18 साल पहले बंदरों की वजह से वीरान हुआ ये स्कूल, आज तक नहीं बदली तस्वीर

18 वर्ष पहले बच्चे बंदरों के आतंक से स्कूल छोड़कर गए और फिर कभी नहीं आए। बावजूद इसके स्कूल अब भी कागजों में चल रहा है।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Mon, 08 Jul 2019 03:56 PM (IST) Updated:Mon, 08 Jul 2019 09:02 PM (IST)
18 साल पहले बंदरों की वजह से वीरान हुआ ये स्कूल, आज तक नहीं बदली तस्वीर
18 साल पहले बंदरों की वजह से वीरान हुआ ये स्कूल, आज तक नहीं बदली तस्वीर

रायवाला, दीपक जोशी। इसे कहते हैं चिराग तले अंधेरा। जिस शिक्षा विभाग पर नौनिहालों की जिन्दगी रोशन करने का जिम्मा है उसे अपनी ही संपत्ति की सुध नहीं है। हम बात कर रहे हैं, राजकीय प्राथमिक विद्यालय खैरीकलां की। डोईवाला ब्लॉक के अंतर्गत यह एक मात्र ऐसा विद्यालय है जो सिर्फ कागजों में जिंदा है। 18 वर्ष पहले पढ़ने वाले बच्चे इस विद्यालय को छोड़कर यहां से इसलिए चले गए थे, क्योंकि तब यहां कटखने बंदरों का आतंक फैला था और अक्सर जंगली जानवर स्कूल में आ जाते थे। स्कूल इमरात के आसपास काम करने वाले मजदूर यहां पर रहने लगे हैं। तब से यहां न शिक्षक हैं न बच्चे, फिर भी विभाग ने इस स्कूल को बंद नहीं किया, कागजों में यह आज भी जिंदा है।

सरकारी सिस्टम की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। इसमें शिक्षा विभाग भी कमतर नहीं कहा जा सकता। इसकी बानगी राजकीय प्राथमिक विद्यालय खैरीकलां के रूप में शिक्षा विभाग खुद पेश कर रहा है। बच्चों को गांव में ही प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध हो सके इसके लिए सर्व शिक्षा अभियान और अन्य योजनाओं के माध्यम से सैकड़ों स्कूल खोले गए। लेकिन डोईवाला ब्लॉक के खैरी कलां गांव में 90 के दशक में खोला गया प्राथमिक विद्यालय वर्ष 2000 में सिर्फ इसलिए बंद हो गया कि स्कूल के आस-पास कटखने बंदरों का आतंक फैल गया था। जिसके डर से यहां पढ़ने वाले 25 बच्चों ने स्कूल आना ही छोड़ दिया। इनमें से कुछ बच्चों ने दूसरे स्कूलों में दाखिला ले लिया। छात्र संख्या शून्य हो जाने के बाद तत्कालीन प्रधानाध्यापक अतर सिंह को भी विभाग ने गौहरीमाफी स्थानांतरित कर दिया। स्कूल के अभिलेख संकुल केंद्र गढ़ी श्यामपुर में मौजूद हैं। 

कागजों में यह स्कूल अभी भी जिंदा है। वहीं राजस्व अभिलेखों में विद्यालय के नाम करीब ढाई बीघा भूमि भी है। जिस पर स्कूल का तीन कमरों का भवन बना हुआ है। भवन व भूमि की कीमत का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन तब से विभाग ने इसकी सुध नहीं ली। वर्तमान में भवन में आस-पास काम करने वाले मजदूर रहते हैं। स्कूल की जमीन के काफी बड़े हिस्से पर कब्जा हो गया है। एक हिस्सा पंचायत ने जलसंस्थान को भी दिया हुआ है जिस पर पेयजल टैंक बना है। ग्राम पंचायत ने स्कूल की बिल्डिंग को पंचायत घर बनाने के लिए प्रस्ताव पास किया हुआ है।

खैरीकलां के उप प्रधान निर्मल रावत ने बताया कि स्कूल बिल्डिंग जंगल के किनारे है जहां बंदर और जंगली जानवरों का खतरा है। लोग ऐसी जगह पर बच्चों को भेजने से कतराते हैं। पंचायत द्वारा शिक्षा विभाग से इस भूमि को वापस मांगा गया है ताकि यहां पर पंचायत घर बनाया जा सके।

श्यामपुर संकुल समन्वयक मोहनलाल पेटवाल ने बताया कि साल 2006-07 में स्कूल को पुन: संचालित करने की कोशिश की गई लेकिन स्थानीय समुदाय का पूरा सहयोग नहीं मिला। यदि लोग चाहे तो यहां पर दुबारा से कक्षाएं संचालित की जा सकती हैं।

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