अस्पताल न डॉक्टर, दवा की 45 दुकानें

इसे सिस्टम की खामी कहें या मनमानी। जहां डॉक्टर हैं न अस्पताल, वहां दवा की दुकानों की भरमार है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 10 Nov 2018 05:00 AM (IST) Updated:Sat, 10 Nov 2018 05:00 AM (IST)
अस्पताल न डॉक्टर, दवा की 45 दुकानें
अस्पताल न डॉक्टर, दवा की 45 दुकानें

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : इसे सिस्टम की खामी कहें या मनमानी। जहां डॉक्टर हैं न अस्पताल, वहां धड़ल्ले से ड्रग लाइसेंस बांट दिए गए हैं। हल्द्वानी में बनभूलपुरा समेत कुछ ऐसे इलाके हैं, जहां पर दवा की करीब 45 से अधिक दुकानें संचालित हो रही हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इन दुकानों में दवा बेचने के लिए डॉक्टर की पर्ची का पालन होता होगा? यहीं नहीं, शहर के बाहरी हिस्सों में भी इसी तरह की तमाम दवा दुकानें खुल गई हैं। इन दुकानें में नियमों की स्थिति क्या है, लाइसेंस देने बाद संबंधित औषधि निरीक्षकों ने एक बार भी निरीक्षण करने की औपचारिकता पूरी नहीं की। ऐसे में मनमानी करने का खुलेआम मौका दिया जा रहा है। यहीं नहीं, जिम्मेदार औषधि निरीक्षक फोन तक रिसीव नहीं करते है।

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बिना लाइसेंस के भी धड़ल्ले से चल रह काम

मनमाने लाइसेंस बांटे तो गए हैं, लेकिन बिंदुखत्ता, कालाढूंगी, लालकुआं, बैलपड़ाव क्षेत्र में कई दुकानें ऐसी हैं, जहां बिना लाइसेंस के भी दवाइयां बेचने की शिकायत पहुंच रही है। इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होती।

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डॉक्टर की पर्ची पर ही बिकनी चाहिए 80 फीसद दवाइयां

नियम के अनुसार 80 फीसद दवाइयां डॉक्टर की पर्ची पर ही बिकनी चाहिए। इसमें शेड्यूल एच, एचवन, जी, के, एक्सबी शामिल हैं। इसके साथ ही नारकोटिक्स यानी एनआरएक्स से संबंधित दवाइयां भी कोई दवा दुकानदार ऐसे ही नहीं बेच सकता है। टीबी की दवाइयों के लिए रजिस्टर मेंटेन करना है। इसमें लापरवाही पर छह महीने से दो साल तक की जेल का प्रावधान है। इसके बावजूद निष्क्रिय औषधि विभाग को यह सब नहीं दिखता है।

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निरीक्षण की महज निभा दी है औपचारिकता

पुलिस-प्रशासन की ओर से कभी-कभी निरीक्षण करवाया जाता है, लेकिन औषधि निरीक्षकों की ओर से महज औपचारिकता निभा दी जाती है। अपने स्तर से रूटीन निरीक्षण तक नहीं किया जाता है।

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मेडिकल स्टोरों में दवा का हिसाब नहीं

जिले में दवा की लगभग तीन हजार दुकानें हैं। हल्द्वानी में ही 700 से अधिक दुकानें संचालित हो रही हैं। इनमें से अधिकांश दवा दुकानदार नियमानुसार हिसाब नहीं रखते हैं। डॉक्टर के पर्चे पर ही बिकने वाली तमाम दवाइयों के लिए रजिस्टर मेटेंन नहीं किया जा रहा है।

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बैठक में कई बार अनावश्यक लाइसेंस न बांटने के निर्देश दिए गए हैं। फिर भी बांट दिए जा रहे हैं। इस मामले में पूरी रिपोर्ट मांगी जाएंगी। नवंबर में फिर बैठक कर आवश्यक निर्देश दिए जाएंगे।

ताजबर सिंह, औषधि नियंत्रक, उत्तराखंड

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इस मामले में तकनीकी जानकारी नहीं है। पता किया जाएगा। जांच करवाई जाएगी। नियमों की धज्जियां उड़ाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

वीके सुमन, जिलाधिकारी, नैनीताल

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सरकार को स्पष्ट दवा नीति बनानी चाहिए। अंधाधुध लाइसेंस बांटने के बजाय नीति के तहत ही बांटे जाने चाहिए। कई जगह इसका दुरुपयोग भी हो रहा है।

उमेश जोशी, अध्यक्ष, केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन

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