देहरादून में चैन के पल हो रहे काफूर, ध्वनि प्रदूषण पर सिस्टम के कान बंद Dehradun News

दून में ध्वनि प्रदूषण का स्तर मानकों से कहीं ऊपर जा पहुंचा है। फिर चाहे रेजिडेंशियल क्षेत्र हो कमर्शियल हो या साइलेंस जोन वहां ध्वनि प्रदूषण के जो भी मानक तय किए गए हैं।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Tue, 06 Aug 2019 12:21 PM (IST) Updated:Tue, 06 Aug 2019 08:11 PM (IST)
देहरादून में चैन के पल हो रहे काफूर, ध्वनि प्रदूषण पर सिस्टम के कान बंद Dehradun News
देहरादून में चैन के पल हो रहे काफूर, ध्वनि प्रदूषण पर सिस्टम के कान बंद Dehradun News

देहरादून, सुमन सेमवाल। दून में चैन के पल काफूर होते जा रहे हैं। घर के भीतर आंखें बंद करने पर किसी को मन की आवाज सुनाई दे या न दे, वाहनों के हॉर्न से ध्यान जरूर भंग हो जाता है। इससे पहले कि रात को आंखों में नींद घर करने लगती है, बाहर से कोई न कोई तीव्र शोर चैन उड़ाकर चला जाता है। दून में ध्वनि प्रदूषण का स्तर मानकों से कहीं ऊपर जा पहुंचा है।

फिर चाहे रेजिडेंशियल (आवासीय) क्षेत्र हो, कमर्शियल हो या साइलेंस जोन, वहां ध्वनि प्रदूषण के जो भी मानक तय किए गए हैं, उससे कहीं अधिक ध्वनि प्रदूषण रिकॉर्ड किया जा रहा है। रात-दिन वाहनों का शोर ध्वनि प्रदूषण की स्थिति को तो बढ़ा ही रहा है, इसके अलावा वेडिंग प्वाइंटों के धूम-धड़ाके व तमाम अन्य कार्यक्रमों में भी मानकों का ख्याल नहीं रखा जा रहा है।

 

ध्वनि प्रदूषण की स्थिति यह हो चुकी है कि यदि आप सड़क पर चल रहे हैं तो मोबाइल पर बात करना भी संभव नहीं। आपस में बातचीत करने पर भी चिल्लाकर बोलना पड़ता है। इससे अनावश्यक मानसिक तनाव भी बढ़ता है और कानों को भी नुकसान पहुंचता है। खासकर बुजुर्गों व बीमार लोगों की सेहत के लिए यह दशा और खतरनाक है। ध्वनि प्रदूषण की इससे विकराल स्थिति क्या होगी कि अस्पतालों के निकट तय किए गए साइलेंस जोन में भी दूर-दूर तक शांति नहीं मिल पाती। पार्कों को भी साइलेंस जोन के दायरे में रखा गया है और वहां भी कोलाहल की हलचल में मन बेचैन हो उठता है।

कानफोड़ू शोर में दिल्ली-मुंबई को टक्कर

दून का आकार दिल्ली व मुंबई जैसे महानगरों से काफी छोटा है। यहां वाहनों की संख्या भी अपेक्षाकृत काफी कम व अन्य तरह की शोरगुल वाली गतिविधियां भी सीमित है। इसके बाद भी ध्वनि प्रदूषण की बात करें तो दून इन दोनों महानगरों को टक्कर देता दिख रहा है। प्रमुख सात महानगरों पर जारी की गई केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट पर गौर करें तो दिल्ली व मुंबई में जितना ध्वनि प्रदूषण है, दून में भी लगभग वही स्थिति है। कुछ इलाके ऐसे भी हैं जहां दून का प्रदूषण दिल्ली-मुंबई से अधिक है। हालांकि, औसत रूप से दून में स्थिति कुछ कम जरूर नजर आती है।

एनजीटी मार्च में जारी कर चुका नियंत्रण के आदेश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने ध्वनि प्रदूषण को बेहद खतरनाक मानते हुए राज्यों की उदासीनता पर नाराजगी जाहिर की है। एनजीटी ने इस संबंध में मार्च 2019 में आदेश जारी कर ध्वनि प्रदूषण वाले अलग-अलग स्थानों की पहचान कर कार्ययोजना बनाने के आदेश दिए थे। सभी राज्यों के मुख्य सचिव को इस संबंध में प्लान तैयार कर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) व एनजीटी में दाखिल करने को कहा गया था। इसके लिए तीन माह का समय दिया गया था, जो अब बीत चुका है। तब यह बात भी आई थी कि सीपीसीबी ने सात महानगरों के लिए ध्वनि प्रदूषण को निगरानी तंत्र विकसित किया है, जिसका विस्तार देशभर में करने के भी निर्देश जारी किए गए। दूसरी तरफ नियमों की अनदेखी करने पर कार्रवाई के लिए भी कहा गया है।

