40 प्रतिशत का फार्मूला नहीं, उत्तराखंड में केवल जीतने वाले चेहरे को ही मौका

Uttarakhand Election 2022 महिलाओं को 40 प्रतिशत टिकट का फार्मूला उत्तराखंड में नहीं अपनाया जा सकता यहां केवल जीतने वाले चेहरे को ही मौका दिया जाएगा। दैनिक जागरण ने हरीश रावत से समसामयिक विषयों पर विस्तृत बातचीत की।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Sun, 16 Jan 2022 08:55 AM (IST) Updated:Sun, 16 Jan 2022 08:55 AM (IST)
40 प्रतिशत का फार्मूला नहीं, उत्तराखंड में केवल जीतने वाले चेहरे को ही मौका
40 प्रतिशत का फार्मूला नहीं, उत्तराखंड में केवल जीतने वाले चेहरे को ही मौका। जागरण

विकास धूलिया, देहरादून। Uttarakhand Election 2022 उत्तराखंड में कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए पूरा जोर लगा रही है। कांग्रेस के चुनाव अभियान की कमान थामे हुए हैं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत। काफी कोशिशों के बाद भी कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा तो घोषित नहीं किया, लेकिन रावत को निर्णय लेने की स्वतंत्रता जरूर मिल गई। रावत देश में कांग्रेस के अग्रिम पंक्ति के अनुभवी नेताओं में शामिल हैं तो उनकी चुनावी रणनीति में यह दिखता भी है। रावत का साफ कहना है कि उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार बनाने की रणनीति पर काम कर रही है, जबकि उत्तर प्रदेश में खोया जनाधार पाने की। इसलिए महिलाओं को 40 प्रतिशत टिकट का फार्मूला उत्तराखंड में नहीं अपनाया जा सकता, यहां केवल जीतने वाले चेहरे को ही मौका दिया जाएगा। 'दैनिक जागरण' ने हरीश रावत से समसामयिक विषयों पर विस्तृत बातचीत की।

-प्रियंका गांधी वाड्रा ने उत्तर प्रदेश में 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को देने की बात कही, क्या उत्तराखंड में भी चलेगा यह फार्मूला।

इन दो राज्यों में अंतर यह है कि उत्तर प्रदेश में हम अपने खोए जनाधार को फिर से पाने की कोशिश कर रहे हैं। परिस्थितियों के अनुरूप वहां की रणनीति उत्तराखंड से भिन्न होगी। उत्तराखंड में हम पूरी तरह सरकार बनाने के लिए रणनीति बना रहे हैं। यहां हमें यह देखना है कि सरकार बनाने में क्या-क्या फैक्टर हमारी मदद कर सकते हैं। हां, इतना जरूर है कि जहां भी महिला दावेदार तुलनात्मक रूप में बीस-इक्कीस के अंतर पर होंगी, वहां महिला को स्थान मिलेगा। निश्चित प्रतिशत तय करना संभव नहीं। हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि जीत कौन सकता है और वह समाज के लिए कितना उपयोगी है।

-कांग्रेस के पास महज 10 विधायक हैं, लेकिन फिर भी प्रत्याशी चयन को लेकर महाभारत क्यों।

यह स्वाभाविक है। इस बार हम अतिरिक्त सावधानी से जानकारी जुटाकर निर्णय कर रहे हैं। एक-एक आवेदन को रिव्यू किया जा रहा है। दावेदार भी अधिक हैं। इसका बड़ा कारण यह है कि हम चुनाव में जीत के प्रति आश्वस्त हैं। जीतने वाले चेहरे का चयन कर रहे हैं।

-आप आश्वस्त दिख रहे हैं, क्या यह इस बात का संकेत है कि चेहरा भी आप ही हैं।

इस सवाल के जवाब के दो हिस्से हैं। पहला यह कि चुनाव से पहले मुझे जो जिम्मेदारी दी गई है, उसे पूरी ईमानदारी से निभा रहा हूं। दूसरा यह कि चुनाव परिणाम के बाद बहुमत मिलने पर कांग्रेस विधायक दल के अनुरोध पर पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी नेता के नाम पर मुहर लगाएंगी।

-भाजपा की मजबूत 57 विधायकों वाली सरकार की सबसे बड़ी कमजोरी।

भाजपा सरकार अनुभवहीन सरकार रही। लगभग पूरा मंत्रिमंडल ऐसा ही। इसलिए कोई सोच नहीं दिखी पूरे पांच साल और बिल्कुल भी असर नहीं छोड़ पाई सरकार। साढ़े चार साल में तीन मुख्यमंत्री बनाने का कारण भी यही था। चार साल के असफल कार्यकाल के बाद पहले मुख्यमंत्री को बदला तो जिसे बनाया, पार्टी भांप गई कि गलत चयन हो गया। फिर अपनी कमजोरी छिपाने के लिए तीसरे ऐसे विधायक को मुख्यमंत्री बनाया, जिन्हें भाजपा ने पिछले मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री तक बनाना उचित नहीं समझा था। नए मुख्यमंत्री हड़बड़ी में रहे और आत्मविश्वास भी नहीं दिखा। सरकारी कर्मचारियों से जुड़े कई मामलों में निर्णय लेने में हिचक दिखी या फिर गलत निर्णय लिए। ऐसा ही उनकी घोषाणओं में भी नजर आया। तीन सौ से अधिक घोषणाएं ऐसी, जिन पर शासनादेश ही नहीं हुए।

