BHU स्थित भारत कला भवन में 5500 पांडुलिपियां जल्द होंगी डिजिटल Varanasi News

कोविड काल में विगत कई माह से बीएचयू का भारत कला भवन म्यूजियम बंद पड़ा रहा इस बीच सहेज कर रखी गईं लगभग साढ़े पांच हजार प्राचीन पांडुलिपियों पर नष्ट होने का खतरा मंडरा रहा है। डिजिटल प्रारूप तैयार करने वाली संस्थाओं से बातचीत कर रूपरेखा बनाई जा रही है।

By saurabh chakravartiEdited By: Publish:Mon, 30 Nov 2020 05:40 AM (IST) Updated:Mon, 30 Nov 2020 05:30 PM (IST)
BHU स्थित भारत कला भवन में 5500 पांडुलिपियां जल्द होंगी डिजिटल Varanasi News
बीएचयू स्थित भारत कला भवन म्यूजियम में 5500 पांडुलिपियां जल्द डिजिटल होंगी।

वाराणसी, जेएनएन। कोविड काल में विगत कई माह से बीएचयू का भारत कला भवन म्यूजियम बंद पड़ा रहा, इस बीच सहेज कर रखी गईं, लगभग साढ़े पांच हजार प्राचीन पांडुलिपियों पर नष्ट होने का खतरा मंडरा रहा है। वेदों, रामायण,आयुर्वेद से लेकर लगभग सभी कर्मकांडों की मूल व प्रथम प्रतिलिपियां भी इस म्यूजियम में संरक्षित की गईं हैं। इसके साथ ही मूल काशीखंड के कई भाग भी यहां पर मौजूद हैं, मगर उचित रखरखाव के बगैर इनका जीवन अधर में है।

इसको लेकर अब सजगता बरतते हुए जल्द ही इन पांडुलिपियों को डिजिटल स्वरूप में लाने की कवायद शुरू हो गई है। भारत कला भवन म्यूजियम की उप निदेशक डा. जसमिंदर कौर का कहना है कि भारत कला भवन में शेष बचे कार्यों के पूर्ण होते ही पांडुलिपियों को डिजिटल स्वरूप देने पर कार्य शुरू कर दिया जाएगा। डिजिटल प्रारूप तैयार करने वाली संस्थाओं से बातचीत कर एक रूपरेखा बनाई जा रही है।

पांडुलिपियों के छिपे हुए उद्धरण व रहस्यों को डिजिटल फार्मेट में सरलतापूर्वक पढ़ा व समझा जा सकेगा

डा. कौर के अनुसार जल्द ही पांडुलिपियों के छिपे हुए उद्धरण व रहस्यों को डिजिटल फार्मेट में सरलतापूर्वक पढ़ा व समझा जा सकेगा। इसके साथ ही शोधार्थी इनमें कही गई बातों को स्त्रोत की तरह उपयोग कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि सार्वजनिक रूप से भले ही यह म्यूजियम विगत कई माह से बंद रहा हो, मगर यहां रखे गए उपकरणों के डिजिटलीकरण का कार्य तेजी से चल रहा है। अभी तक सिक्के, पेंटिंग, टेक्सटाइल, आर्कियोलाजी, धातु व पत्थरों के डिजिटलाइजेशन का साठ फीसदी कार्य पूर्ण हो चुका है, जबकि शेष कार्य इस साल के अंत तक खत्म हो जाएंगे।

करीब ढाई हजार पांडुलिपियां बांस पेपर से संरक्षित

भारत कला भवन के सहायक संग्राध्यक्ष विनोद कुमार का कहना है कि करीब 5500 पांडुलिपियों में से मात्र 2600 को ही अम्ल रहित पेपर से संरक्षित किया गया है, जबकि बाकी बांस पेपर से लपेट कर रखी गईं हैं, जिससे इनके अस्तित्व पर काफी गहरा संकट आ चुका है। इसमें रखे गए गए कई महान व्यक्तित्वों के मूल दस्तावेजों, चिटिठयों, शोध और अनुसंधानों को संरक्षित करना अब बेहद जरूरी है।

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