संसाधनों के अभाव में हो रहा बाघों का संरक्षण

तराई के पीलीभीत टाइगर रिजर्व में मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं ने लोगों का दिल दहला दिया है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 28 May 2018 01:38 AM (IST) Updated:Mon, 28 May 2018 01:38 AM (IST)
संसाधनों के अभाव में हो रहा बाघों का संरक्षण
संसाधनों के अभाव में हो रहा बाघों का संरक्षण

पीलीभीत : तराई के पीलीभीत टाइगर रिजर्व में मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं ने लोगों का दिल दहला दिया। कभी बाघ ने ग्रामीण को निवाला बनाया, तो कभी जंगल के राजा को ही मौत के घाट उतार दिया गया। ऐसे में मानव व बाघ के वजूद पर संकट मंडराने लगा है। संसाधनों की किल्लत की वजह से जंगल के अंदर बेहतर रूप से गश्त नहीं हो पा रहा है, जिसका फायदा लोग उठाने से बाज नहीं आते हैं। इन्हीं लोगों पर बाघ हमलावर हो जाता है। इसके बाद राजनीतिक रोटियों सेंकी जाने लगती है। टाइगर रिजर्व में फील्ड स्टाफ की तैनाती कर दी जाए, तो आधी समस्या खुद ही समाप्त हो जाएगी।

हिमालय की तलहटी में स्थित पीलीभीत टाइगर रिजर्व की घोषणा नौ जून 2014 को की गई थी। इसके बाद नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथारिटी नई दिल्ली के सदस्य सचिव रहे डॉ.राजेश गोपाल ने टीम के साथ जंगल का निरीक्षण किया था। बाघ संरक्षण की दिशा में इस्तेमाल होने वाले संसाधनों की पूर्ति करने का वादा किया था। हर साल नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथारिटी को प्रस्ताव बनाकर भेजा जाता है, जिसमें से आधा अधूरा बजट मंजूर कर दे दिया जाता है। यह बजट जंगल के लिए ऊंट के मुंह में जीरा के समान रहता है। टाइगर रिजर्व में वन दरोगा, वनरक्षक के पचास पद रिक्त पड़े हैं। इस वजह से जंगल के अंदर अच्छे ढंग से गश्त नहीं हो पा रही है। स्टाफ न होने की वजह से गांव के लोग जंगल में दाखिल हो रहे हैं, जिससे मौत की घटनाएं सामने आई है। अब तक चौबीस लोग बाघ हमला में मर गए। वहीं एक दर्जन से अधिक बाघ भी मर चुके हैं। संसाधनों के अभाव में मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। कोर जोन एरिया में पर्यटन को बढ़ावा देने से संघर्ष होने से इनकार नहीं किया जा सकता है। पर्यटन होने से वाहनों का शोरगुल होता रहता है, जो बाघ के वासस्थल को प्रभावित करता है। इस दिशा में किसी प्रकार के प्रयास नहीं किए गए। स्टाफ को समय-समय पर ट्रे¨नग की आवश्यकता है, जिससे नई तकनीक से बाघ सुरक्षा की जानकारी हो सकेगी। बाघ संरक्षा का कार्य सीमित संसाधनों पर किया जा रहा है। जंगल के किनारे के गांवों में शौचालय बनवाए जा रहे हैं, जिनकी गति काफी मंद है। इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। टाइगर रिजर्व के उप वन संरक्षक कैलाश प्रकाश का कहना है कि बाघ संरक्षण की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। जंगल के अंदर गश्त की मॉनीट¨रग करने के लिए एस्ट्राइप्स साफ्टवेयर का उपयोग किया जा रहा है। जिला मुख्यालय से ही गश्त पर नजर रखी जा सकेगी। डब्ल्यूटीआइ टीम मिल गई है, जो मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने पर काम कर रही है। सरकार को स्टाफ तैनाती के लिए पत्र लिखा जा चुका है। अभी तक किसी प्रकार का जवाब नहीं आया है। बाघ संरक्षा संबंधी कई काम लंबित पड़े हुए हैं। गांव-गांव गोष्ठियां कर ग्रामीणों को जागरूक किया जा रहा है। ग्रामीणों को एलपीजी गैस की सुविधा दी जा रही है। सूचना तंत्र मजबूत किया जा रहा है।

नहीं आ पा रहे हैं हाथी

दुधवा नेशनल पार्क को कर्नाटक से दस हाथी प्राप्त हो गए हैं, जिसमें से चार हाथी पीलीभीत टाइगर रिजर्व को मिलने थे। अभी तक वन विभाग ने हाथियों को देने की दिशा में किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की है। मानव-वन्यजीव संघर्ष होने पर दुधवा से हाथियों को मंगवाया जाता है। अगर हाथी आ जाए, तो जंगल की मॉनीट¨रग बेहतर ढंग से हो सकेगी। आधुनिक हथियारों की जरूरत

पीलीभीत टाइगर रिजर्व में अंग्रेजों के जमाने के हथियार है, जो काफी पुराने हैं। वन दरोगा या वनरक्षक इन हथियारों का प्रयोग कभी कभार ही कर पाते हैं। वन कर्मचारियों को हथियारों का प्रशिक्षण भी काफी समय से नहीं दिया गया है। अगर टाइगर रिजर्व को आधुनिक हथियार मिल जाए, तो शिकारियों पर अंकुश लगाया जा सकेगा। नई वनरेंजों की घोषणा न होना

पीलीभीत टाइगर रिजर्व में माला, महोफ, बराही, हरीपुर, दियोरिया कलां पांच रेंज हैं। बीते साल दो वनरेंजों मुस्तफाबाद व गढ़ा को बनाने का प्रस्ताव बनाकर भेजा था, जिस पर अभी तक किसी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है। अगर नई रेंज बना दी जाए, तो गश्त में काफी प्रभाव पड़ेगा। रेंज अफसर का दायरा कम हो जाएगा।

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