अटल आयुष्मान योजना में गड़बड़झाला: आइसीयू में दस बेड, 20 का कर दिया इलाज

अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना में सूचीबद्ध निजी अस्पताल ने आइसीयू में क्षमता से अधिक रोगियों का उपचार दर्शाया। ताज्जुब ये कि डायलिसिस एमबीबीएस डॉक्टर द्वारा किया जा रहा है।

By BhanuEdited By: Publish:Fri, 05 Jul 2019 09:06 AM (IST) Updated:Fri, 05 Jul 2019 09:10 PM (IST)
अटल आयुष्मान योजना में गड़बड़झाला: आइसीयू में दस बेड, 20 का कर दिया इलाज
अटल आयुष्मान योजना में गड़बड़झाला: आइसीयू में दस बेड, 20 का कर दिया इलाज

देहरादून, जेएनएन। अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना में सूचीबद्ध निजी अस्पताल अपनी करतूतों से बाज नहीं आ रहे हैं। फर्जी ढंग से क्लेम हड़पने की होड़ में वह किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। नया मामला काशीपुर स्थित एमपी मेमोरियल अस्पताल से जुड़ा है। 

जहां योजना में बड़े स्तर पर फर्जीवाड़ा सामने आया है। यहां डिस्चार्ज होने के बाद भी मरीज कई-कई दिन तक अस्पताल में भर्ती दिखाए गए। इतना ही नहीं आइसीयू में भी क्षमता से अधिक रोगियों का उपचार दर्शाया गया है। ताज्जुब ये कि डायलिसिस एमबीबीएस डॉक्टर द्वारा किया जा रहा है। वह भी क्षमता से कई अधिक। फर्जीवाड़ा यहीं नहीं रुका। ऐसे भी प्रकरण हैं जहां बिना इलाज क्लेम प्राप्त किया गया है। जिसकी मरीज को भनक तक नहीं है। 

यह सारी अनियमितताएं उजागर होने पर तमाम भुगतान पर रोक लगाते हुए अस्पताल की सूचीबद्धता तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दी गई है। मुख्य कार्यकारी अधिकारी युगल किशोर पंत के अनुसार राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभिकरण के सिस्टम पर अस्पताल की लॉगइन आइडी भी ब्लॉक की गई है। वहीं, अस्पताल को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। इसका उसे 15 दिन के भीतर जवाब देना होगा। 

डिस्चार्ज होने के बाद भी रिकॉर्ड में भर्ती रहे मरीज

अस्पताल में एकाध नहीं कई स्तर पर गड़बडिय़ां पकड़ में आई हैं। अभिलेखों के परीक्षण में 85 मामले ऐसे पाए गए हैं जिनमें मरीज जितने दिन वास्तव में अस्पताल में भर्ती रहे हैं, उससे ज्यादा दिनों के लिए मरीजों को अस्पताल में भर्ती दिखाकर अधिक धनराशि का क्लेम प्रस्तुत किया गया। 22 मामले ऐसे मिले जिनमें मरीज को डिस्चार्ज करने के बाद प्री-ऑथ इनीशियेट किया गया है। 

दस बेड का आइसीयू, 20 मरीज भर्ती 

अस्पताल में आइसीयू में उपचारित 263 मरीजों के भर्ती व डिस्चार्ज तिथि का अध्ययन करने पर चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई है। आइसीयू में दस बेड हैं, पर विभिन्न दिवसों पर 11 से 20 मरीजों तक का उपचार करना दिखाया गया है। 

उस पर आइसीयू में केवल अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना के मरीज भर्ती दिखाए गए हैं। जबकि काशीपुर का क्षेत्र उप्र से लगा हुआ है और वहां से भी मरीज उपचार के लिए यहां आते हैं। ऐसे में इस बात पर भी संदेह जताया गया है कि योजना से इतर आइसीयू में किसी अन्य का उपचार ही नहीं किया गया। 

क्षमता से कई अधिक डायलिसिस

अस्पताल में सबसे बड़ी खामी डायलिसिस को लेकर सामने आई है। यहां दो मरीजों की एक दिन में दो बार डायलिसिस होना दर्शाया गया है। जबकि ऐसा संभव नहीं है। तीन अक्टूबर 2018 से नौ जून 2019 तक यहां कुल 1773 डायलिसिस होना दर्शाया गया है। अस्पताल में पांच डायलिसिस मशीन हैं। जिनमें मानकों के अनुसार प्रति दिन दस मरीजों का ही डायलिसिस किया जा सकता है। पर डायलिसिस इससे कई अधिक दिखाए गए हैं। 

