कण्व ऋषि के आश्रम में हुआ शकुंतला और पुत्र भरत का लालन-पालन, सोनभद्र के कंडाकोट में साक्ष्‍य

सोनभद्र में जिला मुख्यालय से आठ किलो मीटर की दूरी पर कैमूर श्रृंखला के शीर्ष स्थल पर स्थित कण्व ऋषि की तपस्थली है जो कंडाकोट नाम से जानी जाती है। पौराणिक घटनाओं का साक्षी रहा कंडाकोट अपने घोर पराभव की ओर है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Tue, 03 Nov 2020 04:30 AM (IST) Updated:Tue, 03 Nov 2020 09:43 AM (IST)
कण्व ऋषि के आश्रम में हुआ शकुंतला और पुत्र भरत का लालन-पालन, सोनभद्र के कंडाकोट में साक्ष्‍य
कैमूर श्रृंखला के शीर्ष स्थल पर स्थित कण्व ऋषि की तपस्थली है जो कंडाकोट।

सोनभद्र, जेएनएन। भारत की धरती का एक लंबा इतिहास है। यहां पर हर काल खंड में एक से एक विख्यात और प्रसिद्ध व्यक्तित्व जन्में। इसी में शामिल हैं वैदिक ऋषि कण्व। यह माना जाता है कि माना जाता है इस देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्वों ने व्यवस्थित किया। कण्व वैदिक काल के ऋषि थे। इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। इतना महत्वपूर्ण स्थल होने के बावजूद प्रशासन उपेक्षा अभी तक जारी है।

दरअसल, लाखों साल पुरानी श्रृंखला पर स्थित कण्व ऋषि के आश्रम के इर्द-गिर्द का हिस्सा खंडहर में तब्दील होने लगा है। चेतना, ज्ञान व अध्यात्म के मर्म को प्राप्त करने वाला स्थल उदासीनता के कारण पहचान खो रहा है। ऋग्वेद के आठवें मंडल के अधिकांश मंत्र महर्षि कण्व तथा उनके वंशजों तथा गोत्रजों द्वारा लिखे गए हैं। कुछ सूक्तों के अन्य भी द्रष्टा ऋषि हैं, किंतु प्राधान्येन व्यपदेशा भवन्ति अर्थात् प्रधानता से ही नाम होता है, के अनुसार महर्षि कण्व अष्टम मंडल के द्रष्टा ऋषि कहे गए हैं। इनमें लौकिक ज्ञान-विज्ञान तथा अनिष्ट-निवारण संबंधी उपयोगी मंत्र हैं।

सोनभद्र में जिला मुख्यालय से आठ किलो मीटर की दूरी पर कैमूर श्रृंखला के शीर्ष स्थल पर स्थित कण्व ऋषि की तपस्थली है जो कंडाकोट नाम से जानी जाती है। पौराणिक घटनाओं का साक्षी रहा कंडाकोट अपने घोर पराभव की ओर है। अब यहां न तो पेड़-पौधे हैं और न ही कहीं पक्षियों का कलरव होता है। यहां वैदिक कण्व ऋषि का आश्रम है। इसका जिक्र कालिदास ने अपने अभिज्ञानशाकुंतलम में किया है। हिंदू धर्म विश्वकोष में वैदिक कण्व ऋषि का सोनभद्र में आश्रम होने की जानकारी प्राप्त होती है। इनके नाम पर ही कंडाकोट नाम अस्तित्व में आया।

पर्यटकों को होती है परेशानी

यहां पहुंचने के लिए पर्यटक व श्रद्धालुओं को तीन किमी पैदल चलना पड़ता है। ऊबड़-खाबड़ रास्ते से गुजरते हुए लोग कहां पहुंच जाए, इसका कोई ठिकाना नहीं है।कंडोकोट की स्थिति यह है कि डमरू सरीखे इस पहाड़ी के ऊपरी हिस्से पर जीवन जीने के सभी साधन मौजूद हैं, वह भी प्रकृति प्रदत्त। सैकड़ों फीट ऊपरी सतह पर एक तालाब है। गुंबदनुमा पत्थर की पहाड़ी का ऊपरी हिस्सा मिट्टी की सतह से पटा हुआ है। इस पर अद्र्धनारीश्वर भगवान शिव व पार्वती की प्रतिमा है। पेड़-पौधे भरे हुए हैं। 256 सीढिय़ां तो बनाई गई हैं, लेकिन उन सीढिय़ों तक पहुंचने के लिए जिला मुख्यालय से कोई मार्ग नहीं है।

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