गोरखा का मान सम्मान और पहचान 'खुकरी' बनता है दुश्मनों का काल
युद्ध के दौरान विपरीत परिस्थितियों में गोरखा जवान अपने जिस हथियार से दुश्मन पर वार करते हैं वह खुकरी होता है।
आनंद मिश्रा, वाराणसी : युद्ध के दौरान विपरीत परिस्थितियों में गोरखा जवान अपने जिस हथियार से दुश्मनों का संहार करता है उसको सभी खुकरी के नाम से जानते हैं। यह हथियार जवानों को सुरक्षा के साथ ही जीवन को सरल बनाने में भी काम आता है। वाराणसी के छावनी में 36 जीटीसी के गोरखाओं को इसका प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
रिक्रूट से यंग राइफल मैन बनने के बाद गोरखा सैनिक का जो सबसे खतरनाक हथियार माना जाता है वह उसका परम्परागत हथियार खुकरी है।
खौफ से कांपती हैं आज भी वो वादिया - जहां चमकी थी वीर गोरखाओं की खुकरी। खुकरी और गोरखा एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरा अधूरा माना जाता है। ये खुकरी गोरखा जाति का परम्परागत हथियार है। विश्व के किसी भी आधुनिक सेनाओं में ऐसा कम ही देखने को मिलता है जिसमें सैनिक अपने परम्परागत हथियार को युद्ध एवं सेरेमोनियल परेड में बड़े मान सम्मान और आत्मीयता के साथ अपने से जोड़े रखते हैं। ये खुकरी एक ऐसा हथियार है जिसे गोरखा सैनिक अपने यूनिफार्म का हिस्सा मान कर धारण करता है।
39 गोरखा प्रशिक्षण केंद्र में 42 सप्ताह का कठिन प्रशिक्षण प्राप्त करने लेने के पश्चात प्रत्येक सैनिक पवित्र गीता पर हाथ रखकर देश के प्रति वफादारी, ईमानदारी तथा संविधान के अनुरूप देश के किसी भी कोने में जहां उसे भेजा जाएगा लक्ष्य की प्राप्ति, देश की रक्षा में मर मिटने की सौगंध खाते हैं। इसी अवसर पर गोरखा सैनिक को खुकरी प्रदान की जाती है जो उसे गर्व का एहसास कराते हुए एक अलग पहचान भी देती है।
दुश्मनों में खौफ पैदा करने तथा आमने सामने की मुठभेड़ में उनका सिर कलम करने में माहिर गोरखा जिस प्रकार खुकुरी का बखूबी प्रयोग करते हैं वह विश्व विख्यात है। प्रथम विश्व युद्ध मे तुर्की तथा दूसरे विश्व युद्ध मे जर्मन सैनिक इन नाटे कद के गोरखाली और उनके चमचमाते खुकरी से बहुत भयभीत थे। दशहरा के मौके पर गोरखा जवान अपने वर्दी की शान खुकुरी को शक्ति का प्रतीक मानते हैं बड़े श्रद्धा के साथ पूजन अर्चन तथा माता का जागरण करते हुए उत्सव भी मनाते हैं।