भागवत के अंतिम सफर में पंजाबी कॉलोनी में दिखा आंसुओं का सैलाब
भागवत का सफेद चादर में लिपटा शरीर बाहर आया तो चीख-पुकार ने लोगों का दिल दहला दिया। महिलाओं की सिसकियां और रोने की आवाज ने माहौल को इतना बोझिल कर दिया कि कई लोगों ने सिर पकड़कर दीवार का सहारा लिया।
लोकेश पंडित, शामली: पंजाबी कॉलोनी में तीन दिन से आंसुओं का सैलाब है। यहां के वाशिदों ने बुधवार को तीन अर्थियों को एक साथ जाते देखा। गुरुवार को सुबह से उस दुलारे का इंतजार होता रहा जो रोज अपनी मुस्कुराहट से लोगों चौंकाया करता था। शाम को जैसे ही भागवत का शव लेकर एंबुलेंस पंजाबी कॉलोनी पहुंची, हर कोई दुकान-घर छोड़कर उसके पीछे दौड़ पड़ा। भागवत का सफेद चादर में लिपटा शरीर बाहर आया तो चीख-पुकार ने लोगों का दिल दहला दिया। महिलाओं की सिसकियां और रोने की आवाज ने माहौल को इतना बोझिल कर दिया कि कई लोगों ने सिर पकड़कर दीवार का सहारा लिया। नन्हें कदमों से कॉलोनी की सड़क में चलने वाला भागवत लोगों के कंधों पर अंतिम सफर पर चला तो हर आंख नम थी।
मदरलैंड स्कूल में कक्षा चार में पढ़ने वाला मासूम भागवत बेहद चंचल था। पिता धार्मिक आयोजनों से जुड़े थे तो वह भी उनमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता था। हनुमान टिल्ला की रामलीला हो या कोई बड़ा जागरण, उसमें भागवत नजर न आए ऐसा कैसे हो सकता था। बड़े पापा देखना एक दिन में पापा को भी गाने में पीछे छोड़ दूंगा. भागवत जब दिनेश पाठक व डॉ. हरिओम पाठक से कहता था तो वह खुलकर ठहाके लगाते थे। अजय पाठक भी मुस्कुराकर कहते थे, लगता तो यही है बेटा जी.। कॉलोनी का कौन से ऐसा घर है, कौन सी दुकान है और कौन चाट वाला है, जहां भागवत ने जाकर जिद न की हो। आते-जाते को आओ गोलगप्पे हो जाए. कहने वाले भागवत का शव जब एंबुलैंस से सफेद चादर में लिपटा आया तो हर शख्स की आंख नम हो गयी। जिन नन्हें कदमों से भागवत ने कॉलोनी की सड़कों को रौंदा था, आज उस पर वह नहीं चल पा रहा था। कंधों पर उसे अंतिम सफर पर ले जाया जा रहा था। दर्जनों भाई बहनों का प्यारे भागवत को हर कोई बहुत प्यार करता था। आज भाई सफेद कफन में लिपटकर आया तो बहन-भाई, ताऊ सभी उसका आखरी दीदार करना चाहते थे। मासूम भागवत को हत्यारों ने उस स्थिति में पहुंचा दिया था कि उसका चेहरा दिखाने की स्थिति में नहीं था। बहनें, बुआ, करीबी, मोहल्ले वाले मिन्नत करते रहे लेकिन इधर शव उतरा, उधर घर में रखा गया। कुछ मिनट बाद ही मासूम भागवत को अपनों से दूर ले जाने का अर्थी पर लिटा दिया गया। रोती-चिल्लाते अपनों के बीच मासूम भागवत का अंतिम सफर शुरू हुआ तो कॉलोनी की सड़क पर न जाने कितने बेहोश होकर गिरे। उन्हें संभालते कंपकपाते हाथ खुद अपने पैरों पर खड़े होने को संघर्ष कर रहे थे।
पंजाबी कॉलोनी में तीसरे दिन मातम के इस बोझिल माहौल में सड़क व छतों पर हजारों आंखों से आंसू की धाराएं बहती रही। बदहवास पाठक परिवार की महिलाओं व बच्चों की करूण रूदन देखकर हर किसी की दिल से निकला, हे भगवान ऐसा दिन किसी को न दिखाए।