टमाटर ने दूर की गरीबी, दूसरो को दिया रोजगार

विकासखंड बंडा का मानपुर पिपरिया गांव। पांच साल पहले गांव निवासी रामऔतार ने महज दो बीघा में टमाटर की खेती शुरू की थी।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 22 Feb 2020 11:42 PM (IST) Updated:Sat, 22 Feb 2020 11:42 PM (IST)
टमाटर ने दूर की गरीबी, दूसरो को दिया रोजगार
टमाटर ने दूर की गरीबी, दूसरो को दिया रोजगार

अजयवीर सिंह, शाहजहांपुर :

विकासखंड बंडा का मानपुर पिपरिया गांव। पांच साल पहले गांव निवासी रामऔतार ने महज दो बीघा में टमाटर की खेती शुरू की थी। परंपरागत खेती से अधिक मुनाफा हुआ तो परिवार के ही अन्य सदस्य भी टमाटर की खेती करने लगे। फिर सिलसिला इस कदर चला कि महज पांच वर्षो में ही गांव के अधिकांश किसानों ने टमाटर की खेती को अपना लिया। मेहनत, लगन के साथ जैविक खेती की बदौलत शाहजहांपुर, पीलीभीत, बरेली, बदायूं और लखीमपुर समेत आसपास जिलों की मंडियों में यहां से टमाटर की आपूíत हो रही है। रामऔतार ने बताया कि जब से टमाटर की खेती गांव में शुरू हुई है, तब से करीब दो सौ से अधिक लोगों को गांव में ही रोजगार भी मिलना शुरू हो गया है।

परंपरागत खेती से बनाई दूरी

गेहूं, धान, गन्ना आदि परंपरागत फसलों के बजाय यहां के कृषक टमाटर की खेती पर विशेष जोर दे रहे हैं। इससे न सिर्फ गांव की जिले में एक अलग पहचान बनी है बल्कि किसानों की गरीबी भी दूर होने लगी है। जो किसान अभी तक दूसरों से रोजगार मांग रहे थे वे खुद रोजगार देने में सक्षम है।

प्रति एकड़ छह लाख की आय

एक एकड़ में करीब एक लाख रुपये की लागत आती है। जबकि टमाटर छह सौ क्विटल टूटता है। जिससे तकरीबन छह लाख रुपये की आय होती है। ऐसे में करीब पांच लाख रुपये का मुनाफा होता है। जो अन्य फसलों से कई गुना अधिक है। अक्टूबर के पहले सप्ताह में बुवाई

रामऔतार ने बताया कि अक्टूबर के पहले सप्ताह में बीज बोया जाता है। 45 दिन में फल लगना शुरू हो जाता है। 70 दिन बाद से टमाटर की मंडियों को आपूíत शुरू हो जाती है। खास बात, टमाटर को न ही बेसहारा पशु खाते है और न ही नुकसान पहुंचाते है। समधी की सलाह आई काम

रामऔतार बताते हैं कि सात साल पहले बेटी पूनम की पुवायां तहसील क्षेत्र के वनगवां में गांव में शादी की थी। समधी नन्हें टमाटर की खेती बहुतायत में करते है। उन्होंने अन्य फसलों के बजाय इस पर जोर देने की सलाह दी थी।

chat bot
आपका साथी