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Kheri Seat: गढ़ कहे जाने वाले इस क्षेत्र में नहीं मिल रहा सपा का कोई सारथी, चुनाव कमान संभालने को तैयार नहीं कोई नेता

कस्बा खीरी में लगभग 28 हजार मतदाता है जिसमें से 80 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता है जिन्हें सपा का परम्परागत वोट बैंक माना जाता है। 28 हजार मतदाता वाले मुस्लिम बाहुल्य कस्बे में पिछले विधान सभा चुनाव में लगभग 17 हजार वोट पड़े थे जिसमें से 13 हजार वोट सपा प्रत्याशी मिले थे। पिछले 25 सालों में छह बार नगर पंचायत का चुनाव हुआ जिसमें से...

By rakesh mishra Edited By: Riya Pandey Published: Sun, 28 Apr 2024 05:07 PM (IST)Updated: Sun, 28 Apr 2024 05:07 PM (IST)
गढ़ में ही नहीं मिल रहा सपा को सारथी

जागरण संवाददाता, खीरी। सपा का गढ़ कहे जाने वाले मुस्लिम बाहुल्य कस्बा खीरी में सपा को कोई सारथी नही मिल रहा है। नामांकन के बाद सपा की जनसभा व कार्यालय खोलने को लेकर सपा के प्रत्याशी स्थानीय नेताओं से सम्पर्क कर चुनाव प्रचार को धार देने की बात कह रहे हैं। लेकिन कोई स्थानीय सपा नेता चुनाव की बागडोर संभालने की तैयार नही है।

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हाल ही एक साल पूर्व नगर पंचायत के हुए चुनाव में टिकट वितरण को लेकर उभरी गुटबंदी उभर कर सामने आ गयी है। सपा प्रत्याशी व जिले के पदाधिकारी सपा की नगर इकाई से लेकर नगर पंचायत अध्यक्ष व गटबंधन पार्टी के पदाधिकारियों के घरों के चक्कर काट रहे हैं लेकिन कोई भी बागडोर सभालने का तैयार नही हो रहा है।

मुस्लिम मतदाता को माना जाता है सपा का परंपरागत वोट बैंक

कस्बा खीरी में लगभग 28 हजार मतदाता है जिसमें से 80 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता है जिन्हें सपा का परम्परागत वोट बैंक माना जाता है। 28 हजार मतदाता वाले मुस्लिम बाहुल्य कस्बे में पिछले विधान सभा चुनाव में लगभग 17 हजार वोट पड़े थे जिसमें से 13 हजार वोट सपा प्रत्याशी मिले थे।

पिछले 25 सालों में छह बार नगर पंचायत का चुनाव हुआ जिसमें से चार बार सपा के निशान साइकिल पर चार चैयरमैन बने। 1995 में सपा से गुफरान अहमद, 2006 में सपा से उस्मानिया खातून, 2012 में सपा से फहीम अहमद व 2022 में सपा से ही पूर्व चेयरमैन फहीम अहमद की पत्नी उजमा बी अध्यक्ष बनी। यह सभी सपा व इंडिया गटबंधन में ही है।

सपा प्रत्याशी से लेकर जिला इकाई के नेता सभी से सम्पर्क कर चुनाव की बागडोर संभालने की अपील कर रहे हैं।लेकिन नगर इकाई व मौजूदा नगर पंचायत अध्यक्ष से लेकर इंडिया गटबंधन के साथी सपा के सारथी बनने को तैयार नही है। दूसरी तरफ भाजपा के लोग मुस्लिम मतदाताओं को पक्ष में लाने की रणनीति चला रहे हैं।

सपा के लिए अपना ही गढ़ बचाने को चुनौती दिख रही है देखना यह है कि इस बार भी सपा गढ़ बचाने में कामयाब रहेगी यह सपा का किला ढह जाएगा।

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