं क्लाइमेट चेंज विषय पर विशेष शोध तथा राष्ट्रीय भूविज्ञान अवार्ड-2018 हासिल करने वाले देश के एकमात्र वैज्ञानिक।
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