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भंगजीरा की नई वैराइटी पर उत्तराखंड को यूएस पेटेंट, जानें- क्या हैं फायदे और क्यों दिल के लिए खास

राज्य सरकार के उपक्रम सगंध पौधा केंद्र (कैप) देहरादून के वैज्ञानिकों ने आठ साल के अनुसंधान के बाद भंगजीरा की नई वैराइटी तैयार की है। इसके लिए राज्य को यूएस पेटेंट मिला है।

By Edited By: Published: Fri, 11 Sep 2020 03:00 AM (IST)Updated: Fri, 11 Sep 2020 10:54 PM (IST)
भंगजीरा की नई वैराइटी पर उत्तराखंड को यूएस पेटेंट, जानें- क्या हैं फायदे और क्यों दिल के लिए खास
भंगजीरा की नई वैराइटी पर उत्तराखंड को यूएस पेटेंट, जानें- क्या हैं फायदे और क्यों दिल के लिए खास

देहरादून, केदार दत्त। उत्तराखंड में पाए जाने वाले भंगजीरा (पैरिला फ्रूटीसेंस) नामक पौधे में दिल के लिए बेहद फायदेमंद ओमेगा का खजाना मिला है। राज्य सरकार के उपक्रम सगंध पौधा केंद्र (कैप), देहरादून के वैज्ञानिकों ने आठ साल के अनुसंधान के बाद भंगजीरा की नई वैराइटी तैयार की है, जो ओमेगा-3 के लिहाज से धनी होने के साथ ही उत्पादकता में भी सामान्य भंगजीरा से कहीं अधिक है। कैप को इस वैराइटी के लिए अमेरिका के यूएस पेटेंट एंड ट्रेडमार्क ऑफिस से पेटेंट भी मिल गया है। कैप की निदेशक डॉ. हेमा लोहानी ने इसकी पुष्टि की। उन्होंने बताया कि देश में भंगजीरा की विकसित की गई किसी वैराइटी पर मिला यह पहला पेटेंट है। 

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भंगजीरा के पौधे राज्य के पर्वतीय क्षेत्र के जंगलों में काफी संख्या में पाए जाते हैं। घरों में भी स्थानीय निवासी किचन गार्डन में इसे उगाते हैं और इसके बीज का उपयोग चटनी आदि बनाने में करते हैं। कैप के वैज्ञानिकों ने भंगजीरा पर शोध किया तो बात सामने आई कि इसमें दिल के लिए फायदेमंद ओमेगा-3 और ओमेगा-6 की मात्रा है। कैप की निदेशक डॉ. लोहानी बताती हैं कि इसके बाद भंगजीरा की ऐसी वैराइटी विकसित करने का निर्णय लिया गया, जिससे अधिक उत्पादन मिलने के साथ ही इसमें ओमेगा की मात्रा भी ज्यादा हो। आठ साल के अनुसंधान के बाद कैप के वैज्ञानिकों ने ऐसी वैराइटी विकसित की, जिसे नाम दिया गया 'कैफेमा'। 

सभी परीक्षणों के बाद इसे पेटेंट कराने के लिए 26 सितंबर 2017 को यूएस पेटेंट एंड ट्रेडमार्क आफिस को आवेदन भेजा गया। अब कैफेमा को पेटेंट हासिल हो गया है। कैप के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नृपेंद्र चौहान के अनुसार अब उत्तराखंड में विकसित भंगजीरा की यह वैराइटी सुरक्षित हो गई है और कोई भी इसका उपयोग करता है तो उसे उत्तराखंड से अनुमित लेनी होगी। उन्होंने जानकारी दी कि इस वैराइटी में ओमेगा-3 की मात्रा 58.8 प्रतिशत और ओमेगा-6 की 17.76 प्रतिशत है। सामान्य भंगजीरा में ओमेगा-3 की मात्रा 51.4 प्रतिशत होती है, जबकि ओमेगा-6 की 18 प्रतिशत। उत्पादकता के दृष्टिकोण से देखें तो कैफेमा से प्रति हेक्टेयर 18.8 कुंतल बीज उपलब्ध होगा, जबकि सामान्य भंगजीरा से यह 9.5 कुंतल ही प्राप्त होता है। इसी प्रकार कैफेमा से प्राप्त होने वाला तेल भी सामान्य की तुलना में दोगुना है। 

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जानिए क्या हैं इसके फायदे 

वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नृपेंद्र चौहान ने बताया कि भंगजीरा का तेल बाजार में उपलब्ध कॉड लीवर ऑयल (मछली का तेल) का विकल्प है। कॉड लीवर ऑयल का उपयोग हृदय समेत अन्य बीमारियों के उपचार में किया जाता है। भंगजीरा तेल में वे सभी तत्व हैं, जो कॉड लीवर आयल में हैं। यानी जो व्यक्ति मांसाहारी नहीं हैं, वे भंगजीरा के तेल का उपयोग कर सकेंगे। भंगजीरा की नई वैरायटी के पेटेंट होने के बाद इसके व्यावसायिक उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा और किसानों को फायदा होगा। अब वे वैराइटी गार्डन की बजाय इसकी ठीक से खेती करेंगे और मुनाफा कमा सकेंगे। यानी, अब उत्तराखंड को सगंध फसलों के रूप में एक नई व्यावसायिक फसल मिल गई है।

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