जिम्मेदारों ने नहीं सुनी तो ग्रामीणों ने खुद किए हाथ मजबूत, अलग-अलग घाटों पर बना डाले पुल

तहसील, ब्लॉक व जिला मुख्यालय से कम हुई दूरी। पिछड़े क्षेत्र में रोजगार व व्यापार के खुल गए हैं नए रास्ते।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 23 May 2018 12:30 PM (IST) Updated:Wed, 23 May 2018 01:23 PM (IST)
जिम्मेदारों ने नहीं सुनी तो ग्रामीणों ने खुद किए हाथ मजबूत, अलग-अलग घाटों पर बना डाले पुल
जिम्मेदारों ने नहीं सुनी तो ग्रामीणों ने खुद किए हाथ मजबूत, अलग-अलग घाटों पर बना डाले पुल

श्रावस्ती[भूपेंद्र पाडेय]। तूफानों से आख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो, मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो।', यह शेर राप्ती नदी के कछार में स्थित गावों के लोगों पर सटीक बैठता है। इस अति पिछड़े क्षेत्र को तहसील ब्लॉक व जिला मुख्यालय से जोड़ने के लिए नदी के घाटों पर पक्के पुल की दरकार है। लंबे समय से ग्रामीणों की इस जरूरत पर सिर्फ राजनीति हो रही है। पुल न बनने से अधर में लटके विकास को गति देने के लिए ग्रामीणों ने खुद अपने हाथ मजबूत किए। मंजिल तक सफर आसान करने के लिए अलग-अलग घाटों पर बास-बल्ली के सहारे पुल बना लिया।

ठहरी हुई जिंदगी को मिली नई गति

जिले के इकौना व गिलौला विकास क्षेत्र के दर्जनों गाव राप्ती नदी के किनारे पर स्थित हैं। नदी में पानी भरा होने से इन गावों के लोग गावों में ही कैद होकर रह गए थे। सरकार की कल्याणकारी योजनाएं भी इन गावों तक नहीं पहुंच पाती थी। बरसात के दिन बीतने के बाद जब कछार में पानी कम होता है तो क्षेत्र के किसान यहा सब्जी की खेती करते हैं। इसे मंडी तक पहुंचाने के लिए रास्ता न होने से किसानों की गरीबी दूर नहीं हो पाती थी। जिला, तहसील व ब्लॉक मुख्यालय पहुंचने के लिए यहा के लोगों को 30 से 45 किलोमीटर तक अतिरिक्त सफर करना पड़ता था। कछार का इलाका होने से यहा सुगम यातायात के साधनों की भी कमी थी। गाव के लोगों ने कड़ी मेहनत कर राप्ती नदी के सिसवारा, मध्यनगर के बेली, ककरा व मझौवा सुमाल घाटों पर खुद से लकड़ी का पुल बनाकर तैयार कर लिया। अस्थाई ही सही पर इन पुलों ने कछार में रह रहे लोगों की ठहरी हुई जिंदगी को नई गति दी है। मामूली कर से होती है कमाई

गिलौला ब्लॉक के सिसवारा घाट पुल के देखरेख की जिम्मेदारी लिए सोहन लाल वर्मा बताते हैं कि पुल के सहारे नदी पार करने वाले लोगों से मल्लाही के तौर पर कुछ रुपये लिए जाते हैं। साइकिल सवार से पाच तथा बाइक सवार से 10 रुपये लिए जाते हैं। इस पैसे से पुल बनाने का खर्च तो निकलता ही है, इसकी सुरक्षा व प्रबंधन देखने वाले लोगों को रोजगार भी मिला है।

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