नम आंखों में चमकती है बेटे की शहादत
मनोज त्यागी, नोएडा बचपन में ही उसके तेवरों से पता चलता था कि वह देश के लिए जीना व मरना चाहता था।
मनोज त्यागी, नोएडा
बचपन में ही उसके तेवरों से पता चलता था कि वह देश के लिए जीना व मरना चाहता था। जीवटता उसकी रग-रग में भरी थी। उसने साढ़े चार वर्ष की उम्र में ही पिस्टल से फाय¨रग करके अपने इरादे जाहिर कर दिए थे। उसने जीवन में कभी मायूसी वाली बात नहीं की। शहादत से दो घंटे पहले लिखी चिट्ठी में भी उसने देश के लिए अपनी जान देने की बात लिखी थी। बेटे के जांबाजी के किस्से सुनाते हुए अनायास ही उनकी आवाज भारी हो जाती है उनकी अश्रु धारा तो नहीं बहती, लेकिन नम आंखें बताती हैं कि बेटे की याद उन्हें आज भी कहीं न कहीं दर्द दे जाती है, उसकी शहादत पर उनका सीना चौड़ा हो जाता है। उन्हें गर्व है कि वह स्वयं एक फौजी रहे हैं और इससे भी अधिक गर्व लेफ्टिनेंट विजयंत थापर का पिता होने पर है।
सेक्टर-29 में रहने वाले सेवानिवृत्त कर्नल वीएन थापर के परिवार में चार पीढि़यों से फौजी रहे हैं। यहां तक की उनकी बहनों की शादी भी फौजियों से ही हुई है। देश के लिए लड़ना उन्हें अच्छा लगता है। कर्नल वीएन थापर को आज भी याद है जब विजयंत थापर अपनी मां के गर्भ में थे, उस समय वीएन थापर की पोस्टिंग पठानकोट में थी। वहां चारों ओर विजयंत टैंक खड़े थे। जब जन्म हुआ, तो उनका नाम विजयंत रख दिया गया था। वह याद करते हैं कि विजयंत को बचपन से ही अफसर बनने का शौक था। जब वह साढ़े चार वर्ष के थे तो उसी समय उन्होंने पिस्टल चलाकर अपने बारे में बता दिया था कि वह जांबाजी के साथ जियेंगे। छह वर्ष की आयु में ही विजयंत थापर, साढ़े तीन वर्ष के उनके छोटे भाई बिजेंद्र थापर और उनके एक अन्य साथी ने जंगल में रात बीताने की इच्छा जताई तो पिता ने पठानकोट के पास मीरथल के जंगल में एक छोटा टेंट लगाकर तीनों को जंगल में एक रात के लिए छोड़ दिया। हालांकि टेंट से कुछ दूरी पर सीआरपीएफ का कैंप लगा था। अगली सुबह जब पिता वीएन थापर बच्चों से मिले तो जो चमक विजयंत थापर की आंख्रों में थी, वह देखने लायक थी। वह बहुत खुश थे।
बात करते-करते कई बार कर्नल वीएन थापर की आंखें बेटे को याद कर नम हो जाती हैं। बताते हैं कि उनका पूरा परिवार फौज से ही ताल्लुक रखता है। उनके एक रिश्तेदार जो एअर फोर्स में थे उनकी टोपी और छड़ी लेकर अपने द्वारा बनाई गई कॉक पिट में बैठकर हाकी स्टीक लेकर फाइटर पायलट की तरह रहना उन्हें बहुत पसंद था। बाद में वह सेना में भर्ती हो गए।
वीएन थापर अपने बेटे की उस चिट्ठी को याद करते हुए भावुक हो जाते हैं जो विजयंत ने शहादत से दो घंटे पहले उनके और अपनी मां के नाम लिखी थी। चिट्ठी में लिखा हर शब्द उसके हौसले को बताता है। शब्दों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि शायद विजयंत को अपनी मौत के बारे में पहले से पता था, लेकिन चिट्ठी में एक भी शब्द ऐसा नहीं था जो उसके हौसले को कहीं से भी कमजोर दिखाता हो। उसने कहा था कि जब तक आपके पास चिट्ठी पहुंचेगी, तब वह आसमान से हाथ हिलाकर सभी से मिलेगा और वहां की अप्सराओं के संग मौज करेगा। वह अपनी दादी को बहुत छेड़ते थे तो दादी से उन सभी शरारतों के लिए माफी मांगी। पिता से कहा कि द्रास में दो तीन साल की छोटी बच्ची रुखसाना है, जिसके साथ वह खेलता था। उसकी पढ़ाई का ध्यान रखना। उसे जीवन में कभी किसी चीज की दिक्कत न हो। आज भी कर्नल थापर उस रुखसाना जो आज जवान हो चुकी है। उसकी पूरी देखभाल करते हैं। चिट्ठी में यह भी कहा था कि वह उस जमीन पर जरूर आएं, जहां उन्होंने लड़ाई लड़ी है और दूसरे युवाओं को उन किस्सों को बताएं कि किन परिस्थितियों में भारतीय सैनिक देश की रक्षा के लिए कुर्बान हो जाते हैं।
कर्नल वीएन थापर बात करते हुए कई बार भावुक हो जाते हैं उन्हें इस बात का दुख है कि फौजी जो सीमा पर रहकर देश की रक्षा कर रहे हैं। उनके परिवार को दर-दर भटकना पड़ता है। वह बताते हैं कि विजयंत ने अपनी डायरी के पहले पेज पर लिखा था कि वह अपने जवानों के साथ न्याय करेगा। जवानों को कभी किसी तरह की दिक्कत नहीं होने देगा। मरने से पहले राम को याद करेगा। डायरी के पहले पेज पर लिखी एक लाइन के बारे में वह बताते हैं कि विजयंत एक लड़की से शादी करना चाहते थे। इसका भी जिक्र उन्होंने उस डायरी में किया था। वह गर्व से कहते हैं कि यदि विजयंत के बच्चे होते तो वह भी फौजी ही बनते।