दिल्ली ने किया अनुपालन, दून में उदासीनता

एनजीटी के आदेश के अनुरूप दिल्ली ने ध्वनि प्रदूषण पर कार्रवाई के लिए वेबसाइट तैयार की है। कोई भी व्यक्ति इस पर ध्वनि प्रदूषण से संबंधित शिकायत दर्ज करा सकता है। इस साइट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि शिकायत करने के बाद 30 मिनट के भीतर उस पर कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। इसकी जिम्मेदारी संबंधित क्षेत्र के पुलिस थानों को दी गई है। हालांकि, दून में एनजीटी के आदेश के अनुरूप ऐसी कोई कवायद नजर नहीं आ रही है। यहां तक कि उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को एनजीटी के आदेश की जानकारी तक नहीं है और शासन स्तर पर भी कोई कार्रवाई नहीं की जा रही।

आनंद वर्धन, प्रमुख सचिव (वन एवं पर्यावरण) का कहना है कि‍ इस समय मुझे एनजीटी के आदेश की जानकारी नहीं है कि उस पर किस तरह पर कवायद चल रही है। मंगलवार को आदेश का पता किया जाएगा और उसके अनुपालन में आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।

एसपी सुबुद्धि, सदस्य सचिव (उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड)  का कहना है कि ध्वनि प्रदूषण पर पुलिस-प्रशासन के स्तर पर कार्रवाई की जाती है। रही बात एनजीटी के आदेश की तो इस पर शासन स्तर से निर्णय लिया जाना है। उच्च स्तर से जो भी दिशा-निर्देश प्राप्त होंगे, उसका अनुपालन किया जाएगा।

नियम रात 10 बजे तक का, आवाज आती सारी रात

डीजी, लाउडस्पीकर आदि जैसे ध्वनि विस्तारक यंत्रों को रात बजे के बाद बजाने की मनाही है। इसके बाद भी इस नियम की अनदेखी की जाती रहती है। इसका ताजा उदाहरण है जीएमस रोड स्थित कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) कार्यालय की शिकायत। इस कार्यालय के पास ईपीएफओ का आवासीय परिसर भी है और इससे सटे भाग पर एक टैरेस आधारित रेस्तरां भी है।

रेस्तरां के मध्यम रात्रि के बाद तक भी जारी संगीत को लेकर स्वयं ईपीएफओ कमिश्नर मनोज यादव पुलिस को कई दफा शिकायत कर चुके हैं। बावजूद इन पर कार्रवाई करने की जगह पुलिस का पूरा संरक्षण प्राप्त रहता है। यह महज एक उदाहरण है और दून के तमाम स्थानों पर इस तरह के रेस्तरां, क्लब आदि में संगीत का शोर आसपास के लोगों को परेशान करता रहता है। वहीं, देर रात जारी तमाम समारोह में भी ध्वनि के मानकों की खुलेआम अनदेखी की जाती है।

वाहनों के प्रेशर हॉर्न भी वजह

दून में अधिकतर वाहनों पर प्रेशर हॉर्न लगे हैं, जिनकी आवाज बेहद तीक्षण होती है। खासकर दुपहिया वाहनों में इस तरह के हॉर्न आसानी से देखने को मिल जाएंगे। स्पेयर पाटर्स की दुकानों में भी ऐसे हॉर्न बिकते हैं। पुलिस-प्रशासन न तो इस तरह के वाहनों पर कार्रवाई करता है, न ही ऐसे हॉर्न बेचने वालों पर।

नागरिकों की भी है जिम्मेदारी

हर काम डंडे के जोर पर भी कराया जाना संभव नहीं। ध्वनि प्रदूषण के लिए कहीं न कहीं नागरिकों का गैर जिम्मेदाराना रवैया भी कारक बन रहा है। जाम में फंसे होने के बाद भी कई लोग अनावश्यक रूप से हॉर्न बजाते रहते हैं। इससे जाम तो नहीं खुलता, मगर ध्वनि प्रदूषण का ग्राफ जरूर बढ़ जाता है। इसके साथ ही अस्पतालों के आसपास या शांत इलाकों, रिहायशी क्षेत्रों में भी अनावश्यक शोरगुल उत्पन्न करने से परहेज किया जाना चाहिए। लोगों की जरा सी समझदारी शहर के हित में बड़ा योगदान बन सकती है।

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