दिल्ली यूनिवर्सिटी की सदी की साक्षी रहीं हैं मेरठ की विमला, बंटवारे के दंगों के बीच ऐसे पूरा किया शिक्षा का सफर

Vimla Gargi डीयू के मिरांडा हाउस कालेज की पहली बैच की छात्रा रहीं हैं मेरठ की विमला गार्गी। डीयू के कालेज मिरांडा हाउस की पहली बैच की छात्रा विमला गार्गी ने देखे हैं शिक्षा के कई बदलाव। इनदिनों दिल्ली यूनिवर्सिटी शताब्दी वर्ष मना रहा है।

By Prem Dutt BhattEdited By: Publish:Sat, 28 May 2022 03:00 PM (IST) Updated:Sat, 28 May 2022 03:00 PM (IST)
दिल्ली यूनिवर्सिटी की सदी की साक्षी रहीं हैं मेरठ की विमला, बंटवारे के दंगों के बीच ऐसे पूरा किया शिक्षा का सफर
Vimla Gargi मिरांडा हाउस कालेज की पहली बैच की छात्रा विमला गार्गी मेरठ में हैं।

विवेक राव, मेरठ। डीयू यानी दिल्ली यूनिवर्सिटी शताब्दी वर्ष मना रहा है। डीयू से जुड़े मिरांडा हाउस कालेज की पहली बैच की छात्रा विमला गार्गी मेरठ में हैं। अब 90 साल की है। कालेज में बिताए पल आज भी उन्हें याद है। कई झंझावतों को झेलते हुए मिरांडा हाउस से उन्होंने बीए की पढ़ाई पूरी की थी। जिस डीयू में जाने का सपना आज की युवा पीढ़ी देखती है। उस यूनिवर्सिटी की पहली छात्रा विमला ने लड़कियों की शिक्षा को लेकर कई बदलाव को भी देखा है। मिरांडा हाउस अपने पुरातन छात्रा को बुलाने की तैयारी भी कर रहा है।

ऐसी रही यात्रा

विमला का शैक्षणिक सफर चुनौती भरा रहा। 1946 में विमला लाहौर के फतेहचंद कालेज में इंटरमीडिएट (एफए- 11वीं) की छात्रा थीं। 1947 में लाहौर दंगे से बचने के लिए 15 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने भाई और भाभी के साथ लाहौर से मनाली तक की कठिन यात्रा की। दिल्ली में शरणार्थी क्वार्टर में भी रहीं। इसमें एक साल तक उनकी पढ़ाई बाधित हुई। बाद में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से अपनी एफए की पढ़ाई प्राइवेट से पूरी की। उस समय स्कूली शिक्षा दसवीं तक और एफए - दो वर्ष के बाद दो साल का बीए था। डीयू का कालेज मिरांडा हाउस का 1948 में उद्घाटन हुआ था। मिरांडा हाउस में तीन वर्षीय बीए शुरू हुआ था।

35 से 40 लड़कियों का समूह

विमला ने एफए की पढ़ाई पूरी कर ली थी। उन्होंने प्रिंसिपल से अनुरोध कर बीए सेकेंड ईयर में प्रवेश लिया। फिर हास्टल में रहकर अपनी बीए की पढ़ाई पूरी की। तब समूह में चलती थीं छात्राएं बकौल विमला मिरांडा हाउस में अंग्रेजी, हिंदी, इतिहास लेकर पढ़ाई की। कालेज में 35 से 40 लड़कियों का समूह था। प्रिंसिपल बहुत सख्त थी। अकेले बाहर जाने पर रोक थी। समूह में लड़कियां निकलती थीं। जितने समय में बोलकर जाती थी। उतने समय में वापस आ जाती थीं। उस समय पढ़ाई में कोई चिंता नहीं थी। देश के बंटवारे या राजनीति की हम चर्चा नहीं करते थे।

आज के जैसा नहीं था तनाव

कालेज की लाइफ को पूरी तरह से इंज्वाय करते थे। खेल की गतिविधियों में भी रहते थे। आज जैसा तनाव भी नहीं था। केवल पढ़ाई करियर की चिंता नहीं विमला बताती हैं कि उस समय मिरांडा हाउस में लड़कियों में करियर को लेकर चिंता नहीं थी। केवल पढ़ने तक सीमित रहते थे। सब स्नातक की डिग्री ही लेना चाहते थे। उनके बैच में कोई नौकरी के विषय में नहीं सोचता था। आज की स्थिति बदल गई है।

नाम सही कराने को कहा

अब लड़कियां डिग्री से अधिक अपने करियर पर फोकस हैं। आज उनके पास शिक्षा और करियर के क्षेत्र में विकल्प बढ़े हैं। इससे पता चलता है कि लड़कियों की सोच बदल गई है। कालेज के बोर्ड पर नाम विमला का नाम मिरांडा हाउस में लगे बोर्ड पर भी है, उसमें उनका नाम विमल लिखा है। विमला की आस्था ने बताया कि कालेज से फोन आया था, प्रिंसिपल ने नाम सही करने को कहा है। 

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