थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों के लिए जीवनदायनी बना ब्लड बैंक, पढ़िए खबर

थैलेसीमिया से पीड़ित 56 बच्चों के लिए सिविल अस्पताल रुड़की का ब्लड बैंक जीवनदायिनी से कम नहीं है। ब्लड बैंक हर माह थैलेसीमिया से पीड़ित इन बच्चों को निश्शुल्क खून उपलब्ध कराता है।

By Bhanu Prakash SharmaEdited By: Publish:Fri, 08 May 2020 10:02 AM (IST) Updated:Fri, 08 May 2020 10:02 AM (IST)
थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों के लिए जीवनदायनी बना ब्लड बैंक, पढ़िए खबर
थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों के लिए जीवनदायनी बना ब्लड बैंक, पढ़िए खबर

रुड़की, जेएनएन। थैलेसीमिया से पीड़ित 56 बच्चों के लिए सिविल अस्पताल रुड़की का ब्लड बैंक जीवनदायिनी से कम नहीं है। ब्लड बैंक हर माह थैलेसीमिया से पीड़ित इन बच्चों को निश्शुल्क खून उपलब्ध कराता है। साथ ही, इसके रिप्लेसमेंट के रूप में पीड़ित परिवार से कुछ नहीं लिया जाता है। अस्पताल इन बच्चों के लिए रिजर्व में खून रखता है।

सिविल अस्पताल रुड़की का ब्लड बैंक खून की कमी से जूझने वाले मरीजों और घायलों को तो खून उपलब्ध करा ही रहा है। साथ ही, ब्लड बैंक थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है। रुड़की व आसपास के क्षेत्र में 56 बच्चे ऐसे हैं जो थैलेसीमिया से पीड़ित हैं। उन्हें महीने में एक या फिर दो बार खून की जरूरत पड़ती है। उनका जीवन बचाने के लिए उन्हें खून चढ़ाया जाता है। इन बच्चों के लिए हर माह लगभग 100 यूनिट ब्लड रुड़की ब्लड बैंक ही उपलब्ध कराता है। 

ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. रितु खेतान ने बताया कि थैलेसीमिया से पीड़ित सभी 56 बच्चों का पूरा ब्योरा ब्लड बैंक के पास है। किस बच्चे को कब खून की आवश्यकता पड़ेगी। इसकी पूरी जानकारी ब्लड बैंक रखता है। इसी के चलते पहले ही खून का इंतजाम किया जाता है। इस काम में रक्तदाता और सामाजिक संस्थाओं के लोग उनकी मदद करते हैं। थैलेसीमिया से पीड़ित इन बच्चों के लिए रिजर्व में ब्लड रखा जाता है। 

यह भी पढ़ें: रुड़की अस्पताल के ब्लड बैंक में मिल सकेगा प्लाज्मा और प्लेटलेट्स Haridwar News

क्या है थैलेसीमिया

थैलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक रूप से मिलने वाला रक्त रोग है। इस रोग के होने से शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रकिया में गड़बड़ी हो जाती है। जिससे रक्त की कमी होने लगती है। इसकी पहचान जन्म के करीब तीन माह बाद होती है। बच्चे में रक्त की कमी पूरी करने के लिए बाहरी रक्त चढ़ाया जाता है। इससे बच्चे का आयु के अनुसार विकास नहीं होता।

यह भी पढ़ें: Coronavirus: उत्तराखंड में आइसीयू, वेंटिलेटर और बाइपेप की संख्या बढ़ी

chat bot
आपका साथी