केदारनाथ घाटी में हेलीकॉप्‍टरों के शोर से दुर्लभ वन्य जीवों की जान जोखिम में

केदारनाथ वन्य जीव प्रभाव में हेलीकॉप्टरों का शोर उनके जीवन को लील रहा है।हैरत देखिए कि मानकों के विरुद्ध उड़ान भर रही हेली कंपनियों पर सरकार ने भी अब तक कोई एक्शन नहीं लिया है।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Mon, 22 Oct 2018 09:45 AM (IST) Updated:Mon, 22 Oct 2018 09:59 AM (IST)
केदारनाथ घाटी में हेलीकॉप्‍टरों के शोर से दुर्लभ वन्य जीवों की जान जोखिम में
केदारनाथ घाटी में हेलीकॉप्‍टरों के शोर से दुर्लभ वन्य जीवों की जान जोखिम में

देहरादून, [जेएनएन]: रुद्रप्रयाग जिले में समुद्रतल से दस हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर घने जंगलों में रहने वाले दुर्लभ प्रजाति के वन्य जीवों के जीवन पर मानवीय ज्यादतियां भारी पड़ रही हैं। तमाम नियमों के दरकिनार कर केदारनाथ वन्य जीव प्रभाव में हेलीकॉप्टरों का शोर उनके जीवन को लील रहा है। इसे देखते हुए वन विभाग ने हेली सेवाओं का संचालन करने वाली कंपनियों के लिए मानक भी निर्धारित किए थे, लेकिन इन पर अमल नहीं हो पा रहा। हैरत देखिए कि मानकों के विरुद्ध उड़ान भर रही हेली कंपनियों पर सरकार ने भी अब तक कोई एक्शन नहीं लिया है। 

उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाले दुर्लभ प्रजाति के वन्य जीवों का ग्राफ लगातार सिमट रहा है। वन्य जीव संरक्षण को ठोस पहल न होने और मौसम के साथ ही पारिस्थितिकीय तंत्र में आ रहे बदलाव उनके जीवन को सीधे तौर पर प्रभावित कर रहे हैं। केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग की ही बात करें तो यहां से हेलीकॉप्टर बड़ी संख्या में केदारनाथ के लिए उड़ान भरते हैं। जिससे इस हिमालयी क्षेत्र में भारी ध्वनि प्रदूषण होता है। हेलीकॉप्टरों की निगरानी को वन विभाग की ओर से बनाए गए मॉनीटरिंग सेंटर की रिपोर्ट बताती है कि जो मानक विभाग ने निर्धारित किए थे, उन पर हेली कंपनियां खरी नहीं उतर रही। रोजाना मानकों से कहीं अधिक उड़ान भरी जा रही हैं। इतना ही नहीं, तय ऊंचाई 600 मीटर से काफी नीचे हेलीकॉप्टर उड़ान भर रहे हैं। जिसका सीधा असर दुर्लभ वन्य जीवों पर पड़ रहा है। 

बता दें कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में वास करने वाले वन्य जीव सबसे ज्यादा प्रभावित ध्वनि प्रदूषण से ही होते हैं। तेज शोर होने पर वह घबरा जाते हैं, जिससे उनकी जीवनचर्या पूरी तरह गड़बड़ा जाती है। दूसरी ओर, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने भी इस संबंध में प्रदेश सरकार से रिपोर्ट तलब की है। 

इस वर्ष अब तक हुई 30 हजार उड़ानें 

हेली कंपनियां इस यात्रा सीजन में अब तक 30 हजार उड़ानें केदारनाथ वन्य जीव विहार के ऊपर से भर चुकी हैं। इस हिसाब से एक दिन में औसतन 400 के आसपास उड़ान भरी जा रही हैं। जबकि, मानकों के हिसाब से यह संख्या 300 से कम होनी चाहिए। जाहिर है इसका असर यहां रह रहे वन्य जीवों पर पड़ रहा होगा। 

केदारनाथ प्रभाग में मौजूद वन्य जीव 

कस्तूरा मृग, लाल भालू, भरल, सफेद भालू, हिम तेंदुआ, टाइगर, राज्य पक्षी मोनाल पक्षी, काला भालू आदि।

