सपने अपने : अब संभालो साजे गजल, हमारे नगमों को नींद आती है Meerut News

दैनिक जागरण के स्‍पेशल कॉलम सपने-अपने में रिर्पोटर प्रदीप द्विवेदी मेरठ के शिक्षाविद सेठ दयानंद गुप्ता के निधन पर उन्‍हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं।

By Taruna TayalEdited By: Publish:Fri, 24 Jan 2020 02:00 PM (IST) Updated:Fri, 24 Jan 2020 02:00 PM (IST)
सपने अपने : अब संभालो साजे गजल, हमारे नगमों को नींद आती है Meerut News
सपने अपने : अब संभालो साजे गजल, हमारे नगमों को नींद आती है Meerut News

प्रदीप द्विवेदी। अब संभालो साजे गजल, हमारे नगमों को नींद आती है। यह शेर शोकसभा के बाद शायद शोर कर रहा है कि शिक्षाविद सेठ दयानंद गुप्ता ने समाजसेवा की जो मिसाल कायम की है, वैसा ही कुछ करने को आगे आया जाए। कुछ ऐसी इबारत लिखी जाए कि उनकी आत्मा को शांति मिले। उनके अंतिम संस्कार में शहर उमड़ पड़ा। बहुतों ने अपने स्नेह मिलन को व्यक्त किया। संस्मरण सुनाया लेकिन सच्ची श्रद्धांजलि तब मानी जाएगी जब हम सब में से कोई आगे आएगा। बेहतर और बहुत बेहतर करके उस साज को संभाल लेगा, समाज सुधार के लिए जो गजल वह लिखते जा रहे थे। अब वह एक परिवार तक ही सीमित नहीं रह गए हैं। जब पूरा शहर स्नेह करता है तो शहर के ही हर कोने से आवाज निकलनी चाहिए। पढ़ने से वंचित रह जाने वालों के लिए आगे आना चाहिए। फीस-किताब देने की पहल करनी चाहिए। विनम्र श्रद्धांजलि।

हुक्‍मरानों को कोसते क्रांतिवीर

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के वक्त वीर सपूतों ने स्वतंत्रता का जो सपना तब के लोगों को दिखाया था, वह पूरा हुआ। हालांकि स्वतंत्रता की उस याद को अब की पीढ़ी को दिखाने के नाम पर जो सपना यहां के हुक्मरान दिखाते रहे हैं, वह अब लगभग छलावा हो गया है। कमिश्नर का क्रांति पथ दर्शन प्रोजेक्ट फाइलों में ही है। एमडीए ने वेदव्यासपुरी जोनल पार्क का नाम क्रांति पार्क किया, फिर भूल गया। सांसद ने शहीद स्मारक में लाइट एंड साउंड शो का ट्रायल कराया और यह प्रोजेक्ट गायब हो गया। जिला पंचायत ने क्रांतिकारियों-शहीदों के नाम प्रवेश द्वार बनाने को ठानी लेकिन कोई सुगबुगाहट नहीं है। भाजपा विधायक उस एमडीए से क्रांति द्वार बनाने को पत्र लिख रहे हैं जिसने यादगार कामों के लिए पैसा कभी खर्च नहीं किया। सत्ताधारी दल के विधायक होकर भी खुद नहीं करा सकते। एक अदद क्रांतिद्वार भी न होने पर क्रांतिवीर कोसते होंगे।

पार्टी त्रयी, आंदोलन छुईमुई

मेरठ हो या आसपास के जिलों में आंदोलन छेड़ने वाली सपा और रालोद की रणनीति कभी चकमा देती रही हैं। वे अब ज्ञापनों में सिमट गए हैं। सत्ताधारी दल को लग्जरी सुविधा भोगने की तोहमत देते हैं पर संघर्ष जिनकी पहचान रही है वे खुद बड़े होटलों में बैठ कर सिर्फ धरना देने का एलान कर रहे हैं। युवाओं के बल को कल के लिए बचाकर रखने की नसीहत देकर वरिष्ठजनों ने आंदोलनों को छुईमुई बना दिया है। साथ उस कांग्रेस का पकड़ लिया है जिसके आंदोलन मेरठ में यादों में सिमट गए हैं। किसानों, युवाओं की बातें रखने को व्याकुल ये तीनों दल आलाप कर रहे हैं। खैर, कार्यकर्ता इंतजार कर रहे हैं कि कभी तो आंदोलन होगा। जबरदस्त होगा क्योंकि अपनी ही सरकारों की योजनाएं बताने को जब-जब नेतृत्व से कहा गया, तब तब सेल्फियों में ही कैद होते रहे। जनता से जुड़ पा रहे, न अपनों से।

मेरठ बदलेगा, बदलिए सोच

मेरठ पर न्योछावर हो रहे प्रोजेक्ट ही काफी नहीं हैं सूरत बदलने को। मेरठ को अब अपने ही लोगों का साथ चाहिए। तब दुरुस्त साथ नहीं मिला था जब केंद्र सरकार की स्मार्ट सिटी योजना में चयन होना था। अब स्वच्छता सर्वेक्षण की रैंकिंग में भी ठीक नहीं मिल रहा। झाड़ू लगने व कूड़ा न उठने की नाराजगी से देश में अपनी ही बदनामी हम करा रहे हैं। सोच बदलिए। ये जो प्रोजेक्ट मिल गए हैं इनका भी साथ दीजिए क्योंकि अब रैपिड रेल प्रोजेक्ट का कार्य धरातल पर होता दिखाई देने लगा है। डासना होते हुए दिल्ली जाने वाला एक्सप्रेस-वे लगभग पूरा ही होने वाला है। आइटी पार्क की बिल्डिंग लगभग तैयार हो गई है। स्मार्ट सिटी का प्रोजेक्ट बन रहा है। गंगा एक्सप्रेस-वे और उड़ान की फाइलों ने गति पकड़ी है। पौड़ी-मेरठ हाईवे निर्माण देर सबेर शुरू ही होगा, क्योंकि अब तो कार्यदायी संस्था का चयन प्रस्तावित है।

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