जेल में अंग्रेजों ने काट दी थी गोटी के पैरों की नस

गुलामी के दौरान अंग्रेजी हुकूमत के जुल्म से लोगों में इतना भय हो गया था कि यदि गांव वालों को अंग्रेज सिपाही के आने का भी पता चल जाता था तो लोग डर के मारे अपने घरों में दुबक जाया करते थे। इतना ही नहीं जेल में बंद कस्बे के गोटी ने जेल का दरवाजा उखाड़ दिया था तो अंग्रेजों ने उन पर जुल्म करते हुए पैर की नस काट दी थी। क्षेत्र के बुजुर्गो ने गुलामी की दास्तान सुनाई तो उनका कलेजा भर आया।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 25 Jan 2020 07:38 PM (IST) Updated:Sat, 25 Jan 2020 07:38 PM (IST)
जेल में अंग्रेजों ने काट दी थी गोटी के पैरों की नस
जेल में अंग्रेजों ने काट दी थी गोटी के पैरों की नस

मुजफ्फरनगर, जेएनएन । गुलामी के दौरान अंग्रेजी हुकूमत के जुल्म से लोगों में इतना भय हो गया था कि यदि गांव वालों को अंग्रेज सिपाही के आने का भी पता चल जाता था तो लोग डर के मारे अपने घरों में दुबक जाया करते थे। इतना ही नहीं, जेल में बंद कस्बे के गोटी ने जेल का दरवाजा उखाड़ दिया था तो अंग्रेजों ने उन पर जुल्म करते हुए पैर की नस काट दी थी। क्षेत्र के बुजुर्गो ने गुलामी की दास्तान सुनाई तो उनका कलेजा भर आया।

मोरना निवासी 98 वर्षीय मोहम्मद मंगता बताते हैं कि कोठी वाले बाग पर अंग्रेजी अफसरों का जमावड़ा लगता था। जब अंग्रेजी फौज घोड़ों पर सवार होकर गांव से गुजरती थी तो लोग डर के मारे घरों में दुबक जाते थे। जिले की जेल में बंद गांव के ही गोटी ने जेल का दरवाजा उखाड़ दिया था तो अंग्रेजों ने उन पर जुल्म करते हुए उनके दोनों पैरों की नस काट दी थी। अंग्रेजों को आभास हो गया था कि गोटी में इतनी ताकत है कि वह दोबारा जेल का दरवाजा उखाड़कर जेल में बंद लोगों को भगा देगा।

मोरना निवासी 95 वर्षीय वयोवृद्ध अख्तर अब्बास जैदी बताते हैं कि अंग्रेजों हुकूमत में जमींदारी प्रथा थी। अगर किसान अपनी फसल की लगान नहीं चुका पाता था तो उसके कारिदे चारपाई के नीचे किसान का हाथ दबाकर उस पर बैठ जाते थे और उसे कोड़ों से सजा देते थे।

दरियाबाद निवासी 90 वर्षीय लखीराम बताते हैं कि ग्रामीणों में अंग्रेज हुकूमत की बहुत दहशत थी, रात में घोड़ों के चलने की आवाज सुनाई देती थी तो लोग सहम जाते थे। गंग नहर और रजवाहे की पटरी पर केवल अंग्रेज या उनके कारिदे ही चलते थे। यदि कोई भारतीय उन्हें पटरी पर तांगा लेकर चलता मिल जाता था तो उससे जुर्माना वसूला जाता था।

दरियाबाद निवासी 110 वर्षीय मोहरो देवी बताती हैं कि अंग्रेज अफसर जब जंगल में शिकार के लिए जाते थे तो लोग उनके जुल्मों के डर से गांव से बाहर नही निकलते थे।

मोरना निवासी हाजी रईस मोहम्मद बताते हैं कि आजादी को लेकर चोरी छिपे लोग अपनी बैठक किया करते थे, लेकिन अगर अंग्रेजों को बैठक का पता चल जाता था तो अंग्रेज गांववालों पर कौड़े बरसाया करते थे।

chat bot
आपका साथी