उत्तराखंड में दम तोड़ रही पौधरोपण की मुहिम, अब नीति में अब बदलाव की दरकार

भले ही प्रतिवर्ष औसतन डेढ़ करोड़ से ज्यादा पौधे रोपे जा रहे हों लेकिन पौधरोपण नीति विसंगतियों से अछूती नहीं है। रोपित पौधों के मामले में तो यही तस्वीर उभरकर सामने आती है।

By Edited By: Publish:Sat, 04 Jul 2020 07:04 PM (IST) Updated:Sun, 05 Jul 2020 07:33 PM (IST)
उत्तराखंड में दम तोड़ रही पौधरोपण की मुहिम, अब नीति में अब बदलाव की दरकार
उत्तराखंड में दम तोड़ रही पौधरोपण की मुहिम, अब नीति में अब बदलाव की दरकार

देहरादून, राज्य ब्यूरो। उत्तराखंड में भले ही प्रतिवर्ष औसतन डेढ़ करोड़ से ज्यादा पौधे रोपे जा रहे हों, लेकिन पौधरोपण नीति विसंगतियों से अछूती नहीं है। रोपित पौधों के मामले में तो यही तस्वीर उभरकर सामने आती है। हालांकि, प्रविधान है कि विभागीय पौधरोपण में रोपित पौधों की तीन साल तक देखभाल होगी, लेकिन पर्याप्त बजट समेत अन्य संसाधनों के अभाव में यह मुहिम अक्सर दम तोड़ देती है। परिणामस्वरूप पौधे रोपने के बाद इन्हें अपने हाल पर छोड़ने की परिपाटी भारी पड़ रही है। राज्य गठन के 20 साल बाद भी पौधरोपण की नीति में बदलाव न होना अपने आप में आश्चर्यजनक है। 

पौधरोपण की तस्वीर देखें तो राज्य में पिछले 20 वर्षों में रोपे गए पौधों की बदौलत हरियाली का दायरा कहीं अधिक बढ़ना चाहिए था, लेकिन ऐसा कहीं नजर नहीं आता। पिछले पांच साल के आंकड़ों पर ही नजर दौड़ाएं तो हर साल डेढ़ करोड़ से ज्यादा पौधे लगाए जा रहे, मगर इनके सरवाइवल रेट को लेकर हकीकत किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में अनुश्रवण को लेकर भी अंगुलियां उठनी लाजिमी है। हालांकि, राज्य सेक्टर से होने वाले विभागीय पौधरोपण की तीन साल तक देखभाल की व्यवस्था है, लेकिन बदली परिस्थितियों में यह समय नाकाफी साबित हो रहा है। 
यही नहीं, देखभाल मद में पर्याप्त बजट समेत आवश्यक सुविधाओं का अभाव भी रोड़ा बन रहा है। ऐसे में प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (कैंपा) की भांति रोपित पौधों की देखभाल के लिए पांच साल का प्रविधान करने पर जोर दिया जा रहा, मगर अभी यह पहल नहीं हो पाई है। ये बात भी निरंतर उठती रही है कि कई मर्तबा पौधरोपण में क्षेत्र विशेष की जलवायु की अनुसार पौधों को तवज्जो नहीं मिल पाती। ऐसे में रोपित पौधे जीवित नहीं रह पाते। यही नहीं, पर्वतीय क्षेत्र के वनों में सहायतित प्राकृतिक पुनरोत्पादन को बढ़ावा देने की बात हुई, मगर यह पहल परवान चढ़नी बाकी है।
वन और पर्यावरण मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने बताया कि स्टेट सेक्टर में विभागीय पौधरोपण के तहत रोपित पौधों की पांच वर्ष तक देखभाल का प्रविधान करने के मद्देनजर विभागीय अधिकारियों से प्रस्ताव मांगा गया है। साथ ही इस बार क्षेत्र विशेष की परिस्थितियों के अनुसार जंगलों में फलदार और औषधीय प्रजातियों के रोपण को तवज्जो देने के निर्देश दिए गए हैं।
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