भूखे पेट झांसी से 200 मजदूरों ने 490 किलोमीटर का तय किया सफर
सरकार द्वारा प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने का दावा खोखला साबित होता जा रहा है। सरकार द्वारा समय पर कोई सहायता नहीं पहुंचाने पर भूखे मजदूर पैदल ही अपने घर के लिए रवाना हो जा रहे हैं। भले ही इसके लिए उन्हें सौ की जगह एक हजार किलोमीटर की दूरी तय क्यों न करनी पड़ रही हो लेकिन वे हिम्मत नहीं हार रहे हैं और मंजिल की ओर रवाना हो जा रहे हैं। कुछ ऐसा ही हाल देखने को मिला जब झांसी में काम करने वाले लगभग 200 मजदूर खाने-पीने के लिए कुछ नहीं बचने पर अपने घर जाने के लिए चल दिए।
जागरण संवाददाता, मीरजापुर : सरकार द्वारा प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने का दावा खोखला साबित होता जा रहा है। सरकार द्वारा समय पर कोई सहायता नहीं पहुंचाने पर भूखे मजदूर पैदल ही अपने घर के लिए रवाना हो जा रहे हैं। भले ही इसके लिए उन्हें सौ की जगह एक हजार किलोमीटर की दूरी तय क्यों न करनी पड़ रही हो, लेकिन वे हिम्मत नहीं हार रहे, मंजिल की ओर रवाना हो जा रहे हैं। कुछ ऐसा ही हाल देखने को मिला जब झांसी में काम करने वाले लगभग 200 मजदूर खाने-पीने के लिए कुछ नहीं बचने पर अपने घर जाने के लिए चल दिए।
कोई साधन नहीं मिलने पर पैदल ही रवाना हो गए। रास्ते में कुछ नहीं मिलने पर पानी पी-पी कर चार दिनों में करीब 490 किलोमीटर का सफर तय कर मीरजापुर जनपद पहुंचे। लंबी दूरी की यात्रा तय करने के कारण एक-एक कदम उनके लिए चलना मुश्किल हो रहा था। शरीर ने आगे बढ़ने से इन्कार कर दिया तो सभी सड़क किनारे एक पेड़ के नीचे बगैर कुछ जमीन पर बिछाए बेसुध हालत में लेट गए। काफी देर तक वे नहीं उठे तो कुछ लोगों ने इसकी सूचना ग्रामीणों को दी। मौके पर पहुंचे ग्रामीणों ने उनको आवाज देकर उठाया लेकिन वे गहरी नींद में सो रहे थे। दोपहर बाद नींद खुली तो बताया कि वे लोग चार दिन से भूखे हैं, थके भी हैं इसलिए यहीं रूक गए। लोगों के मन में उनसे कोरोना फैलने का डर था फिर भी उनके पास गए। अन्य ग्रामीणों की सहायता से उन्हें रोटी, दाल, चावल व सब्जी उपलब्ध कराया। पेट भरने पर सभी को पूरी तरह से सुध आया। ग्रामीणों के पूछने पर बिहार के मुज्जफरपुर निवासी राजन, शिवपाल, आलोक, विनोद, सूरज, शीला, लवकुश, रजवंती आदि ने बताया कि वे लोग ठेकेदारों के माध्यम से झांसी में निर्माण हो रही एक नहर में मजदूरी का काम कर रहे थे। लॉकडाउन के चलते एक महीने पहले काम बंद हो गया। कुछ दिनों तक तो ठेकेदार ने खाने के लिए राशन उपलब्ध कराया। कुछ पैसे भी दिए और कहा कि वह रुपये का इंतजाम करने जा रहा है। लौटकर आएगा तो रुपये देगा लेकिन वह नहीं आया। उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं बचने पर वे लोग भूखे रहने लगे। कुछ लोगों से मांग कर कुछ दिन तक खाया। लेकिन रुपये खत्म होने के कारण उन लोगों ने भी राशन देने से मना कर दिया। प्रशासन की ओर से भी कोई मदद नहीं मिल रही थी। रास्ते में पुलिस ने कुछ खाने के पैकेट उपलब्ध कराए, लेकिन संख्या अधिक होने के कारण वे भी जवाब दे गए। इसके बाद उनके सामने घर जाने के सिवाय और कोई चारा नहीं बचा था।