चाहते हैं आपके खेत में हो मक्के की बंपर पैदावार, तो कृषि वैज्ञनिकों की इन बातों का रखें ध्यान
कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के वैज्ञानिक फोन पर किसानों को सामयिक फसल से बेहतर उत्पादन के टिप्स दे रहे हैं।
विकासनगर(देहरादून), राजेश पंवार। लॉकडाउन में कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के वैज्ञानिक फोन पर किसानों को सामयिक फसल से बेहतर उत्पादन के टिप्स दे रहे हैं। उनकी किसानों को सलाह है कि गेहूं की कटाई के बाद खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए प्रति हेक्टेयर 200 क्विंटल गोबर की खाद डालें। देहरादून जिले के पांच ब्लॉकों कालसी, चकराता, सहसपुर, विकासनगर व रायपुर में 9000 हेक्टेयर क्षेत्र में मक्का की खेती की जाती है। मक्का की बुआई का उचित समय मध्य मई से लेकर जून तक है। ऐसे में अगर किसान वैज्ञानिकों की सलाह पर अमल करते हैं, तो मक्का की बंपर पैदावार हो सकती है।
कालसी और चकराता ब्लॉक के पर्वतीय क्षेत्रों में मक्के की संकुल प्रजाति, जबकि सहसपुर, रायपुर के साथ ही विकासनगर ब्लॉक के मैदानी इलाकों में संकर प्रजाति को ज्यादा तरजीह दी जाती है। सभी ब्लॉकों में प्रति हेक्टेयर मक्का की उत्पादकता 19 क्विंटल है, जो कि काफी कम है। कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के वैज्ञानिक डॉ. संजय सिंह कहते हैं कि कम उपज के कारणों का पता कर उपज में दोगुना वृद्धि संभव है।
कम उपज होने की एक वजह यह है कि किसान मक्का की प्रजाति का सही चयन नहीं करता। साथ ही खेती में उवर्रक प्रबंधन पर भी ध्यान नहीं दिया जाता। कहा कि मक्का की फसल में तना, चोटी भेदक कीट, पत्तियों के रस चूसने वाले कीट और फफूंद जनित बीमारियां लगती हैं। इससे फसल की गुणवत्ता अच्छी नहीं हो पाती और किसानों को मनमाफिक कीमत भी नहीं मिलती।
बुआई के समय पर बीज का उपचार अति आवश्यक है। इसके लिए प्रति किलो बीज में दो ग्राम कार्बेंडाजिम और एक मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड का टीका अवश्य लगा लें। इसके बाद प्रति एकड़ भूमि के लिए रखे गए बीजों में 200 मिलीलीटर एजोटोबेक्टर व 200 मिलीलीटर पीएसबी मिलाना जरूरी है। डॉ. संजय सिंह ने बताया कि प्रति हेक्टेयर उर्वरकों की मात्र में 150 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट का प्रयोग किया जाना चाहिए।
पर्वतीय क्षेत्रों में, जहां पर असिंचित भूमि पर खेती की जा रही हो, वहां पर जिंक के अतिरिक्त अन्य उर्वरकों की आधी मात्र प्रयोग करने की सलाह दी जाती है। बुआई के तुरंत पश्चात अतराजीन की तीन किलोग्राम मात्र अथवा पेंदीमैथलीन की तीन लीटर मात्र प्रति 600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से खेत में खरपतवार उगने की समस्या लगभग पूरी तरह समाप्त हो जाती है। डॉ. संजय ने कहा कि मक्का की फसल में झुलसा रोग की समस्या आती है, इसलिए खड़ी फसल में कवकनाशी कार्बेंडाजिम का छिड़काव किया जाना चाहिए।
यह भी पढ़ें: युवा ने बाइक से कर दी सात बीघा खेत की जुताई, लागत सुन आप भी रह जाएंगे हैरान
मक्के की उन्नत प्रजातियां
वैज्ञानिक डॉ. संजय सिंह ने बताया कि मक्का की उन्नतशील संकुल प्रजाति में कंचन गौरव और अमर विवेक प्रमुख हैं। जबकि, संकर प्रजाति में किसान डीकेसी 7074 पी, 3377 पी और 3501 प्रजाति का चुनाव कर सकते हैं। पंत संकर मक्का-3, और विवेक संकर मक्का उत्तम प्रजाति हैं। प्रति हेक्टेयर भूमि के लिए संकुल किस्मों की 18 से 25 किलोग्राम और संकर मक्का की 18 से 20 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है। हेक्टेयर क्षेत्र में कालसी, चकराता, सहसपुर, विकासनगर और रायपुर ब्लॉक में होती है मक्के की खेती जबकि, प्रति हेक्टेयर उत्पादकता मात्र 19 क्विंटल है
यह भी पढ़ें: मई में भी बारिश और ओलों की किसानों पर पड़ी मार, फसल तबाह