उत्तराखंड परिवहन निगम की नई बसों का पंजीकरण अटका, जानिए क्या है वजह

परिवहन निगम की नई बसों का पंजीकरण तकनीकी अड़चनों के कारण फंस गया है। सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के नए नियम में सभी तरह के व्यावसायिक वाहनों में जीपीएसहोना अनिवार्य है।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Sun, 13 Oct 2019 05:48 PM (IST) Updated:Sun, 13 Oct 2019 09:22 PM (IST)
उत्तराखंड परिवहन निगम की नई बसों का पंजीकरण अटका, जानिए क्या है वजह
उत्तराखंड परिवहन निगम की नई बसों का पंजीकरण अटका, जानिए क्या है वजह

देहरादून, अंकुर अग्रवाल। उत्तराखंड परिवहन निगम की नई बसों का पंजीकरण तकनीकी अड़चनों के कारण फंस गया है। सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के नए नियम में सभी तरह के व्यावसायिक वाहनों में जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) होना अनिवार्य है। निगम की नई बसें टाटा कंपनी से आई हैं। कंपनी ने जीपीएस लगी बसें तो उपलब्ध कराईं लेकिन जीपीएस उन कंपनियों के नहीं हैं, जो कंपनियां उत्तराखंड परिवहन मुख्यालय की ओर से पंजीकृत हैं। अब परिवहन निगम ने टाटा कंपनी को पत्र भेजकर उन कंपनियों के जीपीएस लगाने के लिए कहा है, जो उत्तराखंड में पंजीकृत हैं। जीपीएस बदलने के बाद ही बसें आरटीओ में पंजीकृत हो पाएंगी और फिर रूटों पर दौड़ सकेंगी। 

परिवहन निगम पिछले एक साल से नई बसों की खरीद की प्रक्रिया में लगा हुआ है मगर यह प्रक्रिया अब जाकर पूरी हुई। सूबे में वर्तमान में लगभग 300 बसें बेहद जर्जर हालात में संचालित की जा रही हैं। नई बसें सड़कों पर उतरने के बाद ही निगम ये बसें नीलाम कर सकेगा। निगम ने 150 छोटी और 150 बड़ी बसों के आर्डर किए हैं। जिसमें आधी बसें टाटा कंपनी और आधी अशोका लेलैंड से आनी हैं। टाटा कंपनी से 80 बसें देहरादून आ चुकी हैं, जबकि बाकी अगले एक माह में मिल जाएंगी। हालांकि, लेलैंड से अभी बसें नहीं मिली हैं। टाटा की बसें मिलने के बावजूद अब तक पंजीकृत नहीं हो पाई हैं। इसका कारण तकनीकी अड़चन बताया जा रहा। 

बसों की होगी बोर्ड फिटनेस 

नई बसों में मानकों का पालन हुआ है या नहीं, इसके लिए बसों की बोर्ड फिटनेस के आदेश दिए गए हैं। पंजीकरण से पूर्व सभी बसों की फिटनेस जांच होनी है। निगम की ओर से इन बसों की फाइलों को आरटीओ में भेजा गया था, लेकिन जीपीएस के दूसरी कंपनी के होने के कारण मामला फंस गया। यह अड़चन दूर की जा रही है, लेकिन इस दौरान आरटीओ ने बसों की बोर्ड फिटनेस कराने के आदेश दिए हैं। यह देखा जाएगा कि लंबाई-चौड़ाई और सीटों के हिसाब से बसों की बॉडी निर्माण में मानकों का पालन हुआ है या नहीं। बोर्ड फिटनेस की जांच में एआरटीओ और आरआई की टीम शामिल रहेगी। 

एसी बसों का बुरा हाल 

एसी बसों में सुहाने-आरामदायक सफर का दावा करने वाला परिवहन निगम भले ही यात्रियों से भारी-भरकम किराया वसूल रहा हो, लेकिन सफर में न तो आराम है न ही सुकून। हालत ये है कि 50 फीसद एसी बसों में एसी खराब पड़े हैं और सीटें टूटी हुई हैं। आधी बसों में सीटों के पुश-बैक काम नहीं करते तो कुछ से गद्दियां गायब हैं। बसों में सीट के ऊपर लगे ब्लोवर तक टूटे पड़े हैं और मोबाइल चार्जर के सॉकेट काम नहीं कर रहे। पानी की बोतल रखने के क्लैंप गायब हैं और पंखे भी चालू नहीं हैं। बसें अनुबंधित हैं, फिर भी निगम इनसे संबंधित कंपनी पर कार्रवाई नहीं करता। 

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परिवहन निगम के महाप्रबंधक संचालन दीपक जैन ने बताया कि जीपीएस की अड़चन के चलते नई बसों का पंजीकरण नहीं हो पाया था। निगम की ओर से टाटा कंपनी को पत्र भेजा गया था। जिस पर कंपनी ने ज्यादातर बसों में सूबे में पंजीकृत कंपनी के जीपीएस लगवा दिए हैं। नई बसों को सोमवार से पंजीकरण के लिए भेजा जाएगा।

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