काशी में गठबंधन का फार्मूला होगा फेल, चुनावी रण में उतारना होगा चर्चित चेहरा

काशी में राजनीतिक धागे में बंधे सपा के मुखिया अखिलेश यादव व बसपा सुप्रीमो मायावती के लिए काशी में संयुक्त प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारना टेढ़ी खीर है।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Wed, 19 Dec 2018 09:49 PM (IST) Updated:Thu, 20 Dec 2018 09:05 AM (IST)
काशी में गठबंधन का फार्मूला होगा फेल, चुनावी रण में उतारना होगा चर्चित चेहरा
काशी में गठबंधन का फार्मूला होगा फेल, चुनावी रण में उतारना होगा चर्चित चेहरा

वाराणसी [विकास बागी] । समाजवादी पार्टी और बसपा के बीच भले ही गठबंधन का फार्मूला तय हो गया है लेकिन वाराणसी में वर्ष 2019 में गठबंधन के राजनीतिक धागे में बंधे सपा के मुखिया अखिलेश यादव व बसपा सुप्रीमो मायावती के लिए काशी में संयुक्त प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारना टेढ़ी खीर है। दोनों ही दलों के अंदरखाने में चर्चा जोरों पर है कि काशी में दोनों दलों के गठबंधन का फार्मूला टिक नहीं पाएगा। वाराणसी लोकसभा सीट से भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए कांग्रेस का साथ भी जरूरी है। कांग्रेस को साथ लिए बिना सपा-बसपा को वाराणसी के चुनावी रण में उतरना मुश्किल होगा।

भाजपा में लगभग यह तय है कि काशी को कई हजार करोड़ की सौगात दे चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्ष 2019 में भी यहीं से हुंकार भरेंगे। मोदी को टक्कर देने के लिए विरोधी दलों को काशी में कोई चर्चित चेहरा सामने लाना होगा। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में आप नेता व वर्तमान में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे थे लेकिन काशी की जनता ने उन्हें नकार दिया था। 

सपा-बसपा के बीच लोकसभा सीट का बंटवारा तय होने के बाद जब स्थानीय नेताओं से बातचीत की गई तो उन्होंने अभी इसपर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया लेकिन इतना जरूर कहा कि यहां गठबंधन उतनी मजबूती से नहीं टिक सकेगा लेकिन वाराणसी के आसपास के सीटों पर इसका प्रभाव देखने को मिलेगा। चंदौली, गाजीपुर, भदोही, जौनपुर, आजमगढ़ में गठबंधन भाजपा पर खासा असर डालेगा। 

सपा नेता मानते हैं कि काशी में यदि चुनाव मैदान में मोदी आते हैं तो जातीय समीकरण का खेल भी बिगड़ जाएगा। वाराणसी में यादव, वैश्य, पटेल व मुस्लिम के साथ ही ब्राह्मण व भूमिहार वोटबैंक जिसके पक्ष में जाएगा, जीत उसकी सुनिश्चित होगी।

सपा-बसपा के गठबंधन पर अभी कांग्रेस चुप है और दोनों दलों के बीच हुए सीटों के बंटवारे के बाद अपनी स्थिति का आंकलन कर रही है। यह तो लगभग तय है कि मायावती को सीटों को लेकर मनाना कांग्रेस के वश की बात नहीं है। ऐसे में भाजपा को पूरी उम्मीद है कि यूपी में सपा और बसपा के साथ कांग्रेस नहीं जाएगी। कांग्रेस अगर अकेले चुनाव मैदान में आती है तो भाजपा के लिए सीट निकालना उतना मुश्किल नहीं होगा। 

भाजपा और कांग्रेस का ही रहा है दबदबा : अब तक हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सात बार, भाजपा छह बार, जनता दल एक, सीपीएम एक और भारतीय लोकदल ने एक बार जीत दर्ज की है। समाजवादी पार्टी और बसपा कभी वाराणसी लोकसभा सीट पर कब्जा नहीं जमा सकी। 

सपा-बसपा की हो चुकी जमानत तक जब्त : वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में मोदी से मुकाबला करने उतरी सपा और बसपा अपने प्रत्याशियों की जमानत तक नहीं बचा सकी थी। हालांकि पिछले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी भले ही तीसरे स्थान पर रहे लेकिन जमानत उनकी भी जब्त हो गई थी। मोदी के खिलाफ चुनाव मैदान में  आप नेता अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस से अजय राय, सपा से कैलाश चौरसिया और बसपा से विजय प्रकाश जायसवाल चुनाव मैदान में थे। सपा की उस समय यूपी में सरकार थी, बावजूद इसके सपा प्रत्याशी को पांचवें स्थान पर संतोष करना पड़ा था।

chat bot
आपका साथी