एनसीएल में कोल ट्रांसपोर्टर कल से हड़ताल पर

एनसीएल के अधिकृत कोयला ट्रांसपोर्टरों द्वारा सिगरौली कृष्णशिला बीना वारफाल दुधीचुआ वारफाल आदि परियोजनाओं से प्रतिदिन दर्जनो रैक कोयला ढुलाई व लोडिग का कार्य करते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 16 Sep 2019 06:28 PM (IST) Updated:Mon, 16 Sep 2019 06:28 PM (IST)
एनसीएल में कोल ट्रांसपोर्टर कल से हड़ताल पर
एनसीएल में कोल ट्रांसपोर्टर कल से हड़ताल पर

जासं, अनपरा (सोनभद्र) : रेलवे व एनसीएल की उदासीनता को लेकर कोल ट्रांसपोर्टरों ने सोमवार को 18 सितंबर से पूरे एनसीएल में कोल परिवहन ठप करने का निर्णय लिया है। इससे एनसीएल प्रबंधन की चिंताएं बढ़ गई हैं। कोयला उद्योग में विभिन्न श्रमिक संगठनों द्वारा 23 से 27 सितंबर तक हड़ताल का एलान किया जा चुका है।

सिगरौली माइनिग इंजीनियर्स एण्ड कैरियर्स एसोसिएशन के आरपी खंडेलवाल, संजय प्रताप सिंह, ओपी मिश्र, जितेन्द्र त्रिपाठी, सीपी सिंह ने कहा कि पूर्व में यह प्रावधान सभी के लिए पांच घंटे का निर्धारित था। लेकिन रेलवे द्वारा मनमाने ढंग से फ्री लोडिग टाइम का समय तीन घंटा कर दिया गया। एनसीएल ट्रांसपोर्टरों की कठिनाई को बखूबी जानते हुए मूक दर्शक बना हुआ है।

कहा कि एनसीएल के अधिकृत कोयला ट्रांसपोर्टरों द्वारा सिगरौली, कृष्णशिला, बीना वारफाल, दुधीचुआ वारफाल आदि परियोजनाओं से प्रतिदिन दर्जनों रैक कोयला ढुलाई व लोडिग का कार्य करते हैं। रेलवे द्वारा रैक लोडिग के लिए तीन घंटा एवं कहीं पांच घंटे का समय दिया जाता है। समयसीमा से अधिक होने पर निर्धारित दर से रेलवे द्वारा एनसीएल एवं एनसीएल द्वारा कोल ट्रांसपोर्टरो से कटौती की जाती है।

ट्रांसपोर्टरों से लाखों रुपए डैमरेज चार्ज के नाम पर कटौती की जा रही है। रेलवे रैक लोडिग में देरी होने के कई कारण होते हैं। कोयले का समुचित अनुपलब्धता, जर्जर सड़क, रात में जाम लगना, रेलवे फाटक का न होना आदि समस्याओं की ओर रेलवे व एनसीएल द्वारा ध्यान नही दिया जाता है। वार्ता में एनसीएल ट्रांसपोर्टरों की समस्याओं को स्वीकार करती है, फिर भी ट्रांसपोर्टरों के बिल से कटौती में कोई रियायत नही बरतती है। डैमरेज कटौती के नाम पर कमाई का जरिया बना चुकी रेलवे एनसीएल पर भी तानाशाही का रुख किए हुए है। विवश होकर एनसीएल ट्रांसपोर्टरों को बलि का बकरा बनाई हुई है। रेलवे द्वारा सिगरौली क्षेत्र में सबसे डैमेज एवं रद्दी रैक दिए जाते हैं। हर रैक में दस से बीस डब्बे डैमेज रहते हैं। कई बार तो डैमेज डिब्बे तीन दर्जन से अधिक हो जाते हैं। रेलवे द्वारा डब्बे का अनुरक्षण साइडिग में रैकप्लेस करने के बाद किया जाता है। इस दौरान बर्बाद हुए समय को भी डैमरेज के माध्यम से ट्रांसपार्टरों पर लाद दिया जाता है। बारिश में खदान, वारफाल एवं रोड की जर्जर स्थिति होने के बावजूद ट्रांसपोर्टर प्रतिदिन लाखों का नुकसान सहते हुए देशहित में कोल परिवहन कर रहे हैं।

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