प्रदूषण की इमरजेंसी, सांसों पर क‌र्फ्यू

साफ हवा अब महज इत्तेफाक की बात है। फेफड़ों को 24 घंटे प्रदूषित हवा से संघर्ष करना पड़ रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट तो कम से कम यही बताती है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 15 Nov 2019 03:00 AM (IST) Updated:Fri, 15 Nov 2019 06:05 AM (IST)
प्रदूषण की इमरजेंसी, सांसों पर क‌र्फ्यू
प्रदूषण की इमरजेंसी, सांसों पर क‌र्फ्यू

मेरठ, जेएनएन। साफ हवा अब महज इत्तेफाक की बात है। फेफड़ों को 24 घंटे प्रदूषित हवा से संघर्ष करना पड़ रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट तो कम से कम यही बताती है। एनसीआर-मेरठ की हवा में पीएम2.5 की मात्रा मानक से सात गुना तक बढ़ गई। गुरुवार को एक भी बार मेरठ को साफ हवा नसीब नहीं हुई। सुबह आठ से 12 बजे तक हवा खतरे के निशान से काफी ऊपर बही, जबकि पिछले सप्ताह हवा में प्रदूषण ने चार से पांच घंटे की ढील दी थी। उधर, पत्तियों पर धूल जमने से पेड़-पौधों ने कार्बन डाई ऑक्साइड अवशोषण एवं आक्सीजन उगलना कम कर दिया है।

24 घंटे की इमरजेंसी

हवा का मिजाज गुरुवार को अचानक बिगड़ गया। पिछले दिनों दोपहर 12 से शाम चार बजे तक पीएम2.5 की मात्रा कई बार 50 से 90 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर तक बही, किंतु गुरुवार को गंगानगर में पीएम2.5 का स्तर 232 से नीचे नहीं आया। सुबह आठ बजे हवा में पीएम2.5 का लोड 344 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर था, जबकि रात आठ बजे बजने के साथ मात्रा फिर 334 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर पहुंच गई। जयभीमनगर में सुबह आठ बजे पीएम2.5 की मात्रा 386, जबकि रात आठ बजे 365 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पहुंच तक गई। पल्लवपुरम में पीएम 2.5 की मात्रा सुबह आठ बजे 369, जबकि रात आठ बजे 322 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर मात्रा दर्ज हुई। तीनों स्टेशनों पर गुरुवार को एक भी बार साफ नहीं बही। वहीं एयर क्वालिटी इंडेक्स का स्तर पीएम2.5 से कम दर्ज किया गया। हालांकि सुबह आठ बजे की तुलना में रात आठ बजे तक सभी स्टेशनों पर एक्यूआइ का स्तर ज्यादा मिला। कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड एवं नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड की मात्रा मानक से कम रही। क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट बताती है कि सुबह आठ से 12 बजे तक सर्वाधिक खराब हवा बही। नम हवा में घुला प्रदूषण

पारा गिरने के साथ हवा में नमी बढ़ रही है। प्रदूषित कण हवा में आपस में चिपककर स्मॉग बना रहे हैं। मेरठ में बड़ी संख्या में वाहनों की भीड़, बेलगाम धुआं उगलती औद्योगिक चिमनियां, कंस्ट्रक्शन कारोबार और सड़कों से उड़ती धूल, धड़धड़ाते जनरेटर और गांवों में प्लास्टिक व कचरा दहन से हवा में विषाक्त कण तैर रहे हैं। वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि हवा में केमिकल रिएक्शन से अम्लीय वर्षा का खतरा बढ़ता जा रहा है। क्या कहते हैं विशेषज्ञ

वायुमंडल में सिर्फ धूलकण नहीं हैं, बल्कि औद्योगिक एवं अन्य गतिविधियों से निकले रासायनिक कण तैर रहे हैं। दर्जनों प्रकार के रसायन आपस में रिएक्शन कर खतरनाक कंपाउंड बनाते हैं। खासकर, नाइट्रोजन एवं सल्फर की मात्रा ज्यादा होने से फेफड़े क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।

डॉ. आरके सोनी, विभागाध्यक्ष, रसायन विज्ञान, सीसीएसयू नाक की एलर्जी, खांसी, आंख में जलन और सांस फूलने के लक्षणों के साथ मरीज ओपीडी में पहुंच रहे हैं। पीएम2.5 नाक की नलिकाओं में सूजन बनाती है। लगातार सात गुना प्रदूषण में रहने पर फेफड़ों की क्षमता तेजी से घटेगी।

डॉ. स्नेहलता वर्मा, असिस्टेंट प्रोफेसर, मेडिकल कॉलेज

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