मुरादाबाद में अंग्रेजों के जुल्मों के खिलाफ आवाज बुलंद की थी पंडित नेहरू ने

पंडित नेहरू का मुरादाबाद से गहरा नाता रहा है। आजादी के आंदोलन के दौरान वह अपने पिता मोतीलाल नेहरू के साथ आए तो अपनी पुत्री इंदिरा गाधी के साथ भी यहां एक रात रहे थे।

By Edited By: Publish:Wed, 14 Nov 2018 07:05 AM (IST) Updated:Wed, 14 Nov 2018 09:30 AM (IST)
मुरादाबाद में अंग्रेजों के जुल्मों के खिलाफ आवाज बुलंद की थी पंडित नेहरू ने
मुरादाबाद में अंग्रेजों के जुल्मों के खिलाफ आवाज बुलंद की थी पंडित नेहरू ने

मुरादाबाद (डॉ. मनोज रस्तोगी)। पंडित जवाहरलाल नेहरू का मुरादाबाद से गहरा नाता रहा है। आजादी के आंदोलन के दौरान वह अपने पिता पंडित मोतीलाल नेहरू के साथ आए तो अपनी पुत्री इंदिरा गाधी के साथ भी यहां एक रात रहे थे। जनपद की तहसील ठाकुरद्वारा में भी उन्होंने जनसभा को संबोधित किया था। आजादी के बाद भी उनका आगमन यहा हुआ। पहले विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने काग्रेस प्रत्याशी के समर्थन में आयोजित जनसभा को संबोधित किया था।

मुरादाबाद के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दाऊ दयाल खन्ना, प्रोफेसर रामशरण और साहू रमेश कुमार से उनके प्रगाढ़ संबंध रहे। पहली बार 1920 में पिता पं. मोतीलाल नेहरू के साथ आए पहली बार सन 1920 में पंडित नेहरू ने अपने पिता पंडित मोतीलाल नेहरू के साथ यहा काग्रेस के तीन दिवसीय संयुक्त प्रातीय सम्मेलन में हिस्सा लिया था। यह ऐतिहासिक सम्मेलन बुध बाजार स्थित महाराजा थिएटर में आयोजित हुआ था। इसी सम्मेलन में महात्मा गाधी के असहयोग आदोलन के प्रस्ताव को अंतिम रूप दिया गया था।

सन 1942 में तहसील ठाकुरद्वारा में जनसभा को किया था संबोधित दूसरी बार सन 1942 में पंडित नेहरू सनातन धर्म इंटर कॉलेज के प्रबंधक साहू सीताराम और शिव सुंदरी मॉटेंसरी स्कूल के संस्थापक साहू रमेश कुमार के आमंत्रण पर आए। उस समय उन्होंने जनपद की तहसील ठाकुरद्वारा में आयोजित जनसभा को संबोधित किया था। इस आयोजन में नेशनल रेडियो कार्पोरेशन दुकान के स्वामी जनार्दन कृष्ण भी शामिल हुए थे।

तीसरी बार आये थे मुरादाबाद तीसरी बार सन 1946 में वह अपनी पुत्री इंदिरा गाधी के साथ आए और मोहल्ला बाजीगरान स्थित साहू राधेश्याम की कोठी पर ठहरे। वयोवृद्ध काग्रेसी नेता ज्ञानचंद्र आजाद अतीत की स्मृतियों को कुरेदने पर बताते हैं कि उस समय पंडित नेहरू का भव्य जुलूस निकाला गया था जो मंडी चौक, अमरोहा गेट, चौमुखा पुल, टाउन हाल होता हुआ बुधबाजार स्थित पहुंचकर जनसभा में परिवर्तित हो गया था। उस समय उनकी उम्र लगभग 12 साल की थी। वह भी नेहरू जी को सुनने वहां पहुंचे थे। जनसभा की अध्यक्षता दाऊ दयाल खन्ना ने की थी।

जनसभा को प्रोफेसर रामशरण, जगदीश प्रसाद अग्रवाल, जगदीश शरण रस्तोगी आदि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने भी संबोधित किया था। उस समय नेहरू जी ने ब्रिटिश सरकार के जुल्मों के खिलाफ आवाज बुलंद की थी। उन्होंने घोषणा की थी कि आजादी मिलने के बाद उन सरकारी अफसरों को फासी पर लटकाया जाएगा जिन्होंने आजादी आदोलन के दौरान जनता पर गोली चलाई थी।

