अशोका लिलैंड कंपनी ने बसों के डिजाइन में चला डाली मनमर्जी, निगम ने रोकी बसों की आपूर्ति

अशोका लिलैंड से मिलने वाली बसों में भी गड़बड़ी सामने आ गई। बताया जा रहा कि लिलैंड ने भी बसों के डिजाइन में अपनी मनमर्जी चला डाली।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Mon, 16 Dec 2019 03:24 PM (IST) Updated:Mon, 16 Dec 2019 03:24 PM (IST)
अशोका लिलैंड कंपनी ने बसों के डिजाइन में चला डाली मनमर्जी, निगम ने रोकी बसों की आपूर्ति
अशोका लिलैंड कंपनी ने बसों के डिजाइन में चला डाली मनमर्जी, निगम ने रोकी बसों की आपूर्ति

देहरादून, अंकुर अग्रवाल। परिवहन निगम में टाटा कंपनी से खरीदी बसों में मिली गड़बड़ियों का मामला सुलग ही रहा था कि इस बीच अशोका लिलैंड से मिलने वाली बसों में भी गड़बड़ी सामने आ गई। बताया जा रहा कि लिलैंड ने भी बसों के डिजाइन में अपनी मनमर्जी चला डाली। परिवहन निगम की ओर से नए डिजाइन में बसों की छत में भी आपातकालीन दरवाजा दिया गया था, लेकिन लिलैंड कंपनी ने इसे नजर-अंदाज कर पूरी छत बंद कर दी। यह सूचना मिलते ही रोडवेज अधिकारी लिलैंड के अलवर राजस्थान स्थित प्लांट पहुंच गए और बसों की आपूर्ति रोक दी। अब लिलैंड दोबारा से बसों की छत डिजाइन के अनुसार बनवा रहा है। वहीं, रोडवेज प्रबंध निदेशक रणवीर सिंह चौहान ने बताया कि डिलीवरी से पहले लिलैंड की बसों की सीआइआरटी से जांच कराई जाएगी।

इस तरह हुई थी बसों की खरीद 

नई बसों की खरीद के लिए रोडवेज को सबसे पहले बसों का डिजाइन बनाना पड़ता है। मसलन, बसें कितनी सीटर व व्हीलबेस की हों, बसों की हार्स-पॉवर कितनी हो एवं बनावट कैसी रखी जाए, आदि-आदि। फिर टेंडर निकाले जाते हैं। उत्तराखंड में रोडवेज के टेंडर में सिर्फ अशोका लिलैंड और टाटा कंपनी ही शामिल होती आई हैं। इस मर्तबा 300 बसों की खरीद प्रक्रिया में भी ऐसा ही हुआ। लिलैंड की बसों की कीमत टाटा की अपेक्षा एक लाख रुपये अधिक थी, लेकिन टाटा की बसें लंबाई में कम जबकि लिलैंड की लंबाई में ज्यादा बताई गई।

चूंकि, राज्य में दोनों तरह की बसें चाहिए थी, लिहाजा अफसरों ने 150 छोटी बसों का आर्डर टाटा को दे दिया जबकि 150 बड़ी बसों के लिए लिलैंड को चुना गया। इसके बाद बसों की बॉडी बनाने के दौरान रोडवेज की तकनीकी टीम को बार-बार निरीक्षण के लिए कंपनी के प्लांट में जाना पड़ता है, ताकि यह देखा जाए कि बसें तय डिजाइन के अनुसार बन रही हैं या नहीं। साथ ही उनमें लगने वाले सामान की गुणवत्ता भी जांची जाती है और फिर यह रिपोर्ट रोडवेज मुख्यालय को सौंपी जाती है।

तकनीकी टीम ने जताई थी आपत्ति

टाटा कंपनी के गोवा प्लांट में बसों के बनते वक्त गई रोडवेज की तकनीकी टीम ने लंबे गियर लीवर पर आपत्ति जताई थी। इस दौरान टाटा के अफसरों ने बताया कि पहले बड़ा गियर बक्सा होता था, लेकिन यूरो-4 में छोटा गियर बक्सा लगाया गया है। टाटा ने यह भी बताया कि यही बसें उत्तर प्रदेश और हिमाचल में भी चल रहीं। जिसके बाद रोडवेज अफसरों ने इसी लंबे गियर लीवर को मंजूरी दे दी।

बसें बनने के बाद हुआ निरीक्षण

बसों के निरीक्षण की जांच में रोडवेज के तीन अफसरों की टीम गठित है। इनमें एक महाप्रबंधक और दो उपमहाप्रबंधक शामिल हैं। सूत्रों ने बताया कि लिलैंड की बसों का बनते वक्त निरीक्षण ही नहीं हुआ। जब बसें बनकर तैयार हो गई तो निरीक्षण किया गया व उसमें तय डिजाइन का नजर-अंदाज की बात सामने आई। 

यह  भी पढ़ें: जांच में फेल हुई रोडवेज की सभी 150 नई बसें कंपनी को होंगी वापस

रणवीर सिंह चौहान (प्रबंध निदेशक उत्तराखंड परिवहन निगम) का कहना है कि रोडवेज की ओर से जो तकनीकी टीम बसों के निर्माण के वक्त जांच के लिए जाती है, वह सामान की गुणवत्ता व तय डिजाइन की जांच करती है। बसों में तकनीकी खामी तो उनके संचालन पर ही सामने आ सकती है। टाटा की बसों में आई खराबी को देखते हुए लिलैंड से मिलने वाली बसों की पहले ही सीआइआरटी जांच कराई जाएगी। जांच में डिजाइन पास होने के बाद ही बसों की डिलीवरी ली जाएगी।

यह भी पढ़ें: उत्‍तराखंड परिवहन निगम की 150 नई बसों में गड़बड़ी ही गड़बड़ी, पढ़िए पूरी खबर

chat bot
आपका साथी