सत्ता के गलियारे से: पहाड़ की नारी लोकतंत्र की सशक्त प्रहरी

Uttarakhand Vidhan Sabha Election 2022 उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में मतदान के लिए महिलाओं ने जागरूकता का परिचय दिया। महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों की अपेक्षा 4.60 प्रतिशत अधिक रहा। इस चुनाव में महिलाओं ने साबित कर दिया कि पहाड़ की नारी लोकतंत्र की सजग प्रहरी भी हैं।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Mon, 21 Feb 2022 09:49 AM (IST) Updated:Mon, 21 Feb 2022 09:49 AM (IST)
सत्ता के गलियारे से: पहाड़ की नारी लोकतंत्र की सशक्त प्रहरी
सत्ता के गलियारे से: पहाड़ की नारी लोकतंत्र की सशक्त प्रहरी।

विकास धूलिया, देहरादून। Uttarakhand Vidhan Sabha Election 2022 दो साल कोरोना महामारी के साये में गुजरे, इसके बावजूद विधानसभा चुनाव में 65 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ तो इसे उत्साहजनक कहा जाना चाहिए। यह पिछली बार से केवल 0.19 प्रतिशत कम है। महत्वपूर्ण बात यह रही कि महिलाओं ने अपने लोकतांत्रिक अधिकार के इस्तेमाल में अधिक जागरूकता का परिचय दिया। महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों की अपेक्षा 4.60 प्रतिशत अधिक रहा। प्रदेश में 13 जिले हैं और इनमें से 12 में महिला मतदाताओं ने पुरुष मतदाताओं से अधिक मतदान किया। महिलाओं में जागरूकता तो इससे जुड़ा दूसरा पहलू यह है कि राजनीतिक दल इन्हें टिकट देने के मामले में अब भी कंजूसी बरत रहे हैं। भाजपा ने 70 में से केवल आठ और कांग्रेस ने पांच ही महिलाओं को प्रत्याशी बनाया। उत्तराखंड में महिलाओं को पहाड़ की धुरी कहा जाता है। इस बार उसने यह साबित कर दिया कि पहाड़ की नारी लोकतंत्र की सजग प्रहरी भी है।

बसपा, उक्रांद की उम्मीदें ले रही हिलोरें

उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद यहां भाजपा और कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा है। पिछले चार विधानसभा चुनावों में दोनों को दो-दो बार सरकार बनाने का अवसर मिला। इस बार भी यही दोनों अधिकांश सीटों पर आमने-सामने के मुकाबले में हैं, लेकिन बसपा और उक्रांद भी कुछ सीटों पर मुकाबले का तीसरा कोण बनता नजर आ रहे हैं। इससे इन दोनों दलों की उम्मीदें हिलोरें लेने लगी हैं। दरअसल, पहले तीन चुनावों में बसपा व उक्रांद की विधानसभा में ठीकठाक उपस्थिति रही। बसपा तो पहले दो चुनावों में सात और आठ तक सीटें लाई थी। उक्रांद भी एक बार चार सीटों तक पहुंचा, मगर पिछली बार नमो मैजिक में इनका सूपड़ा साफ हो गया। अब इस चुनाव में बसपा और उक्रांद का प्रदर्शन ठीकठाक रहा तो आने वाली विधानसभा में ये महत्वपूर्ण भूमिका में नजर आ सकते हैं। खासकर, जिस तरह मुकाबला कांटे का है, उन परिस्थितियों में।

सूत न कपास और नेताओं में लट्ठमलट्ठा

उत्तराखंड में एक मिथक बना हुआ है कि यहां हर पांच साल में सत्ता बदलती है। कांग्रेस ने इसे कतई गांठ बांध लिया है। आलम यह कि पार्टी का हर नेता इस मिथक के दम पर सरकार बनाने के दावे ठोक रहा है। यही नहीं, इनमें से दो-तीन तो खुद को मुख्यमंत्री तक बनता देख रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत तो ठीक, हाईकमान ने इन्हें चुनाव प्रचार अभियान की कमान सौंपी, तो कुछ मायने हैं ही इसके। हद तो यह है कि इनके अलावा भी मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार खुशफहमी पाले बैठे हैं। कोई रावत की बढ़ती उम्र का हवाला दे रहा है, तो कोई राहुल की युवा पीढ़ी को मौका देने के फार्मूले की दुहाई। ऐसे में अगर कांग्रेस का मिथक पर बना भरोसा कायम रहता है तो तय है कि नेता विधायक दल चुनना कांग्रेस के लिए कोई आसान बात साबित नहीं होने जा रही है।

भाजपा में ये नेता परेशान क्यों हैं

सूबे में मतदान हो चुका, नतीजों के लिए अभी 17 दिन का इंतजार बाकी है, लेकिन भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं दिख रहा। अब तक चार विधायक सार्वजनिक मंचों पर आकर कह चुके कि उन्हें घर के भेदी ने नुकसान पहुंचाया। दरअसल, पिछले चुनाव में भाजपा ने 70 में से 57 सीटें जीती थीं। इस प्रदर्शन को दोहराने का दबाव समझा जा सकता है, मगर जिस तरह सिटिंग विधायक पार्टी की अनुशासित छवि के उलट अपना डर बयां कर रहे हैं, उसे विराधियों को खिल्ली उड़ाने का मौका तो मिल ही रहा है। यह स्थिति तब है जब प्रधानमंत्री मोदी के जादू के सहारे पार्टी पिछले आठ साल से एक के बाद एक किले फतेह करती रही है। इस बार भी ऐसा कुछ नहीं, मगर निजी महत्वाकांक्षाओं ने साबित कर दिया कि अंदरखाने नेता असहज हैं। ऐसा क्यों, जल्द सामने आ जाएगा, लेकिन तब तक देर हो चुकी होगी।

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