पांडुलिपियों के प्रकाशन से बचेगी संस्कृति की बौद्धिक संपदा

जागरण संवाददाता, वाराणसी : संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. यदुनाथ दुबे ने कहा कि प

By JagranEdited By: Publish:Sat, 25 Mar 2017 01:49 AM (IST) Updated:Sat, 25 Mar 2017 01:49 AM (IST)
पांडुलिपियों के प्रकाशन से बचेगी संस्कृति की बौद्धिक संपदा
पांडुलिपियों के प्रकाशन से बचेगी संस्कृति की बौद्धिक संपदा

जागरण संवाददाता, वाराणसी : संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. यदुनाथ दुबे ने कहा कि पुरातन पांडुलिपियों के संरक्षण एवं छिपी ज्ञान- निधि का प्रकाशन बहुत जरूरी है। वे बीएचयू के भारत अध्ययन केंद्र में यूनेस्को के विश्व स्मृति कार्यक्रम के तहत 'राष्ट्र की अभिलेखीय सम्पदा : स्थिति निर्धारण एवं क्षमता संवर्धन' विषय पर आयोजित कार्यशाला में शुक्रवार को बतौर मुख्य अतिथि विचार व्यक्त कर रहे थे।

विशिष्ट अतिथि भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद, दिल्ली के सदस्य सचिव प्रो. रजनीश शुक्ल ने कहा कि किसी भी संस्कृति की बौद्धिक संपदा को लंबे समय तक वाचिक परंपरा से सुरक्षित नहीं किया जा सकता। यानी संस्कृत की अप्रकाशित पांडुलिपियों तथा अनुपलब्ध प्रकाशित ग्रंथों का प्रकाशन अत्यावश्यक है। इस मौके पर डा. विजय शंकर शुक्ल, डा. सैय्यद तारिक हसन, प्रो. युगल किशोर मिश्र, डा. कुमार संजय झा आदि ने विचार रखे।

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