हरीश ने पकड़ी राहुल की राह, सूबे की सियासत में होंगे सक्रिय

राहुल गांधी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ने के ऐलान पर उनकी टीम के अहम सदस्य और राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत ने भी उनकी राह पकड़ ली।

By Edited By: Publish:Fri, 05 Jul 2019 03:00 AM (IST) Updated:Fri, 05 Jul 2019 12:23 PM (IST)
हरीश ने पकड़ी राहुल की राह, सूबे की सियासत में होंगे सक्रिय
हरीश ने पकड़ी राहुल की राह, सूबे की सियासत में होंगे सक्रिय

देहरादून, विकास धूलिया। लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद राहुल गांधी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ने के ऐलान पर उनकी टीम के अहम सदस्य और राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत ने भी उनकी राह पकड़ ली। सोशल मीडिया के जरिये अपना इस्तीफा सार्वजनिक कर रावत ने इस संदेश में जो इबारत लिखी, उससे यह भी साफ हो गया है कि भविष्य में वह खुद को उत्तराखंड की सियासत तक सीमित करने का मंसूबा बांधे हुए हैं। 

अब यह बात दीगर है कि पिछले पांच सालों से बुरी स्थिति से गुजर रही उत्तराखंड कांग्रेस को हरीश रावत कितनी धार दे पाते हैं और कांग्रेस के सूबाई क्षत्रप उन्हें इसके लिए कितना मौका देते हैं। 

हरीश रावत उत्तराखंड में कांग्रेस के उन चुनिंदा दिग्गजों में शुमार किए जाते हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में अपना अहम मुकाम बनाया। संगठन में तमाम पद संभाल चुके रावत केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे। वर्ष 2014 में उन्हें कांग्रेस आलाकमान ने केंद्र से हटाकर उत्तराखंड भेजा। तब उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के उत्तराधिकारी के रूप में मुख्यमंत्री बनाया गया।

उस वक्त प्रदेश कांग्रेस में सतपाल महाराज, विजय बहुगुणा, डॉ. इंदिरा हृदयेश, यशपाल आर्य पार्टी के बड़े क्षत्रप थे। रावत का उत्तराखंड की सियासत में प्रवेश पार्टी के कई बड़े नेताओं को रास नहीं आया। नतीजतन, सबसे पहले वर्ष 2014 में सतपाल महाराज कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में नमो लहर में कांग्रेस पांचों सीटों पर पराजित हुई।

इसके बाद तो कांग्रेस नेताओं के पार्टी छोड़ने का सिलसिला ही शुरू हो गया। मार्च 2016 में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के नेतृत्व में डॉ. हरक सिंह रावत समेत 10 कांग्रेस विधायक भाजपा में चले गए। फिर वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से ऐन पहले कैबिनेट मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष के साथ ही दो बार कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहे यशपाल आर्य ने भी कांग्रेस छोड़ भाजपा का रुख कर लिया। इससे हुआ यह कि सूबे में मात्र हरीश रावत ही पार्टी के एकमात्र खेवनहार बनकर रह गए। तब हरीश रावत के पास मौका था कि वह पार्टी को अपने दम पर खड़ा करते, लेकिन हुआ यह कि कांग्रेस के इस विखंडन के बाद पार्टी की हर चुनाव में बुरी गत बनती चली गई। 

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस महज 11 सीटों तक सिमट गई और उत्तराखंड के अलग राज्य के रूप में वजूद में आने के बाद पहली बार भाजपा अकेलेदम 57 सीटें हासिल कर सत्ता तक पहुंच गई। स्वयं मुख्यमंत्री रहते हुए हरीश रावत दो सीटों पर हार गए। इससे प्रदेश कांग्रेस में रार शुरू हुई और आलाकमान ने रावत को उत्तराखंड से निकाल केंद्र की सियासत में भेज दिया।

उन्हें राष्ट्रीय महासचिव की अहम जिम्मेदारी के साथ ही असम का प्रभार सौंपा गया। इसके बावजूद रावत स्वयं को उत्तराखंड की सियासत से अलग नहीं कर पाए। इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में हरीश रावत नैनीताल सीट से मैदान में उतरे लेकिन कांग्रेस को लगातार दूसरी बार पांचों सीटों पर शिकस्त झेलनी पड़ी। इस स्थिति में केंद्रीय संगठन में मिली अहम जिम्मेदारी छोड़ना रावत की मजबूरी बन गई। 

अब जिस तरह उन्होंने पद छोड़ने का ऐलान किया, उससे यह और भी स्पष्ट हो गया कि अंतत: रावत फिर सूबे की सियासत में लौटने की तैयारी में हैं। बढ़ती उम्र के साथ पांच साल बाद के लोकसभा चुनाव तक केंद्र की सियासत में सक्रिय रहने से बेहतर शायद उन्हें उत्तराखंड में ही वापसी करना मुफीद लगा। क्योंकि यहां ढाई साल बाद वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसका संकेत उन्होंने अपनी फेसबुक पोस्ट में भी दिया है। 

रावत ने लिखा है, 'प्रेरणा देने की क्षमता केवल राहुल गांधी में है, उनके हाथ में बागडोर रहे तो यह संभव है कि हम 2022 में राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में वर्तमान स्थिति को बदल सकते हैं।'

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