1870 में ग्रिफिथ ने संस्कृत विश्वविद्यालय में बैठकर वाल्मीकि रामायण का किया था अनुवाद

संस्कृत दुनिया की प्राचीनतम वैज्ञानिक भाषाओं में से एक है संस्कृत की महत्ता को समझते हुए ही दुनिया के तमाम विद्वान काशी में प्राच्य विद्या की साधना कर चुके हैं।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Tue, 27 Aug 2019 10:48 AM (IST) Updated:Tue, 27 Aug 2019 05:46 PM (IST)
1870 में ग्रिफिथ ने संस्कृत विश्वविद्यालय में बैठकर वाल्मीकि रामायण का किया था अनुवाद
1870 में ग्रिफिथ ने संस्कृत विश्वविद्यालय में बैठकर वाल्मीकि रामायण का किया था अनुवाद

वाराणसी [अजय कृष्ण श्रीवास्तव]। संस्कृत दुनिया की प्राचीनतम वैज्ञानिक भाषाओं में से एक है। संस्कृत की महत्ता को समझते हुए ही दुनिया के तमाम विद्वान काशी में प्राच्य विद्या की साधना कर चुके हैं। इनमें से प्रमुख नाम अंग्रेज विद्वान आरटीएच ग्रिफिथ का भी है। वर्ष 1870 के आसपास उन्होंने काशी के हृदय स्थल संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में बैठकर वाल्मीकि रामायण का अंग्रेजी में अनुवाद किया था। इस प्रकार वाल्मीकि रामायण का सर्वप्रथम अंग्रेजी में अनुवाद काशी की ही देन है, जिस स्थल पर उन्होंने वाल्मीकि रामायण का अंग्रेजी में अनुवाद किया था। वह स्थल स्मारक के रूप में विश्वविद्यालय में आज भी विद्यमान है।

ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों को संस्कृत की महत्ता समझाने के लिए ग्रिफिथ ने संस्कृत विश्वविद्यालय में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद व अथर्ववेद के साथ महाकवि कालिदास रचित कुमार संभव का भी सबसे पहले अंग्रेजी में अनुवाद किया था। डंकन की पहल पर संस्कृत केंद्र संस्कृत की महत्ता को अंग्रेज अच्छी तरह समझते थे। यही कारण था कि बनारस के रेजिडेंट जोनाथन डंकन ने अंग्रेजी शासन से यहां पर संस्कृत अध्ययन केंद्र खोलने की अनुमति मांगी थी। इसके बाद ब्रिटिश शासन ने वर्ष 1791 में बनारस संस्कृत पाठशाला स्थापित की। वर्ष 1844 में नाम काशिक  राजकीय संस्कृत कालेज हुआ जिसे वर्ष 1847 में क्वींस कॉलेज किया गया। स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1958 में इसे राज्य विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। ऐसे में इसका नाम फिर बदलकर वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय कर दिया गया। वहीं वर्ष 1974 में इसका नाम फिर बदल कर संपूर्णानंद संस्कृत विवि किया गया। 

228 वर्ष पुराना विवि का इतिहास 

संस्कृत अध्ययन केंद्र खुलने से लेकर अब तक विश्वविद्यालय का इतिहास 228 वर्ष पुराना है। जे. म्योर संस्कृत कालेज के पहले प्राचार्य थे जबकि जेआर वैलेंटाइन दूसरे व आरटीएच ग्रिफिथ तीसरे प्राचार्य रहे। उच्च कोटि  के संस्कृत विद्वान ग्रिफिथ वर्ष 1861 से 1876 तक बनारस संस्कृत कॉलेज के प्राचार्य रहे। उन्होंने संस्कृत के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया। संस्कृत के कई महत्वपूर्ण ग्रंथों का उन्होंने अंग्रेजी में अनुवाद किया, ताकि अंग्रेज संस्कृत की महत्ता समझ सकें। 1830 में यहां संस्कृत के साथ अंग्रेजी की पढ़ाई भी शुरू हुई। 1857 से स्नातकोत्तर की कक्षाएं व 1880 से लिखित परीक्षा प्रणाली शुरू हुई थी।

chat bot
आपका साथी