ध्वनि प्रदूषण का वन्य जीवों पर पड़ता बुरा प्रभाव पड़ता

अमित कंवर (डीएफओ, केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग, रुद्रप्रयाग) का कहना है कि ध्वनि प्रदूषण का वन्य जीवों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इसे देखते हुए हेली कंपनियों के लिए उड़ानों के मानक निर्धारित किए गए थे। साथ ही उड़ानों की जांच के लिए विभाग ने केंद्र भी स्थापित किया है। बावजूद इसके हेली कंपनियां मानकों को ताक पर रखकर मनमाफिक उड़ान भर रही हैं। इसकी रिपोर्ट वन निदेशालय और मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक को भी भेज दी गई है।

केदारनाथ में हेली कंपनियों ने किया 57 करोड़ का कारोबार

विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ धाम के लिए हेली सेवाओं को संचालन करने वाली कंपनियां इस सीजन में अब तक 57 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार कर चुकी हैं। जबकि, अभी यात्रा समाप्त होने में 20 दिन का समय बचा है। आपदा के बाद केदारनाथ के लिए हवाई सेवाओं का क्रेज बढ़ा है, जिससे हेली यात्रियों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है।

2013 की केदारनाथ त्रासदी से पूर्व भी हेली कंपनियां केदारनाथ के लिए अपनी सेवाएं देती रही हैं, लेकिन आपदा के बाद पैदल मार्ग की दुष्वारियों को देखते हुए यात्री पैदल चलने के बजाय हवाई सफर को ही प्राथमिकता देने लगे। जिससेकेदारनाथ के हेली सेवा संचालित करने वाली कंपनियों की बाढ़-सी आ गई। इस वर्ष बरसात से पूर्व नौ हेली कंपनियों ने धाम के लिए अपनी सेवाएं दी, जबकि बरसात के बाद पांच कंपनियां सेवाएं दे रही हैं। 

केदारनाथ के सबसे पहले वर्ष 2003 में पवनहंस कंपनी ने अगस्त्यमुनि से हेली सेवा का संचालन शुरू किया था। इसके बाद कंपनी ने अकेले ही तीन साल तक केदारनाथ के लिए सेवाएं दी।

वर्ष 2006 में फाटा, गुप्तकाशी, शेरसी, नाला व सोनप्रयाग से भी हेली सेवाओं का संचालन शुरू हुआ। बावजूद इसके तब सीमित संख्या में ही यात्री हेलीकॉप्टर से दर्शनों को जाते थे। लेकिन, आपदा के बाद तो केदारघाटी में हेली कंपनियों की बाढ़-सी आ गई। इस वर्ष नौ हेली कंपनियों को शासन और डायरेक्टर जनरल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीसीए) से केदारनाथ के लिए उड़ान भरने की अनुमति मिली।

इनमें पवनहंस, यूटीआर, पिनैकल, हिमालयन हेली, ग्लोबल वेक्ट्रा हेलीकॉर्प, हेरिटेज, ऐरो एविएशन, आर्यन व ट्रांस भारत कंपनी शामिल हैं। विशेष यह कि इस वर्ष हेली यात्रियों की संख्या में भी जबर्दस्त इजाफा हुआ है। कपाट खुलने से लेकर अब तक 7.08 लाख यात्री बाबा के दर्शनों को पहुंचे हैं। इनमें हेली यात्रियों की संख्या 1.05 लाख है। इससे हेली कंपनियों को लगभग 57 करोड़ की कमाई हुई है। 

आपदा के बाद हेली यात्रियों का आंकड़ा

वर्ष----------कुल यात्री----------हेली यात्री

2018-------708635--------105336 (अब तक)

2017-------471235-------98213

2016-------308723-------91405

2015-------154430-------71192

2014-------40832-------25570   

हेली सेवाओं के प्रति यात्रियों का रुझान काफी बढ़ा

कैप्टन पीके छावड़ी (एमडी, ट्रांस भारत एविएशन कंपनी) का कहना है कि हेली सेवाओं के प्रति यात्रियों का रुझान काफी बढ़ गया है। यही वजह है कि हेली कंपनियां भी बड़ी संख्या में केदारनाथ के लिए उड़ान भरने को आवेदन करती हैं। अगले सीजन इसमें और इजाफा होने की उम्मीद है।

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