भूखों का पेट भर कर दुवाओं से भरी झोली

अजय दीक्षित महोबा लॉकडाउन के समय कांशीराम कॉलोनी के पास मैदान में हॉकी मैच खेलने क

By JagranEdited By: Publish:Sun, 24 Jan 2021 11:54 PM (IST) Updated:Sun, 24 Jan 2021 11:54 PM (IST)
भूखों का पेट भर कर दुवाओं से भरी झोली
भूखों का पेट भर कर दुवाओं से भरी झोली

अजय दीक्षित, महोबा:

लॉकडाउन के समय कांशीराम कॉलोनी के पास मैदान में हॉकी मैच खेलने के दौरान दो मासूम दिखे जो जल्दी-जल्दी कूड़े में कुछ तलाश रहे थे। मोहम्मद परवेज उनके पास गए..बेटा यहां क्या तलाश रहे हो। बच्चे बोले भूख लाग है। परवेज ने साथियों को बुलाया। एक साथी घर गया और बिस्कुट का पैकेट ले आया। बच्चे खुश होकर चले गए। इस घटना ने परवेज को झकझोर दिया। साथियों के साथ चर्चा हुई कि लॉकडाउन में तो ऐसे यहां तमाम घर होंगे जहां भोजन के लाले पड़ गए हैं। उनकी मदद करनी चाहिए। सभी साथी इसकी तैयारी में जुट गए।

चरखारी कस्बा निवासी 38 वर्षीय मोहम्मद परवेज रजिस्ट्री आफिस में संविदा कर्मी हैं। वह प्रतिदिन अपने आठ-दस साथियों के साथ हॉकी मैच खेलने जाते हैं। लॉकडाउन के दौरान घर के पास ही यह लोग मैच खेलने जाते थे। पास स्थित कांशीराम कॉलोनी में करीब चार से पांच सौ लोग रहते हैं। सभी मजदूर वर्ग के हैं। लॉकडाउन में काम बंद होने से यहां भरण पोषण को लेकर लोग परेशान थे। परवेज और साथी यहीं पास में मैदान पर मैच खेलने के दौरान उनकी मुसीबत देखी तो मदद को आगे आए। मदद को उठे हाथ

कांशीराम कॉलोनी के लोगों की मदद करने को उठे युवाओं के हाथ फिर और लोगों की मदद के लिए भी जुट गए। युवाओं की टीम में शिक्षक प्रदीप, दुकानदार मुस्लिम खान, दुकानदार पियूष त्रिपाठी, सरफराज, संविदा कर्मी राशिद शामिल थे। इन लोगों ने प्लान तैयार किया कि एक आदमी पर बोझ डालने से अच्छा है सभी से मदद ली जाए। यह समस्या बड़ी है, इसके लिए तैयारी भी उसी के अनुसार करनी है। घर-घर जाकर किया संपर्क

परवेज ने अपने साथियों के साथ संपन्न और मदद को आगे आने वालों के यहां घर-घर जाकर संपर्क किया और सभी से कम से कम दो लोगों का तैयार भोजन देने की अपील की गई। फिर क्या था घरों से भोजन लाकर युवा एकत्र करते और बाद में उन घरों में लेकर जाते जहां जरूरत थी। एक दिन में करीब तीन सौ परिवारों को भोजन वितरित करते थे। साथ ही सड़क से गुजर रहे अप्रवासियों को भी भोजन पैकेट देते थे। बिस्कुट-दूध भी वितरित किया

युवाओं का यह अभियान करीब दो माह तक चला। इस दौरान बच्चों के लिए दूध, ब्रेड, बिस्कुट भी देते थे। इसके लिए युवा अपने पास से और जो मदद देने को तैयार होते उनसे आर्थिक मदद ले लेते थे। परवेज कहते हैं जब हम लोग मजदूरों के यहां भोजन लेकर जाते तो उनके आंसू छलक आते थे। घटना जो कभी नहीं भूलेगी

प्रदीप कहते हैं, कांशीराम कॉलोनी में एक आवास में तीन दिन से खाना नहीं था। उनके पास जो भी कच्चा-पक्का था सारा समाप्त हो चुका था। दो मासूम, दंपती, एक वृद्धा बहुत भूखे थे। हमारे पास खाना कम ही बचा था। खैर उस परिवार को भोजन जैसे ही दिया तो बच्चे टूट पड़े, दंपती की आंखों से आंसू निकल आए। वृद्धा हम लोगों को दुआएं देते नहीं थक रही थी।

नहीं खिचवाई फोटो

मजबूर लोगों की मदद करते वक्त इस बात का भी ख्याल रखा गया कि मदद ले रहे लोगों के दिल में ठेस न पहुंचे। इसके लिए तय किया कि राहत वितरित करते समय कोई फोटो नहीं होगी। जब साथी बिछड़ गया

परवेज की टीम के एक सदस्य 21 वर्षीय अजहर अप्रैल माह में एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गए। उनकी बाद में मौत हो गई। इस घटना से टीम के सदस्यों को काफी दुख हुआ लेकिन अभियान सतत जारी रखा।

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