रेरा में 60 दिन में शिकायत के निस्तारण का है नियम, डेढ़ से दो साल तक भी फरियादी काट रहे चक्कर

मई 2017 में जब रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट लागू किया गया था तब लग रहा था कि आमजन के सपनों के आशियाने की राह सुगम हो गई है। हालांकि जैसे-जैसे वक्त बीतता गया रेरा का फेरा भी ढीला पड़ता गया।

By Sumit KumarEdited By: Publish:Mon, 05 Apr 2021 06:10 AM (IST) Updated:Mon, 05 Apr 2021 06:10 AM (IST)
रेरा में 60 दिन में शिकायत के निस्तारण का है नियम, डेढ़ से दो साल तक भी फरियादी काट रहे चक्कर
मई 2017 में जब रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट लागू किया गया था।

सुमन सेमवाल, देहरादून: मई 2017 में जब रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट लागू किया गया था, तब लग रहा था कि आमजन के सपनों के आशियाने की राह सुगम हो गई है। हालांकि, जैसे-जैसे वक्त बीतता गया, रेरा का फेरा भी ढीला पड़ता गया। आलम यह है कि रेरा में जिन शिकायतों का 60 दिन के भीतर निस्तारण करना होता है, उनका महीनों बाद भी अता-पता नहीं होता। फरियादी बस तारीख लेकर लौट जाते हैं। 

रेरा अध्यक्ष अप्रैल में रिटायर हो रहे हैं और उनके स्तर पर करीब 50 ऐसी शिकायतें लंबित हैं, जिन पर सुनवाई पूरी हो चुकी है। इनके आदेश कब जारी होंगे, कुछ पता नहीं। उनके बाद जो व्यक्ति अध्यक्ष की कुर्सी संभालेंगे, उनके लिए आदेश जारी करना टेढ़ी खीर साबित होगा। क्योंकि उनके समक्ष किसी तरह की सुनवाई नहीं होगी। उन्हें फाइलों का गहनता के साथ अध्ययन करने के बाद आदेश जारी करना पड़ेगा।

आमजन की राशि नहीं लौटा रहे बिल्डर

रेरा में अधिकतर शिकायतें समय पर फ्लैट पर कब्जा न देने की हैं। अधिकतर मामलों के निस्तारण में बिल्डर को आदेश दिया जाता है कि निवेशकों की राशि ब्याज सहित लौटा दी जाए। इसके बाद भी बिल्डर आदेश का पालन नहीं करते और रेरा भी उनसे अपने आदेश का पालन नहीं करवा पाता। 46 से अधिक ऐसे आदेश हैं, जिनमें करीब 12 करोड़ रुपये की वसूली के लिए आरसी (रिकवरी सर्टिफिकेट) कटवाने के आदेश करने पड़े। फिर भी अभी तक करीब 70 लाख रुपये की वसूली हो पाई है।

रेरा में न्याय निर्णायक अधिकारी नहीं

रियल एस्टेट एक्ट लागू हुए करीब चार साल होने जा रहे हैं और अभी रेरा में न्याय निर्णायक अधिकारी की तैनाती नहीं की जा सकी है। जिन शिकायतों में निवेशकों को क्षतिपूर्ति दिलानी होती है, उन प्रकरणों को न्याय निर्णायक अधिकारी के समक्ष रखना होता है। रेरा के तमाम आदेश में यह लिखा होता है कि क्षतिपूर्ति के लिए न्याय निर्णायक अधिकारी के समक्ष अलग से आवेदन किया जाए। साथ में यह भी लिखा होता है कि अभी न्याय निर्णायक अधिकारी की तैनाती नहीं की गई है।

बिल्डरों पर पकड़ ढीली, समय पर पूरी नहीं हो रही परियोजनाएं

रेरा की पकड़ मनमानी करने वाले बिल्डरों पर ढीली पड़ती जा रहा है। कायदे से बिल्डरों को अपनी परियोजना की प्रगति का विवरण हर तीन माह में देना होता है, मगर 15 फीसद भी ऐसा नहीं कर रहे। लिहाजा, जब तक शिकायत न मिले, तब तक रेरा को पता ही नहीं होता है कि किस परियोजना की प्रगति कैसी है। परियोजना अवधि बढ़ाने के लिए रेरा में दाखिल किए गए एक्सटेंशन के 60 आवेदनों से भी समझा जा सकता है कि फ्लैट पर कब्जा पाने के लिए निवेशकों के हिस्से सिर्फ इंतजार आ रहा है।

यह भी पढ़ें- Uttarakhand Forest Fire: जंगल की आग के लिहाज से उत्तराखंड में 2016 जैसे हालात

प्रदेश में सिर्फ 306 परियोजनाएं

रेरा पर एक बड़ी जिम्मेदारी इस बात की भी है कि जो भी आवासीय या व्यावसायिक परियोजनाएं बन रही हैं, उनका अनिवार्य रूप से रजिस्ट्रेशन करवाया जाए। ताकि किसी भी विवाद की स्थिति में निवेशकों के हितों की रक्षा की जा सके। स्थिति यह है कि प्रदेश में अब तक महज 306 के करीब परियोजनाओं का रजिस्ट्रेशन किया जा सका है। रियल एस्टेट एजेंट/प्रॉपर्टी डीलरों के पंजीकरण की स्थिति भी 220 के करीब है, जबकि हर गली-मोहल्ले में प्रॉपर्टी का सौदा कराने वाले लोग घूम रहे हैं। उत्तराखंड रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी के अध्यक्ष विष्णु कुमार का कहना है कि  शिकायतों का बोझ काफी बढ़ गया है। लॉकडाउन में कार्यालय बंद रहने के चलते काम की गति धीमी पड़ गई थी। प्रयास किए जा रहे हैं कि निस्तारित मामलों में अधिक से अधिक आदेश जारी कर दिए जाएं। रेरा में स्टाफ की भी कमी है। इस कारण भी काम में विलंब होता है। 

 

रेरा अध्यक्ष की पीएम व सीएम से शिकायत

रेरा की लेटलतीफी से आजिज होकर 65 वर्षीय नवीनचंद्र नौटियाल ने प्रधानमंत्री (पीएम) व मुख्यमंत्री (सीएम) के पास शिकायत दर्ज कराई है। उन्होंने कहा कि बिल्डर की वादाखिलाफी को लेकर उन्होंने रेरा में शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत पर त्वरित कार्रवाई करने की जगह वह समय पर समय देते रहे। बमुश्किल 14 माह के विलंब से प्रकरण का निपटारा किया जा सका। उन्होंने आरोप लगाया कि संबंधित बिल्डर के सभी प्रकरण वह स्वयं सुनते हैं। बेंच परिवर्तित करने की मांग भी उन्होंने स्वीकार नहीं की। लिहाजा, उन्होंने इस मामले पर उचित कार्रवाई की मांग की। 

यह भी पढ़ें- उत्तराखंड में रोजगार के द्वार खोलेगा बर्ड टूरिज्म, वर्तमान में करीब 60 स्थलों में ही होती है बर्ड वाचिंग

Uttarakhand Flood Disaster: चमोली हादसे से संबंधित सभी सामग्री पढ़ने के लिए क्लिक करें

chat bot
आपका साथी