आर्थिकी पारिस्थितिकी : पढ़ाई आठवीं तक, योगदान कृषि वैज्ञानिकों से ज्यादा

वाराणसी : कई लोग राष्ट्रपति से एक मुलाकात की हसरत लिए मन मसोस कर रह जाते हैं, ऐसे में कोई शख्स पाच द

By JagranEdited By: Publish:Tue, 29 May 2018 12:58 PM (IST) Updated:Tue, 29 May 2018 12:58 PM (IST)
आर्थिकी पारिस्थितिकी : पढ़ाई आठवीं तक, योगदान कृषि वैज्ञानिकों से ज्यादा
आर्थिकी पारिस्थितिकी : पढ़ाई आठवीं तक, योगदान कृषि वैज्ञानिकों से ज्यादा

वाराणसी : कई लोग राष्ट्रपति से एक मुलाकात की हसरत लिए मन मसोस कर रह जाते हैं, ऐसे में कोई शख्स पाच दिनों में तीन बार राष्ट्रपति से रूबरू हो और उसमें से भी एक मुलाकात करीब 35 मिनट की हो तो जरूर उसमें कुछ खास होगा। ऐसे ही खास मेहमान बीते 19 से 23 मार्च तक थे बनारस के टड़िया गाव के प्रगतिशील किसान प्रकाश सिंह रघुवंशी।

प्रकाश महज आठवीं तक पढ़े हैं। लेकिन किसानी में ऐसे कमाल दिखा चुके हैं कि अच्छे-अच्छे कृषि वैज्ञानिक भी पीछे छूट जाएं। वह देश के उम्दा बीज उत्पादकों की श्रेणी में शुमार हैं। खुद तो बीज उत्पादन करते ही हैं साथ ही कई किसानों को भी बीज उत्पादक बनाने की मुहिम में जुटे हैं। प्रकाश का दावा है कि उनकी मुहिम से करीब 16 राज्यों के किसान लाभान्वित हो रहे हैं। बीजदान-महादान अभियान के तहत प्रकाश 100 अलग-अलग प्रजाति के गेहूं, धान, अरहर और सरसों की किस्म का चयन कर विशुद्ध किसानी अनुभव से शोध किया। नतीजा यह हुआ कि अब तक गेहूं की सात, धान की तीन और सरसों व अरहर की दो-दो प्रजातियों को विकसित कर चुके हैं।

यह विकसित प्रजातिया देश के नामी कृषि विश्वविद्यालयों की टेस्टिंग में सफल रही हैं। वर्ष 1954 में जन्मे प्रकाश के एक इंफेक्शन के चलते मंददृष्टि के शिकार हैं लेकिन उनकी दूरदर्शिता ने खेती-किसानी के क्षेत्र में कमाल कर दिखाया है। 2007 के पूर्व अपने शोध कार्यो के चलते प्रकाश बैंकों के कर्ज के तले दब चुके थे। फिर उसी वर्ष में उनके लगन और कार्य को पहचान मिली और कृषि क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा सात्वना पुरस्कार प्राप्त हुआ। किस्मत बदली और संस्थाओं ने उनकी मदद शुरू कर दी। 2009 में तब की राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने प्रथम राष्ट्रीय पुरस्कार के तौर पर एक लाख रुपये का चेक भेंट किया।

लगातार अपनी धुन में रमे रहे प्रकाश की ख्याति दूर तक पहुंची और उनके काम ने भी एक के बाद एक राज्य में अपनी पहुंच बनाई। प्रकाश बताते हैं कि उन्होंने कम दिनों में तैयार होने वाली रोग प्रतिरोधी प्रजातिया विकसित की। उदाहरण देते हैं कि जो किसान एक एकड़ में महज 12-15 कुंतल तक धान उत्पादन करते थे उन्हें 'कुदरत 5' प्रजाति से 30 से 32 कुंतल तक की पैदावार मिलने लगी। ऐसे ही 'कुदरत 9' गेहूं की प्रजाति से 40 फीसद तक अधिक उत्पादन मिला। अब वे किसानों को भी बीज उत्पादन कर बेचने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। बीज के अच्छे दाम मिल जाते हैं। वे बताते हैं कि अभी बिना ब्राड और कंपनी के ही उनके उत्पादित बीज वर्ष में करीब आठ से दस लाख का मुनाफा दिलाते हैं। अब सरकार की तरफ से उन्हें कंपनी बनाने में मदद दिए जाने का भी आश्वासन मिला है।

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