'जख्मी' रेडक्रॉस सोसाइटी को मरहम की दरकार

जागरण संवाददाता, मैनपुरी : असहायों की सहायता के उद्देश्य से बनी रेडक्रॉस सोसाइटी को खुद अपने 'जख्मों' के लिए 'मरहम' की दरकार है। सोसाइटी के भवन में एक ओर मशीनें जंग खा रही हैं तो दूसरी ओर जर्जर भवन में दरवाजे और खिड़कियां दीमक का निवाला बन गए हैं। देखरेख करने के लिए एक पूरी टीम मौजूद है। मगर, बदहाली से निजात दिलाने की पहल किसी ने नहीं की। कैलेंडर में आठ मई की तारीख आते ही रेडक्रॉस सोसायटी के कर्मचारियों को बुरे दिन बहुरने की आस फिर से जाग जाती है। दरअसल, मरीजों के बेहतर उपचार के लिए सोसायटी द्वारा स्टेशन रोड पर वर्षों पूर्व भवन का निर्माण कराया गया था।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 07 May 2018 10:49 PM (IST) Updated:Mon, 07 May 2018 10:49 PM (IST)
'जख्मी' रेडक्रॉस सोसाइटी को मरहम की दरकार
'जख्मी' रेडक्रॉस सोसाइटी को मरहम की दरकार

जागरण संवाददाता, मैनपुरी : असहायों की सहायता के उद्देश्य से बनी रेडक्रॉस सोसाइटी को खुद अपने 'जख्मों' के लिए 'मरहम' की दरकार है। सोसाइटी के भवन में एक ओर मशीनें जंग खा रही हैं तो दूसरी ओर जर्जर भवन में दरवाजे और खिड़कियां दीमक का निवाला बन गए हैं। देखरेख करने के लिए एक पूरी टीम मौजूद है। मगर, बदहाली से निजात दिलाने की पहल किसी ने नहीं की।

कैलेंडर में आठ मई की तारीख आते ही रेडक्रॉस सोसायटी के कर्मचारियों को बुरे दिन बहुरने की आस फिर से जाग जाती है। दरअसल, मरीजों के बेहतर उपचार के लिए सोसायटी द्वारा स्टेशन रोड पर वर्षों पूर्व भवन का निर्माण कराया गया था। देखरेख होती रहे, इसके लिए कमेटी का गठन भी कर दिया गया। भवन में फिजियोथैरेपी के जरिए शरीर के रोगों को दूर कराने की व्यवस्था भी कराई गई। लेकिन, हाल देखिए। जर्जर भवन में उपचार के नाम पर सिर्फ टूटी हुई नॉटिकल व्हील, रॉइंग मशीन और स्टेटिक साइकिल ही बची है। अन्य जो भी उपकरण लगे हैं, वे पूरी तरह से खराब हो चुके हैं। जिम्मेदारों ने आंखें फेरीं तो मरीजों ने भी आना बंद कर दिया। अब स्थिति बेहद दयनीय है। कर्मचारियों का आरोप है कि समस्याओं के समाधान की सुनने वाला कोई नहीं है। हर बार सिर्फ बैठक करके ही इतिश्री कर ली जाती है।

छह वर्षों से खराब पड़ी एसडब्ल्यूडी मशीन

सोसायटी के भवन में फिजियोथैरेपी के लिए एसडब्ल्यूडी (शार्ट वेब डायथर्मी) मशीन मंगाई गई थी। इस मशीन के जरिए शरीर के आंतरिक अंगों एवं हड्डियों की सिकाई तरंगों की गर्मी से की जाती है। सोसायटी में रखी इस मशीन से मात्र पांच और 10 रुपये में मरीजों को बेहतर उपचार मिलता था। लेकिन, पिछले छह सालों से यह मशीन खराब पड़ी हुई हैं। मशीन के अभाव में मरीजों को गैर जिलों में जाकर उपचार कराना पड़ता है। सिकाई के लिए ही 200 से 300 रुपये देने होते हैं। इसके अलावा आवागमन का किराया अलग से। फिजियोथैरेपिस्ट सुरेश चंद्र दुबे का कहना है कि जब मशीन सही थी तब रोजाना दर्जन भर से ज्यादा मरीज आते थे। कई बार शिकायत की जा चुकी है, लेकिन किसी ने भी सुनवाई नहीं की।

राहत राशि पर कुंडली मारे बैठे शिक्षाधिकारी

सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों में कक्षा नौ से 12 तक के विद्यार्थियों से एक रुपये की धनराशि रेडक्रॉस सोसायटी के नाम पर जमा कराई जाती है। जो भी रकम एकत्रित होती है, उसमें से 50 फीसद धनराशि विद्यालय अपने पास रखते हैं और बाकी 50 फीसद धनराशि सोसायटी को भेजी जाती है। लेकिन, पिछले एक साल से किसी भी स्कूल ने धनराशि सोसायटी के खाते में नहीं भेजी। सोसायटी के कर्मचारियों का कहना है कि उन्होंने कई बार जिला विद्यालय निरीक्षक से भी कहा लेकिन सुनवाई न हुई।

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'जिलाधिकारी ने हालातों का जायजा लिया है। स्थिति बेहतर बनाने के प्रयास होंगे। सबसे पहले बाउंड्री वॉल कराकर सुरक्षित कराया जाएगा। उसके बाद यहां पौधरोपण और बैठने के लिए बेंचों की व्यवस्था भी होंगी। संबंधित विभाग के अधिकारियों के साथ सोसायटी के सभी सदस्यों को जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं। जल्द ही सुधार भी होगा। जो मशीनें खराब हैं, उनकी भी मरम्मत कराई जाएगी।

अमित ¨सह, उप जिलाधिकारी सदर।

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