'ध्रुपद के नए साधकों में है भरपूर ऊर्जा'

मेरठ: मशहूर ध्रुपद गायक वासिफुद्दीन डागर मानते हैं कि कला अक्षुण्ण होती है, कलाकार में विचलन होता है

By Edited By: Publish:Tue, 31 Mar 2015 02:09 AM (IST) Updated:Tue, 31 Mar 2015 02:09 AM (IST)
'ध्रुपद के नए साधकों में है भरपूर ऊर्जा'

मेरठ: मशहूर ध्रुपद गायक वासिफुद्दीन डागर मानते हैं कि कला अक्षुण्ण होती है, कलाकार में विचलन होता है। शास्त्रीय संगीत का राही तप और दर्शन से बड़ा होता है। वह प्रकृति की सरगम और संवेदना के नादों को जितनी खूबसूरती से सुन पाएगा, उतना बेहतर कला की सेवा करेगा। माना कि नई पीढ़ी भले ही जल्दबाजी में है, किंतु धु्रपद जैसी विधाएं लुप्त नहीं होंगी। भारतीय संस्कारों में इनकी जड़ मीलों गहराई तक जमी हुई है। पदमश्री गायक ने कहा कि खयाल और धु्रपद में कोई विरोधाभास नहीं होना चाहिए। खयाल गायिकी धु्रपद की ही एक धारा है, जो तबले की ध्वनि पर आधारित है, जबकि ध्रुपद पखावज पर संपूर्णता प्राप्त करता है। बताया कि नई पीढ़ी में कई गायकों ने धु्रपद समेत कठिन सुर साधनाओं में भरपूर दिलचस्पी दिखाई है। वह नानक, कबीरदार, सूरदास, एवं मीरा के पदों को ध्रुपद में शामिल कर रहे हैं। फिल्मी गायकी में भी गिरावट मानते हैं। कहा कि पुराने संगीतकार तकरीबन सभी धुनों में शास्त्रीय रागों का प्रयोग करते थे। नौशाद ने बड़े गुलाम अली खां, वसंत देसाई ने उस्ताद अमीर खां और शंकर जयकिशन ने पंडित भीमशेन जोशी जैसे गायकों के सुरों को सजाया, किंतु आज कोई इसकी योग्यता नहीं दिखाता। ध्रुपद गायन को प्रोत्साहित करने के लिए नए संस्थानों को स्थापित करने के बारे में कहा कि देशभर में तमाम तालीम हासिल कर रहे हैं। उदय भवालकर, ऋत्विक सांयाल, अभय नारायण मलिक को जबरदस्त कलाकार बताया। कहा कि नए संस्थानों को बनाने में पेपर वर्क की जटिलताएं कम होनी चाहिए।

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