टूटे पुल को लेकर प्रशासनिक उदासीनता बरकरार

गर्मी में ठंडक का अहसास दिलाने वाली आइसक्रीम व आइसकैंडी अगर आप खा रहे हैं तो जरा सावधान हो जाइए. क्योंकि हो सकता है कि ये मीठा जहर आपको व आपके बच्चों को अस्पतालों का चक्कर लगाने को मजबूर न कर दे। जहां ये आइसक्रीम और आइसकैंडी बनाई जा रही वहां के स्थानीय लोगों की मानें तो फैक्ट्री मालिकों का जनता की सेहत से कोई सरोकार नहीं है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 24 Apr 2019 09:33 PM (IST) Updated:Thu, 25 Apr 2019 06:29 AM (IST)
टूटे पुल को लेकर प्रशासनिक उदासीनता बरकरार
टूटे पुल को लेकर प्रशासनिक उदासीनता बरकरार

जागरण संवाददाता, ओबरा (सोनभद्र) : रेणुकापार के आदिवासी क्षेत्रों के मामले में पारंपरिक हो चुकी जिला प्रशासन की उदासीनता ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों की समस्या के मामले में दिखाई जा रही संवेदनहीनता ने जानलेवा स्थिति को स्थायी कर दिया है। मध्यप्रदेश सहित चोपन ब्लाक के दर्जनों सीमावर्ती टोलों को जोड़ने वाले परेवा नाला पर पुल को टूटे लगभग आठ माह हो गए लेकिन जिला प्रशासन अपनी निरंकुशता बनाए हुए है। 18 अगस्त 2018 को टूटे पुल की मरम्मत न होने के कारण आवागमन में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। पुल टूटने के बाद खतरनाक हो चुके आवागमन में अभी तक एक मौत सहित आधा दर्जन से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं। फिर भी ग्रामीण सहित तमाम वाहन विवशता में जान जोखिम में डालकर नाले को पार कर रहे हैं।

मध्य प्रदेश को जोड़ने वाले इस महत्वपूर्ण पुल के टूटने के कारण स्कूली बच्चों सहित ग्रामीणों को पुराने जोखिम भरे रास्ते से आवागमन करना पड़ रहा है। वर्तमान में लोकसभा चुनाव की तैयारियों में भी इसका असर सा़फ साफ दिखाई पड़ रहा है। भरहरी ग्राम पंचायत के दर्जनों टोलों तक जाने में दिक्कतें पेश आ रही है। वैकल्पिक व्यवस्था में भी गड़बड़ी

नाले पर बने पुल के टूटने के करीब आठ महीने बाद उक्त पुल से 50 मीटर पहले पुराने छलके पर पुलिया के निर्माण में गड़बड़ी दिखाई पड़ रहा है। वैकल्पिक व्यवस्था के तहत जिला पंचायत द्वारा बनाई जा रही पुलिया में मानक के अनुसार सामग्री का प्रयोग नहीं किया गया। केवल दिखावे के लिए सुकृत से बोल्डर लाकर लगाया गया। भरहरी के ग्राम प्रधान राम अवतार ने बताया कि घटिया सामान का इस्तेमाल किया जा रहा है जो कि मानसून में पुन: एक ही झटके में टूट जाएगा।जिस पुराने छलके पर पुलिया का निर्माण किया जा रहा है उसे प्रशासन ने ही खतरनाक बताते हुए कुछ वर्ष पहले बंद करने के साथ नई पुलिया बनाया था। नई पुलिया की ऊंचाई को देखते हुए संभावना है कि मानसून सत्र में वह डूब जाएगा। दोनों प्रदेशों के नागरिकों को दिक्क्त

टूटे पुल की वजह से उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती दर्जनों टोलों के ग्रामीणों सहित मध्यप्रदेश के लोगों को भी दिक्क्तें आ रही हैं। सीमावर्ती घोघरा, शिवपुरवा, कुशही, चितरंगी, कैथानी, देवरा, रतन पुरवा, चितावल, मिश्रगवा, मौहरिया, पनुवाड सहित दो दर्जन से ज्यादा टोलों के नागरिकों के लिए यह पुल काफी महत्वपूर्ण है। इन क्षेत्रों के लिए जिला मुख्यालय आने के लिए पुराने जर्जर हो चुके पुल का प्रयोग करना पड़ता है। साथ ही आपातकालीन मरीजों के लिए भी दिक्क्तें आती हैं। यही नहीं सबसे ज्यादा दिक्क्त गिट्टी व बालू का परिवहन करने वाले भारी वाहनों को हो रहा है। सोनभद्र में खनन को लेकर छाई मंदी के बाद इस मार्ग से भारी वाहनों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। पुराने पुल का प्रयोग करने के कारण अभी तक आधा दर्जन भारी वाहन पलट चुके हैं।

chat bot
आपका साथी