भैया वोटवा उही के देब जे विकास क बात करी

दोपहर की धूप का पारा चढ़ चुका था गेहूं की मड़ाई भी जोर पकड़ चुकी है। धूप के कारण लोग घरों के अंदर कैद होने लगे हैं लेकिन इन सब से बेफिक्र चुनावी चर्चा गांव से चौराहों तक गुलजार है। चुनावी पारा गर्मी की तपिश व तेज धूप के पारे पर हावी दिख रहा है। ऐसा ही मंगलवार को दोपहर में रामापुर बाजार के एक चाय पान की दुकान पर दिखा। दुकान पर रामापुर गांव के ही अंबिका प्रसाद यादव चाय की चुस्कियां ले रहे थे।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 06 Apr 2021 10:56 PM (IST) Updated:Tue, 06 Apr 2021 10:56 PM (IST)
भैया वोटवा उही के देब जे विकास क बात करी
भैया वोटवा उही के देब जे विकास क बात करी

राजेंद्र प्रसाद तिवारी, गौरा : दोपहर की धूप का पारा चढ़ चुका था, गेहूं की मड़ाई भी जोर पकड़ चुकी है। धूप के कारण लोग घरों के अंदर कैद होने लगे हैं लेकिन इन सब से बेफिक्र चुनावी चर्चा गांव से चौराहों तक गुलजार है। चुनावी पारा गर्मी की तपिश व तेज धूप के पारे पर हावी दिख रहा है। ऐसा ही मंगलवार को दोपहर में रामापुर बाजार के एक चाय पान की दुकान पर दिखा। दुकान पर रामापुर गांव के ही अंबिका प्रसाद यादव चाय की चुस्कियां ले रहे थे। इसी बीच वहां ननकऊ बाबा, रामकुमार यादव, रामकिशोर, दूधनाथ, रंजीत व लालमणि यादव भी बैठे थे, बात-बात में चुनावी माहौल पर तर्क-कुतर्क शुरू हो गया। चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशियों पर चर्चा शुरू हुई तो जाति व धर्म से ऊपर उठकर बात विकास पर आकर अटक गई। बीच में सबको रोककर अंबिका बोले, पहिले हमार सुनत जा, हम बेबाक बोलब, भइया ई चुनाव बार-बार नहीं आता, इसलिए ऐसे प्रत्याशी को चुना जाना चाहिए जो भेदभाव से दूर गांव का विकास कर सके और हर गरीब तक विकास की रोशनी पहुंचा सके। कल्लन ने उनकी बात को लपक लिया, दार्शनिक अंदाज में बोले, देखा भइया, सब ही दुआरे आएंगे लेकिन वोटवा हमके वही का देइके चाहे जे कि विकास की बात करे। रामकुमार, दूधनाथ, रंजीत, लालमणि यादव सबने कल्लन की बातों का समर्थन किया और कहा कि जल्दबाजी में निर्णय नाहीं लेइ के बा.. हम सबका बस विकास वाला प्रत्याशी देखे का बा ..। यह चर्चा चल ही रही थी कि किसी ने सभा की सारी गंभीरता को हवा में उड़ा दिया, अरे का बड़ा सिद्धांत बघारत हय भाई लोग, अभी कोई जल्दबाजी की जरुरत नाहीं है, पहले नामांकन हइ जाए, फिर अपने आदमी के वोट कस दिहा जाई। कई एकसाथ बोले, समय आने पर फैसला हो जाएगा, कि किसको वोट देना है, अब चलत जा काम निपटा लिया जाए, सब चाय की अंतिम चुस्की खींचकर खड़े हो जाते हैं, चाय वाला सबकी ओर देखता है, कहीं ऐसा तो नहीं सबके सब बिन पैसा दिए ही चले जाएं, कल्लन ने तिरछी आंखों से चाय वाले को देखा, अरे सबर करो, हम दै देब चाय क पैसा, कहूं भागा नहीं जाए रहे हैं..सब ठहाका लगा अपने-अपने घरों को चल देते हैं।

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