E-workshop at CCSU: समाज के अंतिम व्यक्ति तक हो शिक्षा का प्रसार Meerut News

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ राजनीति विज्ञान विभाग की ओर से आयोजित ई कार्यशाला का समापन।

By Taruna TayalEdited By: Publish:Tue, 07 Jul 2020 07:32 PM (IST) Updated:Tue, 07 Jul 2020 07:32 PM (IST)
E-workshop at CCSU: समाज के अंतिम व्यक्ति तक हो शिक्षा का प्रसार Meerut News
E-workshop at CCSU: समाज के अंतिम व्यक्ति तक हो शिक्षा का प्रसार Meerut News

मेरठ, जेएनएन। जिस तरह से संसाधनों की आवश्यकता समाज के प्रत्येक व्यक्ति को होती है। उसी तरह शिक्षा भी समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचनी चाहिए। चौ. चरण सिंह विवि में

पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ राजनीति विज्ञान विभाग की ओर से आयोजित ई कार्यशाला में वक्ताओं ने कही। शोध की भारतीय और समकालीन दृष्टि विषय पर सात-दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में पवन कुमार शर्मा ने कार्यशाला का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया, कहा कि भारत की ज्ञान परंपरा अद्भुत रही है। उसने विश्व व भारत को मार्गदर्शन दिखाया है। कार्यशाला का उद्देश्य भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा व भारतीय जीवन दृष्टि से विद्यार्थियों अनुसंधानकर्ताओं विद्वतजनों और अध्येताओं को परिचित कराना था। जिससे वह भारत की गौरवशाली संस्कृति व ज्ञान परंपरा के बारे में जान सके और वर्तमान समय में भारतीय ज्ञान परंपरा एवं जीवन दृष्टि के आधार पर शोध कार्य संपन्न कर सके ना कि पाश्चात्य ज्ञान का अनुशीलन ही करते रहे। इस कार्यशाला में लगभग 3000 अध्येताओं ने सहभागिता की। उन्होंने कहा कि इतनी अधिक संख्या में अध्येताओं ने हिस्सा लिया। जिससे यह पता चलता है कि भारत में भारतीयता की दृष्टि को जानने व समझने की उत्सुकता, जिज्ञासु प्रवृत्ति हमारे समाज के अध्येताओं में भी है। उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला के सात दिन में लगभग 18 विशेषज्ञ ने भारत की प्राचीन शोध पद्धति व समकालीन शोध पद्धति पर प्रकाश डाला।उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला को लगभग हर दिन चार हजार प्रतिभागियों ने यूट्यूब लाइव चैनल के माध्यम से देखा।

भारतीय जीवन पद्धति सर्वश्रेष्ठ

अखिल भारतीय संयोजक प्रज्ञा प्रवाह परिषद जे.नंद कुमार ने कहा कि वर्तमान समय में जिस संकट से विश्व और भारत जूझ रहा है उसका निराकरण प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा में संभव है।इसके लिए हमारे अकादमिक जगत को जिम्मेदारी व दृढ़ इच्छाशक्ति जागृत करनी होगी। तभी हम प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा पर अनुसंधान कार्य कर पाएंगे। उसका लाभ ले पाएंगे। उन्होंने कहा कि भारतीय आयुर्वेद विज्ञान व योग दर्शन इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।उन्होंने कहा कि हमें भारतीय आयुर्वेद पद्धति से कोविड जैसी महामारी के निराकरण का मार्ग खोजना चाहिए या केवल हम पाश्चात्य जगत के द्वारा बनाई गई दवाइयों पर ही निर्भर रहेंगे। हमारे यहां प्राचीन समय में असाध्य रोगों के लिए आयुर्वेद में निराकरण मौजूद था। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में यह हम सब भारतीयों के लिए सोचने और चिंतन करने का विषय है कि हमें आयुर्वेद पद्धति द्वारा बनाई गई औषधियों की आज्ञा भी एलोपैथी के डॉक्टरों द्वारा लेनी होगी क्या? हमने अपनी चिंतन परंपरा व ज्ञान विज्ञान को इतना गौण बना दिया है। उन्होंने कहा कि हमें बैलगाड़ी के युग में नहीं जाना है लेकिन भारतीय दृष्टि के आधार पर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारतीय ज्ञान परंपरा को देशानुकूल बनाना है। और नवीन ज्ञान का भी स्वागत करना है। लेकिन अपनी गौरवशाली संस्कृति व परंपरा को बुलाना नहीं है। बल्कि उस पर अध्ययन और चिंतन करना है।

शिक्षक लें जिम्मेदारी

महात्मा ज्योतिबा फुले विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अनिल कुमार शुक्ल ने कहा कि वर्तमान समय में जिन परिस्थितियों से विश्व और भारत जूझ रहा है। उसके लिए शिक्षण जगत को यह जिम्मेदारी लेनी होगी। वह किस तरह ज्ञान का प्रचार प्रसार और संवर्धन करें। महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों का प्रमुख कार्य ज्ञान विज्ञान पर अनुसंधान कार्य करना ही है। उस ज्ञान विज्ञान को समाज के सभी वर्गों तक पहुंचाना है। सीसीएसयू के कुलपति प्रोफेसर नरेंद्र कुमार तनेजा ने कहा कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों और भारतीय वांग्मय में वैज्ञानिकता के आधार पर शोध कार्य और ज्ञान विज्ञान का निर्माण किया गया है। जिसका उद्देश्य मनुष्यता का कल्याण था। वर्तमान समय में हमें भी शोध कार्य करते हुए उसकी प्रामाणिकता और वैज्ञानिकता पर अधिक जोर देना होगा। उस शोध की उपादेयता समाज एवं मनुष्यता के लिए क्या होगी इस पर भी चिंतन और मनन करना होगा। प्रो.पवन कुमार शर्मा ने सभी का धन्यवाद किया। 

chat bot
आपका साथी