-कांग्रेस की कौन सी कमजोरी है, जो हरीश रावत को कमजोर कर रही है।

देखिए, हमारे संगठनात्मक स्वरूप में ढांचागत, कार्यसंस्कृति और पारस्परिक सामंजस्य, इन तीन चीजों की कमी है। इससे पार पाने के लिए हमें दो बिंदुओं पर फोकस करना पड़ रहा है। एक तो सरकार की कमजोरियों को उछालना पड़ रहा है और दूसरा कांग्रेस जब सरकार में रही, उसकी परफार्मेंस की तुलना भाजपा सरकार की परफार्मेंस से कर अंतर दिखाना पड़ रहा है, ताकि एंटी इनकंबेसी फैक्टर उभारा जा सके और इसके सहारे हम निर्णायक जीत प्राप्त कर सकें। भाजपा अपनी संगठनात्मक शक्ति से कांग्रेस की आक्रामकता का मुकाबला करना चाहती है। देखना यह होगा कि जनता के सवालों को हम कितने प्रभावशाली तरीके से उठाते हैं ताकि भाजपा रक्षात्मक हो जाए।

-मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आपकी पिछली सरकार को भ्रष्टाचार में डूबी कहा है।

ऐसा है तो भाजपा सरकार को बताना चाहिए कि अगर हरीश रावत की सरकार भ्रष्टाचार में डूबी थी तो पांच साल उनकी सरकार क्या कर रही थी, जो भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पाई। यह तो उनकी जवाबदेही है न। सच यह है कि जिन तथाकथित भ्रष्टाचार के मामलों को पांच साल में भाजपा ने उठाया भी, उसमें भाजपा को लगा कि उनके लोग ही संलिप्त हैं और उन तक ही आंच पहुंच रही है। जैसे, एनएच 74, सिडकुल और चावल घोटाले में। जांच भाजपा के मंत्रियों तक पहुंचने लगी और जिनका हरीश रावत से कोई संबंध नहीं था। फिर हड़बड़ाहट में जांच बंद कर दी। अब भी चाहें तो हाईकोर्ट से अनुमति लें और एसआइटी गठित कर जांच करा लें।

-किशोर उपाध्याय समेत कितने नेता हैं कांग्रेस के, जिनके तार भाजपा से जुड़े हैं।

ऐसा कोई नेता नहीं है। किशोर उपाध्याय से संबंधित प्रकरण पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा।

-क्या एक परिवार से एक से अधिक को टिकट दिया जा रहा है।

उत्तराखंड छोटा राज्य है, यहां इस तरह की बहुत संभावना नहीं है। फिर भी अगर कांग्रेस के किसी नेता के परिवार का व्यक्ति जीतने की स्थिति में है, तो इस बार हमें जीतने वाले उम्मीदवार को आगे लाना पड़ेगा। जीतने वाले उम्मीदवार को केवल इसलिए इन्कार नहीं कर सकते कि वह कांग्रेस के किसी नेता का बेटा या बेटी है।

-आपने ट्वीट कर कहा था कि दिल्ली से भेजे गए लोग हाथ बांध रहे हैं, लेकिन कोई बदलाव तो हुआ नहीं।

नहीं ऐसा नहीं है। हमें एक बात पार्टी के संज्ञान में लानी थी और यह पार्टी के संज्ञान में आ गई है। इस पर अलग-अलग स्तर पर कार्रवाई हो रही है। मेरा ट्वीट कोई विध्वंसात्मक नहीं था। यह तो सुधारात्मक था।

-आप भाजपा से भिड़ रहे हैं, पार्टी के अंदर के गुटों से कैसे भिड़ेंगे।

इस समय हम दो काम कर रहे हैं। एक यह कि अंदर क्या हो रहा है या कोई बात है, तो उसे बहुत धैर्य के साथ सुन रहे हैं, समझ रहे हैं। दूसरी बात, अगर कहीं कुछ ऐसा है तो बात कर रहे हैं। जब आप फील्ड में काम कर रहे होते हैं, तो ऐसी चीजें कम उठती हैं। इस समय हमारे सब लोग फील्ड में काम में जुटे हुए हैं। इस तरह की बातें बहुत कम हैं, जिनमें मतभेद या मनभेद नजर आ रहा हो।

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