चौधरी चरण सिंह जयंती : अन्नदाताओं के लिए धड़कता था चौधरी साहब का दिल, सामंतशाही का किया था खात्‍मा

छप्पर में जन्म लेकर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे स्व. चौधरी चरण सिंह का दिल गांव-गरीब और किसानों के लिए धड़कता था। जातिवाद के कट्टर विरोधी चौधरी साहब ने पटवारियों के आंदोलन से निपटने के साथ अन्नदाताओं को जमीन का मालिक बनाकर सामंतशाही का खात्मा किया।

By Edited By: Publish:Tue, 22 Dec 2020 11:08 PM (IST) Updated:Wed, 23 Dec 2020 11:56 AM (IST)
चौधरी चरण सिंह जयंती : अन्नदाताओं के लिए धड़कता था चौधरी साहब का दिल, सामंतशाही का किया था खात्‍मा
अटल बिहारी वाजपेयी, रामविलास पासवान व अन्य नेताओं के साथ चर्चा करते चौ. चरणसिंह।

बागपत [जहीर हसन]। छप्पर में जन्म लेकर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे स्व. चौधरी चरण सिंह का दिल गांव-गरीब और किसानों के लिए धड़कता था। जातिवाद के कट्टर विरोधी चौधरी साहब ने पटवारियों के आंदोलन से निपटने के साथ अन्नदाताओं को जमीन का मालिक बनाकर सामंतशाही का खात्मा किया। कृषि उपज दूसरे राज्य ले जाने पर लगी रोक हटाने जैसे तमाम शानदार काम भी उन्होंने किए।

स्व. चौ. चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को हापुड़ के नूरपुर गांव में छप्पर वाले घर में हुआ। छह माह की उम्र में पिता चौ. मीर सिंह और माता नेत्र कौर के साथ मेरठ के भूपगढ़ी गांव आ गए। जानीखुर्द की पाठशाला से प्राथमिक शिक्षा व 1926 में मेरठ कालेज से कानून की पढाई कर गाजियाबाद में वकालत शुरू की। 1937 में छपरौली से प्रांतीय धारा सभा में चुने गए। आजादी के आंदोलन में भाग लिया। तीन अप्रैल 1967 को मुख्यमंत्री, 1977 में सांसद बनने के बाद गृहमंत्री, 24 जनवरी 1979 को उप प्रधानमंत्री और 28 जुलाई 1979 को प्रधानमंत्री बने। इस महान शख्सियत का 29 मई 1987 को निधन हो गया।

किसानों को दी आजादी : चौधरी साहब ने सहकारी खेती का विरोध, कृषि कर्ज माफी, जमींदारी उन्मूलन, भूमि सुधार अधिनियम, चकबंदी अधिनियम लागू करने, मृदा परीक्षण, कृषि को आयकर से बाहर रखने, नहर पटरी पर चलने पर जुर्माना लगाने का ब्रिटिश कानून खत्म करने, वर्ष 1961 में वायरलेस युक्त पुलिस गश्त, किसान को जोत बही दिलाने, कृषि उपज की अंतरराज्यीय आवाजाही पर रोक हटाने और कपड़ा मिलों को 20 प्रतिशत कपड़ा गरीबों के लिए बनवाने जैसे काम किए।

ऐसे निपटाया पटवारियों का आंदोलन : ‘चौधरी चरण सिंह और उनकी विरासत’ पुस्तक में उल्लेख है कि 1952 में जमींदारी उन्मूलन जैसे क्रांतिकारी कदम उठाने के बाद जमींदारों और सरकार में उनके पक्षधरों के इशारे पर पटवारियों ने अपनी मांगों को लेकर आंदोलन शुरू किया और दबाव बनाने को त्याग पत्र भेजे। राजस्व मंत्री की हैसियत से चौधरी साहब ने पटवारियों को इस्तीफों पर विचार करने को समय दिया लेकिन बाद में 27 हजार पटवारियों के इस्तीफे मंजूर कर 13 हजार लेखपाल भर्ती किए। इनमें 18 फीसदी हिस्सेदारी अनुसूचित जाति को दी। शिक्षण संस्थाओं से जातियों के नाम हटवाए।

नौ दिसबंर 1948 को मेरठ में हिंदू साहित्य सम्मेलन के 36वें अधिवेशन में चौधरी साहब ने कहा कि हिंदू व अन्य प्रांतीय भाषाओं की जननी संस्कृत है।

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