सोनभद्र में ओडीओपी के लिए 2020 में मात्र तीन व्यापारियों को ही मिला लोन, 74 व्यापारियों ने दिखाई रुचि

एक जिला एक उत्पाद के जरिए स्थानीय वस्तुओं को वैश्विक पटल पर लाने की पहल मंद गति से रंग बिखेर रही है। पूर्वांचल में भदोही और मीरजापुर जिले के बाद कालीन व्यवसाय में सोनभद्र भी शामिल है। ओडीओपी में अभी यहां 74 व्यापारियों ने लोन के लिए आवेदन किया है।

By saurabh chakravartiEdited By: Publish:Sat, 14 Nov 2020 07:20 AM (IST) Updated:Sat, 14 Nov 2020 08:07 AM (IST)
सोनभद्र में ओडीओपी के लिए 2020 में मात्र तीन व्यापारियों को ही मिला लोन, 74 व्यापारियों ने दिखाई रुचि
ओडीओपी के तहत अभी यहां 74 व्यापारियों ने लोन के लिए आवेदन किया है!

सोनभद्र [अरुण कुमार मिश्र] । एक जिला एक उत्पाद के जरिए स्थानीय वस्तुओं को वैश्विक पटल पर लाने की पहल मंद गति से रंग बिखेर रही है। पूर्वांचल में भदोही और मीरजापुर जिले के बाद कालीन व्यवसाय में सोनभद्र भी शामिल है। लिहाजा इस उत्पाद को लेकर शुरुआती दिनों में उत्साह दिखा, लेकिन एक साल के आंकड़े पर गौर करें तो पाएंगे कि विकास का पहिया मद्धिम गति से चल रहा है। ओडीओपी के तहत अभी यहां 74 व्यापारियों ने लोन के लिए आवेदन किया है, जिसमें से मात्र तीन लोगों को ही इसका लाभ मिल पाया है।

दरअसल, जनपद में एक दशक पूर्व में कालीन का कारोबार खूब फला और-फूला। बाद के दिनों में सरकार की उपेक्षा और नीतियां इस कारोबार को नीचे की ओर ढकेलती गईं। अब हालात यह है कि कालीन कारोबार कुछ गांवों और एक हजार बुनकरों तक में ङ्क्षजदा है। या यूं कहें कि यहां सिर्फ कला ही बची खुची है। यहां के बुनकरों को मीरजापुर और भदोही की कंपनियां काम देती हैं और ये कारीगर अपनी उसी कला का जादू कालीन पर बिखेरते हैं। एक दशक पूर्व जनपद के प्राय: घरों में बुनकरी का कार्य संचालित होता था। ऐसे में गांवों की आर्थिक स्थिति अत्यंत समृद्ध थी। शहरों में पलायन शून्य था। कालीन की नक्काशी के लिए जनपद के कारीगरों का नाम था। यही कारण है उसी कला की बदौलत मीरजापुर और भदोही के कालीन कारोबार में जनपद के कारीगरों की भूमिका अहम है। बहरहाल, लॉकडाउन अवधि में ही उद्योग विभाग के लोगों ने जयपुर की एक कंपनी को यहां कंपनी लगाने के लिए अनुरोध किया था, लेकिन वह अभी परवाना नहीं चढ़ सकी है।

अभी कच्चा काम करते हैं बुनकर

उपायुक्त आरपी गौतम बताते हैं कि अभी तक जिले के जो भी बुनकर हैं उनके यहां कोई खास व्यवस्था नहीं है। वे भदोही या मीरजापुर से धागा लाकर कालीन की बुनाई करते हैं। फिनिङ्क्षसग किए बगैर ही कच्चा माल तैयार करके भदोही या मीरजापुर में अपने संबंधित ठेकेदार के यहां दे देते हैं। वहां से उसकी फिनिङ्क्षसग व मार्केटिंग का कार्य किया जाता है। जब तक यहां कोई कंपनी नहीं लग जाती है, तब तक उन्हें कालीन का उद्योग रफ्तार नहीं पकड़ सकेगा।

ओडीओपी में इनको मिला है लोन

पहले ही कालीन का कारोबार कर रहे घोरावल क्षेत्र के वीरेंद्र प्रताप ङ्क्षसह को ओडीओपी के तहत 10 लाख का लोन मिला है। इसी तरह बागेश्वरी को दो लाख व रमेश को एक का लोन मिला है।

केस : 1

घोरावल क्षेत्र के वीरेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि वह पिछले दस साल से कालीन का कारोबार कर रहे हैं। इस बार ओडीओपी में दस लाख का लोन मिलने से कारोबार में तेजी आएगी। घोरावल क्षेत्र के देवगढ़ गांव में कालीन का उद्योग लगाया है। एक साल में दस लाख का कारोबार हो जाता है। कालीन के लिए भदोही से आर्डर मिलता है, मजदूरों से काम कराकर उसको भेजा जाता है।

केस : 2

महांव गांव निवासी बागेश्वरी ने बताया कि ओडीओपी के लिए दस लाख के लिए लोन किया था। इसमें मात्र दो लाख मिला है। 1997 से कालीन का कारोबार चल रहा है। यहां पर कोई कंपनी न होने से कारोबार मंदा चल रहा है। हमारा महांव व सतद्वारी में उद्योग का सेंटर चल रहा है। मीरजापुर बरिया घाट से आर्डर मिलता है। लॉकडाउन के बाद से बहुत कम आर्डर मिल रहा है।

आंकड़ा एक नजर में...

-वर्ष 2020 में ओडीओपी से तीन लोगों को मिला लोन।

-बैंक की तरफ से 13 लाख का दिया गया लोन।

-74 लोगों ने किया था ओडीओपी में लोन के लिए आवेदन।

-जिले में कालीन के व्यापारियों की संख्या-लगभग एक हजार।

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