दून में यहां आज भी मिलता है अंग्रेजों के जमाने की चक्की का आटा, जानिए

मालदेवता अस्थल में कालका नहर पर बना तकरीबन सौ साल पुराना घराट आज भी अपनी सेवाएं दे रहा है।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Sat, 01 Feb 2020 05:06 PM (IST) Updated:Sat, 01 Feb 2020 08:39 PM (IST)
दून में यहां आज भी मिलता है अंग्रेजों के जमाने की चक्की का आटा, जानिए
दून में यहां आज भी मिलता है अंग्रेजों के जमाने की चक्की का आटा, जानिए

देहरादून, सतेंद्र डंडरियाल। देहरादून का रायपुर-मालदेवता मार्ग। बीते 73 साल में इस इलाके की तस्वीर पूरी तरह बदल गई है, लेकिन सड़क के किनारे मालदेवता अस्थल में कालका नहर पर बना तकरीबन सौ साल पुराना घराट आज भी अपनी सेवाएं दे रहा है। अंग्रेजों के जमाने में देहरादून के रायपुर और मालदेवता क्षेत्र में सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण किया गया। कृषि कार्य को बढ़ावा देने के साथ ही अंग्रेजों ने नहरों पर घराट भी बनवाए, जिससे स्थानीय आबादी को गेहूं, मंडुवा, मसाले आदि पिसवाने के लिए इधर-उधर न भटकना पड़े। हालांकि, लगातार उपेक्षा के चलते बीते वर्षों में अधिकांश घराट खंडहर में तब्दील हो गया, कालका नहर का यह घराट आज भी है वैसा ही है, जैसा उस दौर में रहा होगा। 

सिंचाई विभाग से लिया है 1400 रुपये वार्षिक किराये पर 

यह घराट भी लंबे अर्से तक बंद पड़ा रहा। कुछ वर्ष पूर्व रायपुर ब्लॉक के सारखेत तिमली मानसिंह निवासी जय सिंह पंवार ने इसे हैस्को के सहयोग से दोबारा शुरू किया। इसमें तकरीबन डेढ़ लाख रुपये का खर्चा आया। इस घराट में कालका नहर के माध्यम से तीन नदियों सौंग, बांदल और बल्डीगाड का पानी आता है। पंवार बताते हैं कि घराट सिंचाई विभाग के अधीन है, जिसे उन्होंने मई 2019 में 1400 रुपये वार्षिक किराये पर सिंचाई विभाग से लिया है। 

चक्कियों के आने से बंद पड़ गया था घराट 

पुराने समय में मालदेवता, खैरी मानसिंह, अस्थल, केशरवाला, कुमाल्डा, बिजौली और समौली सहित आसपास के कई गांव के लोग इसी घराट में गेहूं और मसाले पिसवाते थे। फिर क्षेत्र में बिजली से चलने वाली चक्कियां स्थापित होने लगीं तो लोगों का यहां आना कम हो गया। कुछ वर्ष पूर्व यह घराट बंद हो गया। पंवार बताते हैं कि घराट के दोबारा शुरू होने से एक बार फिर लोग इधर का रुख करने लगे हैं। फिलहाल घराट में गेहूं और मंडुवा पीसा जा रहा है। जल्द ही मसाले पीसने का काम भी शुरू किया जाएगा। 

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बिजली से भी कम खर्च 

बिजली से संचालित होने वाली आटा चक्की में प्रति किलो गेहूं पीसने में जहां ढाई से तीन रुपये शुल्क लिया जाता है, वहीं घराट में गेहूं पीसने का खर्च प्रति किलो दो रुपये आता है। घराट पूरी तरह प्रदूषणमुक्त होता है, जिसमें किसी भी तरह की ऊर्जा खर्च नहीं होती। बल्कि, प्राकृतिक रूप से नदी, गाड-गदेरे और नहरों में बहने वाले पानी का इस्तेमाल किया जाता है। पंवार बताते हैं कि घराट में बीस किलो गेहूं पीसने में तकरीबन डेढ़ घंटे का समय लगता है। बताया कि पत्नी सरिता पंवार भी उनकेइस काम में सहयोग कर रही हैं। 

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नदी पर पैदल पुल का काम करती है नहर 

सौंग नदी को पार करती कालका नहर एक पंथ दो काज करती है। यह ब्रिटिश इंजीनियरों की सोच थी कि नहर नदी पर पैदल पुल का भी काम करे। नहर के इसी हिस्से से होकर पानी घराट तक पहुंचता है। सो, नदी के ऊपर से गुजरती नहर को इस तरह से डिजाइन किया गया कि उस पर पैदल आवाजाही भी हो सके। हालांकि, अब इस 'पैदल पुल' के बगल में नया मोटर पुल बन गया है, लेकिन लोग नहर के ऊपर से भी आवाजाही करते हैं। इसे कवर्ड किया गया है, जिससे आने-जाने में किसी तरह की दिक्कत नहीं होती। पत्थरों से बनी यह नहर आज भी इतनी मजबूत स्थिति में है, लबालब भरे होने पर भी कहीं से पानी लीक नहीं होता। 

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