एमबीबीएस कर रहे डायलिसिस, दर्शाया एमडी

अस्पताल में डायलिसिस कर रहे डॉक्टर न तो नेफ्रोलॉजिस्ट हैं, न एमडी और न इसके विशेषज्ञ हैं। यानी एक ऐसे व्यक्ति द्वारा डायलिसिस किया जा रहा है जो इसके योग्य ही नहीं हैं। अस्पताल ने सूचीबद्धता के अपने आवेदन में भी किसी नेफ्रोलॉजिस्ट का उल्लेख नहीं किया था। उक्त डॉक्टर को एमडी मेडिसिन दर्शाया गया है। जबकि उत्तराखंड मेडिकल काउंसिल में वह केवल एमबीबीएस डॉक्टर के रूप में पंजीकृत हैं। 

अनुबंध में पांच, नौ विशेषज्ञताओं में कर रहे इलाज

अस्पताल के अनुबंध में केवल जनरल मेडिसिन, स्त्री एवं प्रसूति रोग, हड्डी रोग, जनरल सर्जरी व नियोनेटोलॉजी का ही उल्लेख है। पर इन पांच विशेषज्ञता से अलग 29 अन्य मरीजों का उपचार भी यहां किया गया। जिनमें यूरोलॉजी, पीडियाट्रिक सर्जरी, पोलीट्रॉमा और प्लास्टिक व रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के मामले शामिल हैं। 

सारे नियम किए दरकिनार

अस्पताल ने सूचीबद्धता के आवेदन में हॉस्पिटल रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट कॉलम में एनए अंकित किया गया है। यानी हॉस्पिटल को चलाने के लिए प्रासंगिक कानून/नियम के अंतर्गत सर्टिफिकेट भी नहीं है। नेशनल काउंसिल फॉर क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट द्वारा तय न्यूनतम मानकों के अनुसार अस्पताल में प्रत्येक विशेषज्ञता के लिए न्यूनतम एक एमबीबीएस डॉक्टर 24 घंटे अस्पताल में उपलब्ध होना चाहिये। पर अस्पताल इस नियम का भी पालन नहीं कर रहा है। 

पांच मामलों में डेथ ऑडिट

अस्पताल में 29 सितम्बर 2018 से आठ जून 2019 तक पांच मरीजों की उपचार के दौरान मौत हो गई है। जिनका अब डेथ ऑडिट किया जा रहा है। 

सरकारी चिकित्सक भी दे रहे सेवा 

अस्पताल में एक चिकित्सक डॉ. एके सिरोही द्वारा भी इलाज करना दर्शाया गया है। जबकि वह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र महुआखेड़ागंज ऊधमसिंहनगर में पूर्णकालिक संविदा चिकित्सक हैं। इनका सूचीबद्धता के आवेदन में कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया था। 

बिना इलाज ले लिया क्लेम 

एमपी मेमोरियल अस्पताल में एक से बड़े एक फर्जीवाड़े अंजाम दिए गए हैं। अस्पताल ने एक मोहल्ले में स्वास्थ्य शिविर लगाया था। जहां लोगों को अल्ट्रासाउंड में छूट प्रदान की गई। इनमें एक महिला को दिक्कत बता भर्ती होने की सलाह दी गई। जहां उसकी फोटो खींचकर कुछ जांचें लिख दी गई और उसे घर भेज दिया। आयुष्मान कार्ड की फोटो खींचकर उसे वापस कर दिया गया। अगले दिन वह रिपोर्ट लेने आई तो कहा गया कि भर्ती होने की आवश्यकता नहीं है। जबकि उसे एंट्रिक फीवर के इलाज के लिए इमरजेंसी में भर्ती दिखाया गया। गलत ढंग से उसका क्लेम प्रस्तुत किया गया। 

सिजेरियन में 90 फीसद नियोनेटल केयर 

अस्पताल में 31 सिजेरियन डिलिवरी की गई। जिनमें 90 फीसद मामलों में नियोनेटल केयर का भी पैकेज लिया गया। ऐनीमल बाइट पैकेज के तहत 40 मरीजों का उपचार किया गया। जिसके लिए पांच डोज मरीज को दी जाती है। पर इनमें 21 मरीजों को पूरा इलाज किए बगैर ही क्लेम प्रस्तुत कर दिया गया।

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