सन 1952 में कांग्रेस प्रत्याशी को जिताने का किया था आह्वान आजादी मिलने के बाद सन 1952 में जब पहला विधानसभा चुनाव हुआ तो टिकट बंटवारे को लेकर काग्रेस में बगावत हो गई थी। उस समय काग्रेस के शहर अध्यक्ष लक्ष्मीनारायण श्रोत्रिय टिकट के प्रबल दावेदार थे लेकिन पार्टी ने केदारनाथ बैरिस्टर को प्रत्याशी घोषित कर दिया। टिकट न मिलने पर लक्ष्मी नारायण ने काग्रेस से इस्तीफा दे दिया और निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतर गए। काग्रेस में बगावत को दबाने के लिए पंडित नेहरू को यहा आना पड़ा।

उन्होंने बैरिस्टर केदारनाथ के समर्थन में टाउन हॉल के मैदान में जनसभा को संबोधित किया और उपस्थित जनसमूह से काग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी को जिताने की अपील की। दाऊ दयाल खन्ना के घर भी गए थे पंडित नेहरू स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दाऊदयाल खन्ना के पुत्र सेवानिवृत्त मुख्य चिकित्साधिकारी ओंकार नाथ खन्ना बताते हैं कि पंडित नेहरू का उनके परिवार से प्रगाढ़ संबंध रहा। अपने पिता की हस्तलिखित आत्मकथा का जिक्र करते हुए वह कहते हैं कि पंडित नेहरू सन 1946 में जब यहा एक रात रहे थे तो वह उनके अताई स्ट्रीट स्थित आवास पर भी आए थे। उन्होंने उनकी अस्वस्थ माताजी के सिर पर हाथ रख कर जल्द स्वस्थ हो जाने का आशीर्वाद दिया था। उस समय उनकी बहन कुसुमलता ने एक थैली में कुछ रुपए जाकर पंडित नेहरू को भेंट किए थे वह बताते हैं कि पंडित नेहरू के प्रधानमंत्री बनने के बाद वह अपने पिता और बहन के साथ उनसे मिलने त्रिमूर्ति भवन भी गए थे।

शिव सुंदरी स्कूल के बच्चे
मिलने गए थे त्रिमूर्ति भवन साहू रमेश कुमार के पुत्र सुशील साहू बताते हैं कि पंडित नेहरू की प्रेरणा से ही उनके पिता ने सन 1945 में शिवसुंदरी मॉटेसरी स्कूल की स्थापना की थी। पंडित नेहरू के प्रधानमंत्री बनने के बाद स्कूल के बच्चों का एक दल उनसे मिलने त्रिमूर्ति भवन गया था। पंडित नेहरू काफी देर तक बच्चों के बीच में रहे थे और उनसे घर परिवार व पढ़ाई के बारे में बात की थी। उस दल के साथ उनके पिता भी सपरिवार गए थे। वह बताते है कि 1942 में भारत छोड़ो आदोलन के दौरान पंडित नेहरू उनकी ठाकुरद्वारा स्थित कोठी पर भी आए थे।

नेहरू जी की स्मृति में प्रकाशित हुई थी 'महामानव नेहरू' पंडित नेहरू के निधन के बाद वर्ष 1964 में यहा की प्रमुख साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम ने महामानव नेहरू काव्य संकलन प्रकाशित कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए थे। इस संकलन का संपादन राजेंद्र मोहन शर्मा 'श्रृंग', सुशील दिवाकर (हुल्लड़ मुरादाबादी) और संदेश भारती ने किया था। प्रकाशन समिति के अध्यक्ष ब्रह्मानंद राय, उपाध्यक्ष मनोहर लाल वर्मा और मोहदत्त साथी थे। इस संकलन में मैथिलीशरण गुप्त, गोपाल प्रसाद व्यास, बालकवि बैरागी, गोपालदास नीरज, भवानी प्रसाद मिश्र, वीरेंद्र मिश्र तथा स्थानीय रचनाकारों गिरिराज शरण अग्रवाल, नवल किशोर गुप्त, बृजभूषण सिंह गौतम, मदन मोहन व्यास, विश्व अवतार जैमिनी, ज्ञानप्रकाश सोती 'ठुंठ', आशा अवतार रस्तोगी समेत 74 रचनाकारों की रचनाएं शामिल हैं।

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