अवैध संबंधों के शक में हुई हत्या के आरोप से पांच बरी

12 वर्ष पूर्व अवैध संबंधों के शक में की गई युवक की हत्या के आरोप में नामजद परिवार के चार सदस्यों सहित पांच आरोपितों को विशेष एससी-एसटी कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 12 Nov 2020 06:59 PM (IST) Updated:Thu, 12 Nov 2020 06:59 PM (IST)
अवैध संबंधों के शक में हुई हत्या के आरोप से पांच बरी
अवैध संबंधों के शक में हुई हत्या के आरोप से पांच बरी

मुजफ्फरनगर, जेएनएन। 12 वर्ष पूर्व अवैध संबंधों के शक में की गई युवक की हत्या के आरोप में नामजद परिवार के चार सदस्यों सहित पांच आरोपितों को विशेष एससी-एसटी कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया।

12 वर्ष पूर्व नई मंडी कोतवाली क्षेत्र के गांव पचेंडा निवासी अनुज उर्फ अंजू पुत्र सोमपाल घर से गायब हो गया था। तीन दिन बाद 27 जनवरी 2008 को अनुज उर्फ अंजू की माता नगीनी ने नई मंडी कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराते हुए आरोप लगाया था कि उसके बेटे अनुज की हत्या करीब ही रहने वाले रोडवेज विभाग में बस परिचालक अशोक, ऊषा पत्नी अशोक तथा उनके बेटे विकास तथा बेटी रितु ने गांव के धीरा पुत्र मनफूल के साथ मिलकर कर दी। बताया कि रीतू उसके बेटे अनुज से पढ़ाई के संबंध में बात कर लेती थी, जिसके चलते आरोपितों को अवैध संबंध का शक था। आरोप था कि रितू के माध्यम से 24 जनवरी को आरोपितों ने अनुज को घर से बुलाया तथा उसकी हत्या कर दी। अनुज का शव चार दिन बाद गांव चांदपुर के जंगल से बरामद हुआ। पुलिस ने ऊषा तथा उसकी बेटी रितू को गिरफ्तार कर लिया था, जबकि बाकी आरोपित कोर्ट में समर्पण कर जेल चले गए थे। मुकदमे की सुनवाई विशेष न्यायाधीश एससी-एसटी कोर्ट हिमांशु भटनागर ने की। सुनवाई उपरांत कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में सभी पांचों आरोपितों को युवक के अपहरण तथा हत्या के आरोप से बरी कर दिया।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से मिली राहत

अनुज की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण दम घुटना व सिर में गहरी चोट आया था। शरीर से खून बह रहा था, जिससे प्रतीत हुआ कि अनुज की हत्या 24 को नहीं बल्कि 26 जनवरी की रात में की गई। गवाहों ने कोर्ट में बयान दिया था कि 24 की रात उन्होंने आरोपितों को साइकिल पर किसी व्यक्ति को कंबल ओढ़ाकर ले जाते देखा था। वादी पक्ष का तर्क था कि 24 की रात ही अनुज की हत्या कर साइकिल पर उसे बैठाकर कंबल डाल खेत में उसके शव को फेंका गया था। रिपोर्ट व गवाही विरोधाभासी होने का लाभ प्रतिवादी को मिला।

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