42 साल से 'सपनों' में सड़क और डंडी-कंडी पर 'जिंदगी'

उत्तराखंड में आज भी कर्इ ऐसे गांव हैं सड़क का नामोनिशां तक नहीं है। जिसके चलते लोगों को मरीजों को अस्पताल ले जाने के लिए डंडी कंडी का इस्तेमाल किया जाता है।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Mon, 08 Jan 2018 01:46 PM (IST) Updated:Mon, 08 Jan 2018 09:18 PM (IST)
42 साल से 'सपनों' में सड़क और डंडी-कंडी पर 'जिंदगी'
42 साल से 'सपनों' में सड़क और डंडी-कंडी पर 'जिंदगी'

कालसी, [बलवीर भंडारी]: सड़क स्वीकृत होने के बावजूद 21वीं सदी में प्रदेश की राजधानी से सटे कालसी ब्लॉक के सड़क विहीन गांवों के लोग डंडी-कंडी पर मरीज को लेकर 30 किमी का पैदल सफर कर अस्पताल पहुंच रहे हैं। ऐसे में सरकारों की ओर से किए गए विकास के सारे दावे धरे के धरे रह जाते हैं। यह कहानी है फाइलों में स्वीकृत बेवड़धार-लुहन बैंड मोटर मार्ग की, जिसका वर्ष 1975 में सर्वेक्षण हुआ था। सर्वेक्षण के बाद 13 गांव के लोगों को सड़क से जुड़ने का सपना सच होता नजर आया था। लेकिन, अफसोस आज 42 साल बीतने के बाद भी यह सड़क क्षेत्र के सात हजार ग्रामीणों के सपनों से धरातल पर नहीं उतर पाई है। 

सड़क को विकास का सबसे बड़ा पैमाना माना जाता है। लेकिन, उत्तराखंड में आज भी कई गांव सड़क विहिन हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि सरकारें भी इन गांवों को सड़क सुविधा से जोड़ने के लिए ईमानदारी से प्रयास करती नजर नहीं आ रही हैं। इसका एक उदाहरण कालसी तहसील क्षेत्र का बेवड़ाधार-लुहन बैंड मोटर मार्ग है। शासन से स्वीकृति के बाद वर्ष 1975 में मोटर मार्ग के लिए सर्वेक्षण कार्य किया गया। लेकिन, सड़क सर्वे से आगे नहीं बढ़ पाई। नतीजतन, क्षेत्र के 13 गांव आज भी सड़क सुविधा को तरस रहे हैं। 

भालनू भातली खेड़ा, असायता, भोड़ा, काहा, नेहरा, पुनाहा, कम्हरोड़ा आदि गांवों में सड़क सुविधा नहीं होने से लोगों को कई मुसीबतों से रोजाना दो-चार होना पड़ता है। मरीजों को आज भी यहां डंडी-कंडी के सहारे 20 से 30 किमी की पैदल दूरी नापकर सड़क तक लाया जाता है, जहां से उन्हें गाड़ी से अस्पताल पहुंचाया जाता है। जबकि, काश्तकारों को अपनी नकदी फसल मंडी तक लाने के लिए घोड़े खच्चरों का सहारा लेना पड़ता है। जिससे उन्हें अतिरिक्त किराया चुकाना पड़ता है और आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है। 

धूमिल हो रही उम्मीद 

स्थानीय निवासी दीवान सिंह भंडारी, प्रेमदत्त भट्ट, मोहनलाल भट्ट, कुंवर सिंह चौहान बताते हैं कि 42 वर्षों में सड़क के नाम पर विभाग ने एक पत्थर तक नहीं रखा। गांवों के बुजुर्ग हो चुके लोग निराश होकर कहते हैं, अब तो लगता नहीं कि जीते जी गांव तक सड़क देख पाएंगे। ग्रामीण बताते हैं कि सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने के बावजूद निर्माण कार्य शुरू नहीं होने से अब वे निराश हो चुके हैं। सात हजार की आबादी को दिक्कतें झेलनी पड़ रही है।  

वहीं एसडीएम बीके तिवारी का कहना है कि सड़क का निर्माण कार्य किन कारणों से शुरू नहीं हुआ, इसकी जांच कराकर संबंधित विभाग को उचित कार्रवाई के निर्देश दिए जाएंगे। प्रयास किए जाएंगे कि जल्द से जल्द सड़क निर्माण कराया जाएगा। 

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