मां भगवान का रूप तो पिता भी देवता से कम नहीं, पढ़िए पूरी खबर

जीवन में माता-पिता का महत्व सभी जानते हैं। मां का प्यार हमें जिंदगी जीने की कला सिखाता है तो पिता की डांट भी जीवन की चुनौतियों से पार पाने की सीख देती है।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Sun, 21 Jun 2020 10:15 AM (IST) Updated:Sun, 21 Jun 2020 09:28 PM (IST)
मां भगवान का रूप तो पिता भी देवता से कम नहीं, पढ़िए पूरी खबर
मां भगवान का रूप तो पिता भी देवता से कम नहीं, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, जेएनएन। जीवन में माता-पिता का महत्व सभी जानते हैं। मां का प्यार हमें जिंदगी जीने की कला सिखाता है तो पिता की डांट भी जीवन की चुनौतियों से पार पाने की सीख देती है। दरअसल, मां का भगवान का रूप तो पिता भी किसी देवता से कम नहीं। जो हर कदम पर हमारे साये की तरह साथ होते हैं। मां का प्यार तो जगजाहिर है, लेकिन पिता के सख्त बर्ताव और गंभीर रवैये में बच्चों के लिए छुपी चिंता और आशीर्वाद कम ही लोग समझ पाते हैं। चोट लगने पर बच्चा भले ही मां के पास जाए पर दर्द तो पिता को भी होता ही है। विश्व पितृ दिवस बहुत ही अच्छा मौका है पापा को यह अहसास दिलाने का कि आपको भी उनकी परवाह है। बच्चों के लिए पिता के त्याग को समझें, इस फादर्स डे को उनके साथ बिताकर खास बनाएं। पिता और बच्चों के बीच के अटूट बंधन और स्नेह मायने इनके नजरिये से आप भी जानें।

पापा ने कभी महसूस नहीं होने दी मां की कमी

श्रेष्ठ व शौर्य, (निवासी सरस्वती विहार) का कहना है कि जब बात बच्चों के पालन-पोषण की आती है तो अक्सर मां के सामने पिता के योगदान को कम ही आंका जाता है। लेकिन हकीकत इससे जुदा होती है। हम पिता के योगदान पर ध्यान दें तो वह भी मां से कम नहीं होता है। यह बात सिद्ध कर दिखाई है हमारे पिता वीएस नेगी ने। हम दो भाई हैं और सरस्वती विहार देहरादून में रहते हैं। वर्ष 2017 में मां का देहांत हो गया था। तब हम दोनों कक्षा नौवीं व पांचवी में थे। मां के देहांत के बाद पिता वीएस नेगी पर ही हमारे पालन-पोषण की जिम्मेदारी है। शुरुआत में हमारे पिता को काफी दिक्कत हुई। एक तरफ काम और दूसरी तरफ हमारी परवरिश। इन दोनों के बीच वह इस तरह उलझें कि अंत में उन्होंने हमें चुना और अपने काम को छोड़ दिया। पिताजी पहले कभी किचन में भी नहीं गए थे, लेकिन हमे मां की कमी महसूस न हो इसलिए उन्होंने हमारा पसंदीदा खाना बनाना सीखा। उनकी परवरिश का ही नतीजा है कि हम दोनों भाई टीवी शो वाइस ऑफ इंडिया किड्स में भी प्रस्तुति दे चुके हैं। साथ ही अपनी पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान दे रहे हैं। शुरुआत में पिता जब साफ-सफाई से लेकर घर के दूसरे काम करते थे तो बहुत बुरा लगता था, लेकिन अब हम दोनों भाई भी पिता का पूरा हाथ बंटाते हैं। सच में हमारे पिता ने कभी हमें मां की कमी महसूस नहीं होने दी। हमें अपने पिता पर गर्व है।

जब जब कमजोर पड़ा, पिता ने दी मजबूती

लेफ्टिनेंट चिन्मय शर्मा का कहना है आइएमए में हुई पीओपी के बाद पासआउट होकर लेफ्टिनेंट बना तो लगा कि पापा का सपना साकार हो गया। जब जब मैं कमजोर पड़ा, पापा ने सहारा दिया। वह बाहर से हमेशा सख्त रहे, मगर दिल उनका मोम की तरह रहा। इसलिए आज जो भी हूं, उनकी ही वजह से हूं’। मेरे पिता मनोज शर्मा रुद्रप्रयाग जिले के उखीमठ ब्लॉक में जूनियर हाई स्कूल में शिक्षक हैं। उन्हें देखकर सवेरे जल्दी उठने से लेकर, टाइम मैनेजमेंट और पढ़ाई की आदत बनाई। बचपन से लेकर सेना में अफसर बनने तक हर कदम पर पिता का पूरा सहयोग मिला। सैनिक स्कूल में घर से दूर अकेले सब कुछ करना मुश्किल लगता था, तब पिता ने ही प्रेरणा दी और जीवन में तपस्या की अहमियत बताई। एनडीए और आइएमए की ट्रेनिंग के दौरान जब भी कमजोर पड़ा, तब उन्होंने ही मजबूती दी। जीवन के अब तक के सफर में जितनी मेहनत मैंने की है, उससे दोगुनी मेरे पिता ने। पांचवीं क्लास में पापा का हाथ फ्रैक्चर हो गया था। वह स्कूल नहीं जा पा रहे थे। उसी समय सैनिक स्कूल के फार्म आए। पापा ने फार्म भरवा दिया और घर पर पढ़ाई शुरू हो गई। मैंने परीक्षा पास की और दाखिला भी मिल गया। सेना में जाने की इच्छा उनके सामने रखी तो वह फिर से मनोबल बढ़ाने में जुट गए। कभी डांटा तो कभी प्यार से चीजों को आसान बनाते गए। आज मैंने जो भी पाया, सब पिता की बदौलत है।

उस सीख ने 21 साल की उम्र में बना दिया जज

नेहा कुशवाहा (सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण) का कहना है कि पिता के सच बोलने, निडर होकर काम करने और अनुशासन में रहने की सीख ने न्यायिक सेवा में जाने का रास्ता आसान कर दिया। 12वीं के बाद एलएलबी (एच) की पढ़ाई दिल्ली से की। कोर्स के आखिरी वर्ष में ही न्यायिक सेवा में चयन हो गया। कहा कि बचपन में डॉक्टर बनना चाहती थी, परंतु अपने पिताजी से प्रेरणा लेते हुए एमबीबीएस में चयन होने के बाद भी न्यायिक सेवा को तरजीह दी।

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पिता राममूर्ति सीबीआइ में एडीशनल डायरेक्टर के पद पर कार्यरत हैं। उन्होंने हर कदम पर मेरा मार्गदर्शन किया। प्रतियोगिता की तैयारी के लिए मैने कोई कोचिंग नहीं ली। यदि लोग मुङो पसन्द करते हैं, या मेरे कार्य की प्रशंसा करते हैं तो शायद इसलिए, क्योंकि मैं अपने पिता की परछाई हूं। मेरे पिताजी ने मुझे बचपन से ही यह सिखाया कि जो भी काम करो, देश हित उसमें सबसे ऊपर होना चाहिए। मैं उनकी इस शिक्षा का सदैव सम्मान करती हूं।

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