लौट आया मिट्टी के बर्तनों का जमाना, इन बर्तनों की बढ़ी डिमांड

स्टील के बर्तनों की जगह लोग अब मिट्टी से बने बर्तनों को काफी पसंद कर रहे हैं। लोग अब मिट्टी के बर्तनों को एक बार फिर से तवज्जो देने लगे हैं।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Tue, 15 Sep 2020 11:52 AM (IST) Updated:Tue, 15 Sep 2020 07:05 PM (IST)
लौट आया मिट्टी के बर्तनों का जमाना, इन बर्तनों की बढ़ी डिमांड
लौट आया मिट्टी के बर्तनों का जमाना, इन बर्तनों की बढ़ी डिमांड

देहरादून, जेएनएन। अब मिट्टी के बर्तन में बन रहे खाने की खुशबू घर से आंगन तक महकेगी। स्टील के बर्तनों की जगह लोग अब मिट्टी से बने बर्तनों को काफी पसंद कर रहे हैं। लोग अब मिट्टी के बर्तनों को एक बार फिर से तवज्जो देने लगे हैं। खास बात यह है कि बर्तन तैयार करने वाले कुम्हारों के चेहरे पर भी कारोबार को लेकर रौनक है।

पिछले एक महीने से दून में मिट्टी के बर्तनों की मांग बढ़ गई है। रंगीन और नए डिजाइन में तैयार यह बर्तन दिखने में जितने सुंदर हैं उससे ज्यादा अच्छा खाना इनमें तैयार किया जा रहा है। कुम्हार मंडी में गिलास, बोतल, हांडी तैयार की जाती है, जबकि तवा, कुकर, कैंपर, फ्राई पैन गुजरात और सहारनपुर से मंगाए जाते हैं। दून में इन्हें न बनाने का पीछे कुम्हारों का कहना है कि यहां की मिट्टी ज्यादा चिकनी नहीं है, ऐसे में बाहरी राज्यों से कुछ सामान मंगाना पड़ता है। 

मिट्टी के बर्तन बेचने वाले मंयक प्रजापति ने बताया कि कोरोना संक्रमण के बाद लॉकडाउन होने से कारोबार खत्म जैसा हो गया था, लेकिन पिछले एक महीने में अचानक से लोग मिट्टी के बर्तनों की मांग करने लगे। इस समय कई बर्तन बिकते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा मांग मिट्टी के तवे की है। हर दिन 100 से ज्यादा तवे यहां बाजार बाजार बेचे जाते हैं, जबकि कई ग्राहक खुद यहां आकर खरीदारी करते हैं। 

कुम्हार नीरज और राधेलाल ने बताया कि मिट्टी के बर्तनों की मांग बढ़ने से जहां स्वदेशी और पांरपरिक वस्तुओं को दुकान पर सजाने का मौका मिलेगा वहीं, कारोबार बढ़ने और परिवार के अन्य सदस्यों को भी रोजगार मिलेगा। उन्होंने बताया कि पिछले एक महीने से अब तक हर दिन डेढ़ से दो हजार रुपये के नए बर्तन बिक जाते हैं। कुम्हारों का कहना है कि इन बर्तनों में पौष्टिक खाना तैयार किया जा सकता है और इनसे तैयार खाने में सौंधेपन आता है।

कुम्हारों का जज्बा बना मिशाल

पिछले 12 साल से मिट्टी के बर्तन बना रहे बाबू प्रजापति ने बताया कि मैं हमेशा सोचता कि इस पुश्तैनी कारोबार को कैसे बरकरार रखा जाए। फिर हमने तय किया कि कारोबार को समय के अनुसार परिवर्तित करना होगा। पहले घर में कोई भी आयोजन हो, लोग हमारे घर की ओर दौड़े चले आते थे, लेकिन बाजार की ओर लोगों का रुख होने से मिट्टी का कारोबार कम होने लगा। इसलिए परिवार के कुछ सदस्यों ने तय किया कि अपना पुश्तैनी कारोबार जिंदा रहे और मिट्टी की खुशबू भी। इसको मॉर्डन कारोबार देने की कोशिश की। फिलहाल गिलास और कैंपर तैयार किए जा रहे हैं। आने वाले समय पर मांग के अनुसार अन्य बर्तन भी तैयार किए जाएंगे।

कम आंच पर पकाएं

मिट्टी को पकाकर उससे नए डिजाइन वाले बर्तनों का आकार देने वाले सार्थक ने बताया कि मिट्टी के तवे को छोड़कर अन्य बर्तनों में सिर्फ गैस चूल्हे पर धीमी आंच में एक घंटे रखकर खाना बनाया जा सकता है। लकड़ी के चूल्हे पर आंच का अंदाजा नहीं होता और कई बार बर्तन चटक जाते हैं।

मिट्टी के बर्तनों की कीमत हांडी------------100 रुपये (2.5 लीटर की) कुकर-----------1200 रुपये (पांच लीटर का) बोतल-----------100 से 130 (एक लीटर की) तवा--------------80 रुपये फ्राई पैन----------400 रुपये पानी कैंपर-------300 (15 लीटर का) गिलास---------180 (प्रति दर्जन)

यह भी पढ़ें: भंगजीरा की नई वैराइटी पर उत्तराखंड को यूएस पेटेंट, जानें- क्या हैं फायदे और क्यों दिल के लिए खास

chat bot
आपका साथी