शिक्षा की कमी दूर करने को खोल दिया मदरसा

(अंकित गोस्वामी) मुरादाबाद। कौन कहता है कि बुने हुए ख्वाब सच्चे नहीं होते, मंजिल उन्हीं क

By JagranEdited By: Publish:Fri, 12 Oct 2018 11:30 AM (IST) Updated:Fri, 12 Oct 2018 11:30 AM (IST)
शिक्षा की कमी दूर करने को खोल दिया मदरसा
शिक्षा की कमी दूर करने को खोल दिया मदरसा

(अंकित गोस्वामी) मुरादाबाद।

कौन कहता है कि बुने हुए ख्वाब सच्चे नहीं होते, मंजिल उन्हीं को नहीं मिलती जिनके इरादे अच्छे नहीं होते। रूखी-सूखी रोटी और धक्के तो बहुत खाए हैं ¨जदगी में, लेकिन आज देख रही हूं कि सफलता के फल कभी कच्चे नहीं होते। यह कहना है सम्भल के मुहल्ला दीपा सराय निवासी शाहीन आरा का।

निजी स्कूल में की शिक्षक की नौकरी

शाहीन वह हैं जिनकी पढ़ाई को इंटर के बाद माता पिता ने माहौल को देखते हुए रोक दिया था। वह जिद करती रही लेकिन परिजन नहीं माने। गुस्से में आकर शाहीन ने बिजली का तार पकड़ लिया। जब करंट लगा तो वह झटका खाकर बच तो गई लेकिन उसकी तबीयत बिगड़ी तो परिजनों ने उपचार कराया। इसके बाद उसके बड़े भाई गुड्डू ने सुरक्षा की जिम्मेदारी ली और उसकी पढ़ाई शुरू कराई। बीए, एमए के बाद शाहीन ने बीएड कर लिया। फिर असमोली के एक निजी कालेज में शिक्षक की नौकरी कर ली। कुछ दिन स्कूल में पढ़ाती रहीं। उस स्कूल में बिलालपत गांव के बच्चे पढ़ने नहीं आते थे। इस पर शाहीन ने गांव जाकर जानकारी की। पता चला कि वहां शिक्षा की कमी है। इसके बाद शाहीन ने बिलालपत में मदरसा बुनियादी तालीमुल कुरआन खोल लिया। शुरुआत में वह घर-घर जाकर पढ़ाई के लिए बच्चों और परिजनों को जागरूक करतीं। उन्हें मदरसे तक लेकर आई। एक साल तक मदरसे के बच्चों से कोई फीस नहीं ली। बच्चों को पढ़ाने के लिए मदरसे पर दो लाख रुपये खर्च कर चुकी हैं। वर्तमान में वह प्रधानाचार्य के पद पर तैनात हैं। उनके मदरसे में नजमा, मैनाज, नाजिया, मेहनाज परवीन, निदा शिक्षिका हैं।

खुद खर्च उठाना पड़ा

दैनिक जागरण से बातचीत में शाहीन ने बताया कि शुरुआत में जब मदरसा खोला तो उनके बड़े भाई कार से शिक्षिकाओं को भेजते थे। गाड़ी, मदरसा और शिक्षिकाओं का खर्चा उठाने में उन्हें अपनी जेब से दो लाख रुपये खर्च करने पड़े। मदरसे से अभी तक कोई रुपया नहीं लिया है। केवल स्टाफ के खर्च के लिए बहुत कम फीस ली जा रही है।

मेरा दिल अब खुश है

मैं दुनिया में रहूं या न रहूं। बस, मेरा मकसद है कि यह मदरसा हमेशा के लिए चलता रहा। मेरा दिल इसी में खुश है। मैंने काफी मुसीबतों का सामना किया। अब मैं बच्चों को तालीम हासिल करा रही हूं। मेरे मदरसे में अब तीन सौ से अधिक बच्चे हैं। सबसे ज्यादा मेरे भाई ने मेरा सहयोग किया।

शाहीन आरा, प्रधानाचार्य

बहन ने जताई पढ़ाई की इच्छा

मेरी बहन ने इंटर के बाद पढ़ाई की इच्छा जताई थी तो माता पिता ने इन्कार कर दिया। एक दिन उसने बिजली का तार पकड़ लिया। फिर मैंने माता पिता से उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी ली। इसके बाद उसकी पढ़ाई कराई। अब वह मदरसा चला रही है। शिक्षा का उजियारा घर घर पहुंचा रही है।

- गुड्डू, भाई

chat bot
आपका साथी